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Sunday, December 3, 2017

सड़ता हुआ मांस क्या कहेगा? (वीभत्स रस) #nazm #tribute


Revolutionary and Hindi writer Yashpal's 114th birth anniversary, The Government of India issued a commemorative Yashpal Centenary postage stamp (2003).
आज क्रांतिदूत, लेखक यशपाल जी का जन्मदिवस है। इस अवसर पर देशभर में कार्यक्रम आयोजित होते हैं। वैसे तो यशपाल जी हमें 41 वर्ष पहले छोड़ कर जा चुके हैं पर उनका लेखन अबतक देश का मार्गदर्शन करता रहा है और आगे जाने कितनी ही पीढ़ियों की उंगली पकड़कर उन्हें चलना सिखाता रहेगा। उनकी स्मृतियों को याद करते हुए उनके सुपुत्र आनंद जी बताते हैं कि वो लेखन को एक नौकरी की तरह नियम और समय से करते थे। अनेक शैलियों में लिखते हुए अगर उन्हें ऐसी बातों पर लिखना पड़ता जिनसे लोगो को घिन आती है या जिनपर बात करने से लोग बचते हैं तो वे निडरता से लिखते। वहीं आजकल अधिकतर लेखक, कवि खुद पर किसी लेबल लगने के डर से आम जनता के स्वादानुसार लिखने की कोशिश करते हैं। यशपाल जी काव्य नहीं लिखते थे पर हर कला की तरह पद्य में रूचि लेते थे। अपने रचे पागलपन की दौड़ में परेशान समाज की कुत्सित मानसिकता "अच्छा-अच्छा मेरा, छी-छी बाकी दुनिया का" पर चोट करती 'वीभत्स रस' में लिखी नज़्म-काव्य। यशपाल जी को मेरी नज़्म-काव्यांजलि। यह नज़्म आगामी कॉमिक 'समाज लेवक' में शामिल की है (आशा है मैं उनकी तरह निडरता से लिखना सीख सकूँ) नमन! -
सड़ता हुआ मांस क्या कहेगा?
सड़ता हुआ मांस क्या कहेगा? 
बिजबिजाते कीड़ों को सहेगा,
कभी अपनी बुलंद तारीख़ों पर हँसेगा,
कभी खुद को खा रही ज़मीं पर ताने कसेगा।

जब सब मुझे छोड़ गये,
साथ सिर्फ कीड़े रह गये,
सड़ती शख्सियत को पचाते,
मेरी मौत में अपनी ज़िन्दगी घोल गये।

आज जिनसे मुँह चुराते हो,
कल वो तुम्हारा मुखौटा खायेंगे,
इस अकड़ का क्या मोल रहेगा?
सड़ता हुआ मांस क्या कहेगा?

लोथड़ों से बात करना सीख लो,
बंद कमरों में दिल की तसल्ली तक चीख लो!
सड़ता हुआ मांस सुन लेगा, 
अगली दफ़ा तुम्हे चुन लेगा।

जिसे दिखाने का वायदा किया था हमसे,
वो गाँव तो हमारी लाश पर भी ना बसेगा।
खाल की परत फाड़ जब विषधर डसेगा,
सड़ता हुआ मांस क्या कहेगा?

जिसपर फिसले वो किसी का रक्त,
नाली में पैदा ही क्यों होते हैं ये कम्बख्त?
बाकी तो सब राम नाम सत!
उसपर मत रो... 
सुर्ख़ से काला पड़ गया जो,
ये जहां तो ऐसा ही रहेगा,
सड़ता हुआ मांस कुछ नहीं कहेगा!
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2 comments:

  1. ओह ! प्रिय मोहित -- काश ! आप इस वीभत्स रस को रहने ही देते | विभत्सता की कोई कमी थी क्या दुनिया में ? और आदरणीय यशपाल जी मेरे बहुत पसंदीदा रचनाकार है | उनकी रचना --देशद्रोही मैंने अपने छात्र जीवन में पढ़ी थी | उस विहंगम उपन्यास को दुबारा फुर्सत में बैठ पढने की बड़ी तमन्ना है |उनके परिवार से आपका सम्पर्क है आप निश्चित रूप से भाग्यशाली हैं | यशपाल जी पुण्य स्मृति को मेरा सादर नमन | उनके परिवार तक मेरा अभिवादन जरुर पंहुचा दे और आग्रह करूंगी उनके परिवार पर एक विस्तृत लेख डालें वो भी चित्रों के साथ | आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं |

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  2. जी! :) भाग्यशाली तो हूँ क्योकि कुछ समय से उनके घर के पास ही रह रहा हूँ। हाँ, मैं उनके परिवार पर चित्रों सहित लेख पोस्ट करूँगा।

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