Freelance Falcon ~ Weird Jhola-Chhap thing ~ ज़हन

Thursday, February 6, 2020

एक आयोजन जिसने भारतीय कॉमिक्स को नई दिशा दी...


"Genereation Next Writers Workshop and Meet" इवेंट 25 जनवरी 2008 से 27 जनवरी 2008 को राज कॉमिक्स ने बुराड़ी, दिल्ली में करवाया था। इसमें शामिल होने के लिए दिसंबर 2007 में एक प्रतियोगिता रखी गई थी। उस प्रतियोगिता के कुछ विजेता इस 3 दिन के आयोजन का हिस्सा नहीं बन पाए थे, इस वजह से इवेंट में ऑनलाइन कॉमिक्स समुदाय में सक्रीय कुछ प्रशंसकों को शामिल होने की छूट मिल गई थी। 19 साल की उम्र में वहां जाना सपने जैसा था


इन तीन दिनों के दौरान भारतीय कॉमिक्स से जुड़े कई लेखक कलाकार वहां मौजूद रहे, जैसे - तरुण कुमार वाही, अनुपम सिन्हा, ललित शर्मा, संजय गुप्ता, ललित सिंह, क्षितीश पैढी, बेदी जी, जगदीश कुमार, प्रदीप सहरावत आदि। यही नहीं यह आयोजन इतना सफल रहा कि इसमें शामिल लगभग 10 किशोर और युवा आगे चलकर कॉमिक्स और साहित्य की दुनिया से जुड़े। भारत में इंटरनेट के माध्यम से इतना बड़ा ये अपनी तरह के पहला आयोजन था और इसी के बाद सालाना 'नागराज जन्मोत्सव' आयोजन की नींव रखी गई। जिन लोगों से ऑनलाइन इतनी बातें की थी उनसे मिलकर विचार साझा करना अद्वितीय अनुभव रहा। आयोजन में लाइव स्केच सेशन, कॉमिक आईडिया से पूरी कॉमिक तैयार होने का सफ़र, राज कॉमिक्स के गोदाम-ऑफिस का टूर, कॉमिक्स की स्क्रिप्ट कैसे लिखी जाती है, किस तरह के संवाद, विचार और कहानियां इस माध्यम के अनुकूल हैं, एनिमेशन, जारी प्रोजेक्ट्स पर बातचीत जैसी कई चीज़ें हुई। ठहरने की व्यवस्था राज कॉमिक्स और अब बंद हो चुके एनिमेशन स्टूडियो RToonz के ऑफिस में की गई थी। वहां से आने के बाद मैंने राज कॉमिक्स की एक शाखा ट्राईकलर बुक्स के लिए कुछ मिनी-कॉमिक्स लिखी। यह कॉमिक्स बाल विकास और बच्चों को शिक्षा देते विषयों पर थी। मेरा बाकी सफ़र तो आपके सामने है ही...यह अनुभव एक सुखद याद के रूप में हमेशा मेरे साथ रहेगा।


पुरानी साइट काफ़ी पहले बंद हो जाने की वजह से कई फ़ोटो और जानकारी अब उपलब्ध नहीं है। सदस्यों का एक यह लिंक मिला है जिसमें 19 लोगों के नाम दिख रहे हैं। - RC Forum Main Awards & Contests

#ज़हन
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Wednesday, February 5, 2020

तंज़ (सामाजिक कहानी) #ज़हन


घरेलू बिजली उपकरण बनाने वाली कंपनी के बिक्री विभाग में लगे नदीम का समय अक्सर सफर में बीतता था। ट्रेन में समय काटने के लिए वह अक्सर आस-पास यात्रियों से बातों में मशगूल हो जाता। कभी उनकी सुनते और कभी अपनी कहते वक़्त आसानी से कट जाता।  एक दिन नीचे चादर बिछा कर बैठे मज़दूर से उसकी जन्मपत्री मालूम करने के बाद नदीम ने अपना तीर छोड़ा।

"मौज तो तुम गरीब-लेबर क्लास और अमीरों की है। देश का सारा टैक्स तो मिडिल क्लास को देना पड़ता है। एक को सब्सिडी तो दूसरे को लूट माफ़ी।"

सहयात्रियों से "कौनसा स्टेशन आ गया?", "बिजनौर में बारिश हो रही है क्या?" और "हरिया जी दुकान की गजक मस्त होती हैं!" जैसी बातों के बीच हालिया बजट से कुढ़ा नदीम व्हाट्सएप पर मिडिल क्लास के आत्मसम्मान को बचाती पंक्तियां मज़दूर पर फ़ेंक रहा था। वह मज़दूर कभी नदीम की बात समझने की कोशिश करता तो कभी मुस्कुरा कर रह जाता।

ऊपर अपने फ़ोन में मग्न गुरदीप से रहा नहीं गया। 

"बड़े परेशान लग रहे हैं, भाई? अमीरों का पता नहीं पर देश के गरीब का जो हक है वह लेगा ही।"

नदीम को इतनी देर से बांधी गई भूमिका और अपनी बात कटती अच्छी नहीं लगी।

"अरे, लाल सलाम कामरेड! हा हा...मज़ाक कर रहा हूं। किस बात का हक? मुफ़्त की देन तो भीख हुई न?"

गुरदीप को ऐसे ही जवाब की उम्मीद थी।

"भाईसाहब! गरीब लोग तो जहां मिलें उनका शुक्रिया करो...ये गरीब-लेबर क्लास तो देश में सबसे ज़्यादा टैक्स देते हैं।"
यह अलग सा वाक्य सुनकर सब जैसे नींद से जागे और ऊपर से झांकते गुरदीप की ओर देखने लगे। इससे पहले कोई स्टेशन आ जाए या किसी का बच्चा चीख मार के ऐसा रोए कि 12-15 लोगों का ध्यान गुरदीप से हट जाए वह लगातार गरीबों के पक्ष में तर्क देने में लग गया।

"सबसे पहले तो गरीब कभी खाना-पीना और बाकी सामान एकसाथ नहीं लेते। 50 ग्राम तेल, 200 ग्राम आटा, कुछ ग्राम चावल और जीने के लिए ज़रूरी कई चीज़ें ये लोग अपनी रोज़ या हफ़्ते की कमाई के हिसाब से लेते हैं। अगर वही सामग्री ये लोग एकसाथ 5 किलो, डेढ़ किलो या ज़्यादा मात्रा में लें...जैसा हम मिडिल क्लास के लोग लेते हैं, तो इनकी 30 से 90 प्रतिशत तक बचत हो सकती है। ऐसा ये कर नहीं पाते क्योंकि एकसाथ कुछ भी उतना खरीदने के लिए इनके पास पैसे ही नहीं होते। सोचो इकॉनमी में ये करोड़ों लोग रोज़ कितना पैसा लगाते हैं। 
पिछली पे कमीशन में मेरे पड़ोसी शर्मा जी को लाखों का पुराना बकाया एरियर और महीने की सैलरी में सीधे 8200 रुपए का फायदा हुआ था...अब इतने साल बाद नया पे कमीशन लगने वाला है। शर्मा जी को फिर से लाखों रुपए मिलेंगे और वेतन भी बढ़ेगा पर इस बीच के गुज़रे इतने सालों में मजाल है जो उनकी कामवाली बाई के इतना रो-पीटने के बाद भी कुल ढाई सौ रुपए महीना से ज़्यादा बढ़े हों। 

आपका ये कहना की सरकारी अस्पताल "इनसे" भरे रहते हैं या सारी सुविधाओं, स्कीम पर ये लोग टूट कर पड़ते हैं भी गलत है। ये शहर की दूषित जगहों के पास बने घरों में रहते हैं...हर शहर की उस गंदगी का काफ़ी बड़ा स्रोत हम मिडिल क्लास लोग हैं। कम पैसों में शरीर ख़राब कर बीमारी देने वाले काम कर-कर के दुनियादारी का धुआं, धूल झेलकर तो इनका हक बनता है सरकारी सुविधाओं पर टूट पड़ना। मिडिल क्लास की यह कहानी है कि आपने 40-45 की उम्र तक ठीक बैंक बैलेंस, घर और गाड़ी जैसी चीज़ें जोड़ ली और अपने बच्चों के लिए उड़ने का प्लेटफॉर्म बना दिया, लेकिन इन्हें पता है कि इनमें से ज़्यादातर के बच्चे भी गरीबी का ऐसा ही दंश झेलेंगे। इस वजह से ये लाइन में लगकर ज़िंदगी से लड़ते हैं..."

नदीम कुछ कहने को हुआ तो वाइवा सा दे रहे गुरदीप की आवाज़ ने उसे दबा दिया।

"इस बेचारे को मेरी कोई बात समझ नहीं आई होगी पर ये वैसे ही मुस्कुरा रहा है जैसे आपके तानों पर मुस्कुरा रहा था। हम जीवन के वीडियो गेम की रोटी, कपड़ा और मकान वाली स्टेज से बहुत आगे निकल चुके हैं और इसका जीवन ही उनके पीछे भागना है। कार या तकियों पर बढ़े टैक्स की झुंझलाहट हर सांस में जीने का टैक्स देने वालों पर मत निकालो भाई।"

जिसका डर था वही हुआ...सामने महिला की गोद में खेल रहा बचा रो दिया और रेल की रफ़्तार में हिलते गुरदीप के विचारों की रेलगाड़ी का मोनोलॉग भी टूट गया। कुछ बातें कह दी, कई बातें रह गई! नदीम की सांस में सांस आई कि तभी गुरदीप ने कहा...

"एक बात और!"

सत्यानाश! नदीम की आँखें जैसे पूछ रही हों कि भाई नाली में लिटा-लिटा कर बुरी तरह पीट लिया अब...और भी कुछ बचा है?

"सही और गलत समझने के लिए और दूसरों के हक की बात करने के लिए लाल सलाम ब्रिगेड वाला होना ज़रूरी नहीं।"

नॉकआउट घूंसा पड़ चुका था और नदीम गृहशोभा पढ़ने की एक्टिंग करने लगा।

समाप्त!
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