Freelance Falcon ~ Weird Jhola-Chhap thing ~ ज़हन

Tuesday, October 30, 2012

पान की पीक को खून मत समझो!! Madam!!

"अरे-अरे मै रो नहीं रहा हूँ...हाथ हटाओ, आपका रुमाल गंदा हो जायेगा...."

कुछ लोगो को तो पब्लिक मे आना ही चाहिये. दुनिया का दर्द उनके लिए नहीं बना है. जब वो दुनिया देखते है या तो वो सच्चाई को नकार कर आगे बढ़ जाते है.....

"हाँ जी, मैडम...आँखें ठीक है मेरी बिलकुल. सब दिख रहा है. वो दूर से पठानी सूट मे गोलू सा बच्चा आ रहा है."

....या बहुत  परेशान हो जाते है. अब ये मैडम पांच मिनट्स से मेरे लिये रोनी सी सूरत बनायें है....और बार-बार मेरा हाल पूछ रहीं है.

"ऐसा होता रहता है, आप चिंता मत करो. मै एकदम चंगा हूँ."

पर अब जो ये कर रहीं है वो मुझे नहीं पसंद. इन लोगो को लगता क्या है 2 मिनट की हमदर्दी रोज़ का दर्द मिटा देगी? अपने मन को तस्सल्ली देने के लिये और शायद आगे कभी अपनी महानता की गाथा गाने के लिये किसी को पकड़ लो और उसको एहसास करवाओ की वो कितना मजबूर और अभागा है....जो चीज़ें और बातें इनके लिये यूँ ही है वो हमारे लिये कोई वरदान सरीखी है.

"कोई नहीं मैडम...ये खून नहीं है, पान की पीक है...मुझे मारने नहीं, अपने संगी-साथियों के साथ सिगरेट पीने उतरा था वो आदमी, उसे जल्दी मची थी और मेरे हेन्जी क्राफ्टस और खिलौने  नहीं देखने थे...मैंने शायद दिखाने मे ज़बरदस्ती सी कर दी तो उसने झुँझल मे आकर मेरे मुँह पर थूक दिया और एक थप्पड़ मारा बस..अभी बिज्नज का टाइम है, ये सब तो चलता रहता है...नहीं! ये मत करो आप. रहने दो...ये हेन्जी क्राफ्ट्स..."

"हेंडीक्राफ्ट्स?"

"...जो भी है मै ये सारे खिलौने और हेन्जी...हांड़ीक्राफ्ट्स आपको नहीं बेचूँगा...भीख नहीं चाहिये..."

ये तो मान ही नहीं रहीं. घर के काम आया, नौकर कर देते है, ओहो! कितना फालतू समय रहता है इनके पास. 

"मना कर रहा हूँ ना...नहीं बेचने. अरे..भप! भागो यहाँ से...%^$%@*&#$&#!*^#%...."

समाप्त!

Saturday, October 27, 2012

Pagli Vichar Promotion Series

Fiction Comics team started "Pagli Vichar" promotion Series....with me. :) Mai hun hi Pagal jo is character ki frequency mujh se mil hi jaati hai. - Mohit (Trendy Baba)

i) - 



"मौत को सामने देखकर लोग पागलो जैसी अजीब हरकतें करते है....और दुनिया मुझे पगली कहती है...ही ही ही!!"

ii) - 



"मुझसे डरे हुए लोग माफ़ी मांगते है की दोबारा कभी गलत काम नहीं करेंगे...पर वो एक बार मे ही इतना गलत कर चुके होते है की मेरे हाथों उनका मरना तो बनता है. ही ही ही!"

 with Artist Mr. Raj (Seedhi Baat No Bakwaas)

Wednesday, October 24, 2012

Pagli (Fiction Comics) Promotional Writeups, Dialogues

Working with the Fiction Comics Team on the promotion of their upcoming Horror series Pagli. More ads coming soon....


Ad # 1

                            "छुप्पन छुप्पाई खेलें छुप्पन छुप्पाई....
                             टेडी मेरे भाई खेलें...छुप्पन छुप्पाई...

                             तम तीनो ने जो एक लड़के पर गाडी चढ़ाई..
                             सोचा तस्सल्ली मे दुनिया न देख पाई...
                             पगली पीछे आई...देखो पगली पीछे आई...
                              छुप्पन छुप्पाई खेलें छुप्पन छुप्पाई...."

Ad # 2

"गुस्सा नहीं करते, सॉरी बाबू....आने मे देर हो गयी और तुम्हारी सौतेली मम्मा जी तुमको मार दिया...रास्ते मे कुछ अंकल लोग मिल गये थे, उन्होंने ना देरी करवा दी. गंदे अंकल कहीं के! अरे सॉरी बोल रहीं हूँ ना..दूकान वाली बूढी अम्मा ने बोला है की बारिश मे भीगने से सर्दी लग जाती है...अब उठ भी जाओ....उठक-बैठक लगाऊ क्या? तुम्हारी गंदी मम्मी को को भी पनिशमेंट दे दूंगी प्रोमिस...मुर्गा..सॉरी..सॉरी मुर्गी बना दूंगी..ही ही ही....ओके मुझसे कट्टी है मान लिया पर टेडी से तो हैण्ड शेक कर लो...उस से बात करो लो...पगली दीदी की बात मान लो प्लीज्...."

Tuesday, October 23, 2012

मेरी आज़ादी का रुआब! (Tibet's Non-Violent Struggle)

Self-immolation earlier today in Tibet. This photo shows 58 year old Dorjee Rinchen who had self-immolated near Labrang Monastery, calling for freedom in Tibet and return of the Dalai Lama. Dorjee Rinchen is the 6th person to have self-immolated in this month alone. Faced with unendurable conditions, Tibetans continue to light themselves on fire as their only means of protest - getting arrested and enduring years of torture in jail not being considered a viable alternative. More than fifty have done so in recent months.

I dedicate this poem to Non-Violent Struggle of the Tibetan People.....


दौर को चंद बातों से लाँघने की बिसात...
खुद मे धूल और चिंगारी समेटे वो किताब..
बंद हाथो की मुट्ठी मे वो ख्वाब...
आ छीन मुझसे मेरी आज़ादी का रुआब!! 

मेरे दिल की लौ से चिढती जो ये रात..
मारा गया जो नहीं चला खूनी कारवाँ के साथ...

कारवाँ से अलग अपने आशिएं मे है एक जिंदा लाश...
तेरा निज़ाम नहीं फ़ब्ता उसे, ओ नवाब..
आ छीन मुझसे मेरी आज़ादी का रुआब!!

जंग तुझसे नहीं तेरे खयालो से है...
बात मेरे ज़हन मे जलते सवालो
से है...
गलत होकर भी सही ठहराये गये जवाबो से है...
जिनके पीछे रहकर तू राज करता उन हिजाबो से है...

अपने लोगो
की झुकी आँखों मे झाँक...उनमे...
...ज़ालिम तेरा अक्स नहीं...
....दिखेगा तुझे...मेरी आज़ादी का रुआब!!

शुक्रिया भी अदा करना है तेरा...
तेरे कायदों की कैद ने ही सिखाया असल जेहाद...

तेरी बंदिशें नाकाफी रहीं.. ..
मेरी आँखें तो कब से खुला आसमाँ देख रहीं...

कभी इस आसमाँ के नीचे हटेगा तेरा संगदिल नकाब...
तब फुर्सत मे देखना...मेरी आज़ादी का रुआब!!

तेरे फ़रेबो से बड़ा...
फितरत से बुजदिल सदा..
हर मौसम मे मनहूस खड़ा..
तेरी हर बुराई पर भारी
पड़ा...
बड़ा
ढीट है यह....मेरी आज़ादी का रुआब!!

- Mohit Sharma (Trendster/Trendy Baba)