Freelance Falcon ~ Weird Jhola-Chhap thing ~ ज़हन

Wednesday, August 8, 2018

गृहणी को इज़्ज़त की भीख (कहानी) #ज़हन

Artist - Ningen Enpi

सरकारी बैंक में प्रबंधक कार्तिक आज कई हफ़्तों बाद अपने अंतरिक्ष विज्ञानी दोस्त सतबीर के घर आया हुआ था। सतबीर के घर रात के खाने के बाद बाहर फिल्म देखने का कार्यक्रम था। खाना तैयार होने में कुछ समय था तो दोनों गृहणियाँ पतियों को बैठक में छोड़ अपनी बातों में लग गयीं। इधर कुछ बातों बाद कार्तिक ने मनोरंजन बढ़ाने के लिए कहा - 

"कितनी बचकानी, बेवकूफ़ी भरी बातें करती रहती हैं ये लेडीज़ लोग।"

अपनी बात पर मनचाही सहमति नहीं मिलने और लंबी होती ख़ामोशी तोड़ने के लिए कार्तिक बोला - 
"...मेरा मतलब यहाँ हम दोनों अगर अंगोला के गृह युद्ध की बात कर रहे होंगे तो वहाँ दोनों चचिया ससुर की उनके पड़ोसी से लड़ाई पर बतिया रही होंगी, यहाँ हिमाचल में हुयी उल्का-वृष्टि पर बात होगी तो वहाँ बुआ जी के सिर में पड़े गुमड़े की, इधर भारत की विदेश नीति तो उधर चुन्नी और समीज का कलर कॉम्बिनेशन मिलाया जा रहा होगा। मतलब हद है!"

सतबीर ने कुछ सोच कर कहा - "हाँ, हद तो है..."

कार्तिक ने सहमति पाकर कुछ राहत की सांस ही थी कि..."

सतबीर - "हद है हमारे नज़रिये की! ग़लती से ही सही ठीक किया था सरकार ने जब जनगणना में गृहणियों का कॉलम भिखारियों के पास लगा दिया था। बेचारी अपना सब कुछ दे देती हैं और बदले में इज़्ज़त की चिल्लर तक नहीं मिलती। बराबर के मौके और परवरिश की बात छोड़ देता हूँ....यह बता ये लोग जैसी हैं वैसी ना होतीं तो क्या आज हम लोग ऐसे होते?"

कार्तिक - "भाई, मैं समझा नहीं?"

सतबीर - "मतलब ये लेडीज़ लोग भी विदेश नीति, आर्थिक मंदी, अंतरिक्ष विज्ञान फलाना में हम जैसी रूचि लेती तो क्या हम दोनों के घर उतने आराम से चल पाते जैसे अब चलते हैं? घर की कितनी टेंशन तो ये लोग हम तक आने ही नहीं देती और उसी वजह से हम अपने पेशों में इतना लग कर काम कर पाते हैं और बाहर की सोच पाते हैं। जहाँ हम प्रमोशन, वेतन, अवार्ड आदि में उपलब्धि ढूँढ़ते हैं....ये तो बस पति और परिवार में ही अपने सपने घोल देती हैं। अगर ये लोग अपने सपने हमसे अलग कर लें तो बहुत संभव है कि ये तो बेहतर मकाम पा लें पर हमारी ऐसी तैसी हो जाये। इस तरह आराम से बैठ कर दुनियादारी की बात करना मुश्किल हो जायेगा, ईगो की लंका लगेगी सो अलग! हा हा...ये तो हम जैसे करोड़ों का लाइफ सपोर्ट सिस्टम हैं जिनके बिना हमारा जीवन कोमा में चला जाये। तो गृहणियाँ ऐसी ही सम्पूर्ण और बहुत अच्छी हैं! इनसे बैटमैन बनने की उम्मीद मत लगा वो तू खुद भी नहीं हो सकता। इन्हें भीख सी इज़्ज़त मिले तो लानत है हमपर!"

कार्तिक - "हाँ, हाँ...सतबीर के बच्चे सांस ले ले, मैं समझ गया। आज तो गूगली फेंक दी मेरे भाई ने...."

सतबीर - "रुक अभी ख़त्म नहीं हुआ लेक्चर! एक बात और बता ज़रा...इतनी दुनिया भर की बातें करता है मुझसे, यहाँ तक की ब्रह्माण्ड तक नहीं छोड़ता। अपने प्रोफेशन के बाहर कितनी तोपें उखाड़ी हैं तूने? शर्ट प्रेस करनी आती नहीं है और अंगोला के गृहयुद्ध रुकवा लो इस से..."

हँसते हुए कार्तिक को आज अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण लेक्चर मिला था। 

समाप्त!
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#ज़हन #mohit_trendster #freelance_talents #mohitness

Friday, August 3, 2018

Editor - Ibadat Ishq ki Poetry Collection (Vikas Durga Mahto)


Book - Ibadat Ishq ki (Poetry Collection)
Poet - Vikas Durga Mahto
My role - Editor
Publisher: Sooraj Pocket Books; First edition (31 July 2018)
Language: Hindi
ISBN-10: 9388094018
ISBN-13: 978-9388094016
Package Dimensions: 23 x 18 x 3 cm

इस दौर में लोगों को काव्य से बांधना मुश्किल होता जा रहा है। बचपन से उँगलियों पर रखे मनोरंजन के हर साधन के बीच काव्य कहीं रूठ सा गया है। विकास महतो जैसे कवियों के कारण काव्य जैसे कुछ समय के लिए मान जाता है। किसी ग्लेशियर से अभी-अभी पिघली पावन धारा से उनके शब्द मन में घर कर लेते हैं। बाहरी ट्रेंड को देखकर बहुत से कवि खुद को बंदिशों में रखकर रचना सोचते हैं। ऐसी रचनाएँ कभी अच्छी बन सकती हैं पर उनपर दिखावे की परत साफ़ झलकती है, जैसे वो रचनाकार समाज के मानकों को ज़बरदस्ती रिझाना चाहते हों। विकास की कविताओं, ग़ज़ल-नज़्म काव्य की ख़ास बात ये है कि उनमें किसी तरह का बनावट नहीं है। हर रचना में अनेक भावों का अद्भुत घनत्व झलकता है। उनके मन से निकली भावनाओं का पाठक के मन से जुड़ना तय होता है। कविताओं को कुछ श्रेणियों में बांटा गया है और हर श्रेणी अपने में पूरी लगती है। किताब के लिए दो अतिरिक्त रचनाओं को लिखते हुए मैं डर रहा था कि क्या मैं विकास की रचनाओं के साथ न्याय कर पा रहा हूँ...आशा है आपको किताब पढ़ते हुए वैसा रस मिलेगा जैसा मुझे संपादन करते हुए मिला।