झेल ले बिटिया...फिर तो राज करेगी
हर संयुक्त परिवार में सूरज बड़जात्या की "हम साथ साथ है" जैसी फिल्मो की तरह सतयुग सा माहौल होता है, यह भ्रम था कीर्ति और उसके परिवार को जो कीर्ति की शादी होते ही टूट गया। ससुराल में 5 भाइयों में कीर्ति तीसरे नंबर के भाई विनोद कि वधु बनी। कीर्ति अपनी ससुराल में खुश नहीं थी, जैसे सपने देखे थे वैसा कुछ नहीं था। वैसे एक प्यार करने वाला पति, चुपचाप बैठे ससुर जी और जेठ-देवर थे पर समस्या सासू माँ से थी। जो कीर्ति और उसकी 2 जेठानियों के लिए एक सास कम हिटलर ज़्यादा थी। बुज़ुर्ग होते हुए भी किसी बिगड़ैल किशोर सा अहंकार, बहुओं पर तरह-तरह की पाबंदियां, काम सही होने पर भी ताने और गलती होने पर तो बहुओं से ऐसा बर्ताव होता था जैसे उनकी वजह से दुनिया में प्रलय आ गयी। अब कीर्ति को पछतावा हो रहा था कि काश उसने शादी से पहले जेठानियों से किसी तरह बात कर ली होती। शादी के तुरंत बाद जब कीर्ति ने अपनी व्यथा अपने मायके में सुनाई तो माँ-बाप ने दिलासा देते हुए समझाया कि 4-5 साल सहन कर लो उसके बाद सास वैसे ही उम्रदराज़ होकर या तो अक्षम सी हो जायेंगी या परलोक सिधार जायेंगी। फिर तू अपने घर में राज करना।
22 वर्ष बाद सभी भाइयों की शादी हो चुकी है, सबके स्कूल-कॉलिज में पढ़ रहे बड़े बच्चे है। सास की दिनचर्या पहले की तरह सीमा पर तैनात एक सैनिक की तरह है, उनका स्वास्थ्य स्थिर है। कीर्ति के ससुर जी और माता-पिता स्वयं परलोक जा चुके है। कीर्ति के बड़े जेठ-जेठानी कुछ महीनो पहले लम्बी बीमारियों के बाद छोटे अंतराल में नहीं रहे। अब वह अपनी दूसरी जेठानी की तेरहवी में रिश्तेदारो और पंडितों को संभाल रही है, पीछे से सासू माँ का कोसना, टोकना, धक्का देना अनवरत जारी है।
दूर के कुछ रिश्तेदार आपस में बात कर रहे है।
"सेठ जी का पोता (सबसे बड़े लड़के का बेटा) जल्दी नौकरी पर लग गया, अपनी दीपाली के लिए अच्छा रहेगा।"
"पर सुना है सेठानी जी कुछ सनकी है। चौबीसो घंटे बहुओं के पीछे पड़ी रहती है। "
"जल्दी देख लो बाउजी, कहीं लड़का हाथ से निकल ना जाये।... अब मुश्किल से दो-चार बरस का जीवन है इनका, फिर आराम से रहेगी दीपाली।"
उनकी बात सुन रही, पास खड़ी कीर्ति ठहाके मारकर ज़मीन पर लोट गयी।
"....सदमा लगा है बेचारी को, जेठानी-देवरानी नहीं थी ये दोनों तो सहेलियों जैसी थी सच्ची....बहुत बुरा हुआ।"
समाप्त!