Freelance Falcon ~ Weird Jhola-Chhap thing ~ ज़हन

Tuesday, October 16, 2018

#Updates October 2018


Freelance Talents nomination certificate India 5000 Best MSME Award 2018


Event - Sooraj Pocket Books: Baaten, Kitaben, Mulaqaten #2 (30 September 2018)


Google Local Guides Level #06


Event appearance News Dainik Jagran (October 2018) and Dainik Bhaskar (September 2018)

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Dawriter Top Writers list


My Chess24 statistics

Wednesday, September 5, 2018

Book launch & Workshop Event - Comics Theory


Comics Theory Book launch and Workshop (2 September 2018)
1) - Albela (Arvind Negi)
2) - Chori ka Arop (Husain Zamin)
3) - Comics Theory #01 - Ghosts of India (Various)
4) - Savitri (Shambhu Nath Mahto)

कॉमिक्स थ्योरी के सौजन्य से आयोजित कार्यक्रम में कई कलाकारों और पाठकों से मिलने का अवसर मिला। तदम ग्यादू, एम.के. गोयल, अरविंद सिंह, विलक्षण कौशिक (गायक), अनुपम रावत, रोहित शर्मा, व्योमा मिश्रा जी, मोहन शर्मा जी से पहली बार मिलकर मन गदगद हो गया। हालाँकि, ऐसे अवसरों पर अक्सर जितना समय हम चाहते हैं उतना सबके साथ नहीं बिता पाते। कभी-कभी किसी नये चेहरे से मिलने के लिए बढ़ते क़दमों को कोई पुरानी जानी-पहचानी आवाज़ रोक कर बैठा लेती है...बस फिर एक बात से दूसरी बात और नये चेहरों से सीमित चर्चा जिसका बाद में मलाल रह जाता है।

विशेष अतिथिगण किशोर श्रीवास्तव जी, हुसैन सर, अरविन्द साहू जी, व्योमा मैम, ललित शर्मा जी, प्रियदर्शन जी, स्मिता जी और जगदीश जी ने अपने अनमोल अनुभव बाँटे। मनीष मिश्र की आगामी कॉमिक "द हॉरर शो" और ड्रीम कॉमिक्स की अन्य प्रस्तुतियों के पोस्टर सुन्दर और जिज्ञासा बढ़ाने वाले थे। अरविंद सिंह नेगी बड़ी गर्मजोशी से मिले। आज साहित्य को अरविंद जैसे युवा शिल्पियों की ज़रुरत है। उनकी आगामी पुस्तक "अलबेला" के बारे में जो जानकारी सुनी उससे तो लगता है एक बढ़िया उपन्यास पढ़ने को मिलेगा। यहाँ भी उनका मार्गदर्शन शम्भू जी कर रहे हैं।आजकल कॉमिक्स थ्योरी, नन्हे सम्राट में सक्रीय जय भाई और वरिष्ठ कलाकार विवेक कौशिक सर के वर्कशॉप जैसे गागर में सागर थे, जहाँ काफी सीखने को मिला। वर्कशॉप से पहले और बाद में भी जय भाई सभी को समय देने की भरपूर कोशिश कर रहे थे जो देखकर प्रसन्नता हुयी। फैन फेस्ट के बारे में जानकारी देती मोहनीश और आकाश की प्रस्तुति लाजवाब रही, जिस से पता चला कि कितने कम समय में लगातार इस आयोजन का रूप बढ़ता जा रहा है। अच्छी बात ये रही कि मोहनीश ने डिप्लोमेटिक राह ना चुनकर अपने मन की बातें और आयोजन में आने वाली चुनौतियों के बारे में सबको बताया। यू.एफ़.सी. कम्युनिटी से ललित पालीवाल और साथियों ने कार्यक्रम में भागीदारी की, उनकी कॉमिक "बेचारा मोटेलाल" की प्रतियाँ इवेंट में थी। निखिल वर्मा का कॉस्प्ले अबतक का उनका सबसे बढ़िया कॉस्प्ले कहा जा सकता है। कॉमिक्स की थीम पर उनका गेटअप डरावना था।

मेरा अधिकतर समय अभिराज, प्रकाश भल्ला भाई, तन्वी, संजय सिंह और मनीष के साथ गप्पे लड़ाते हुए बीता। मेरा एक छोटा सा सेशन हुआ जिसमें लेखन, कॉमिक्स और साहित्य से जुड़े मन में दबे कुछ विचार कहे। इतने दिग्गज कलाकारों के बीच वैसे ऐसे सेशन के ज़्यादा मायने नहीं लगते।

आयोजन को सफल बनाने में अनुपम रावत, आयुष, अभिराज, तन्वी, अक्षय, अमित, मुर्शीद, दीपक व अन्य साथियों ने बेजोड़ मेहनत दिखायी। वहीं दूर होकर भी शाहब खान और धीरज कुमार ने अपने योगदान दिये। अंत में शम्भू जी का धन्यवाद इतना लोड लेने के लिए, तेज़ बारिश और विपरीत परिस्तिथियों में डटे रहने के लिए और भारतीय कॉमिक्स के अनदेखे पहलुओं पर लबडब करती स्पॉटलाइट मारने के लिए। नयी पीढ़ी के पाठक और कलाकार आपके इन्ही प्रयासों से कई खो चुके कलाकारों, विधाओं और कॉमिक्स के बारे में जानेंगे। आपने कहा था कि आप भारतीय कॉमिक्स परिवेश और इतिहास पर डॉक्टरेट शोध करना चाहते हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि कॉमिक्स थ्योरी, कॉमिक्स फैन डॉक्यूमेंट्री जैसे उपक्रम से आप ऐसा करेंगे और भारतीय कॉमिक्स पर संघर्ष में लबडब करती नहीं...बल्कि परछाईयों के महीन कोण गढ़ती तेज़ स्पॉटलाइट डालेंगे। :)


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Wednesday, August 8, 2018

गृहणी को इज़्ज़त की भीख (कहानी) #ज़हन

Artist - Ningen Enpi

सरकारी बैंक में प्रबंधक कार्तिक आज कई हफ़्तों बाद अपने अंतरिक्ष विज्ञानी दोस्त सतबीर के घर आया हुआ था। सतबीर के घर रात के खाने के बाद बाहर फिल्म देखने का कार्यक्रम था। खाना तैयार होने में कुछ समय था तो दोनों गृहणियाँ पतियों को बैठक में छोड़ अपनी बातों में लग गयीं। इधर कुछ बातों बाद कार्तिक ने मनोरंजन बढ़ाने के लिए कहा - 

"कितनी बचकानी, बेवकूफ़ी भरी बातें करती रहती हैं ये लेडीज़ लोग।"

अपनी बात पर मनचाही सहमति नहीं मिलने और लंबी होती ख़ामोशी तोड़ने के लिए कार्तिक बोला - 
"...मेरा मतलब यहाँ हम दोनों अगर अंगोला के गृह युद्ध की बात कर रहे होंगे तो वहाँ दोनों चचिया ससुर की उनके पड़ोसी से लड़ाई पर बतिया रही होंगी, यहाँ हिमाचल में हुयी उल्का-वृष्टि पर बात होगी तो वहाँ बुआ जी के सिर में पड़े गुमड़े की, इधर भारत की विदेश नीति तो उधर चुन्नी और समीज का कलर कॉम्बिनेशन मिलाया जा रहा होगा। मतलब हद है!"

सतबीर ने कुछ सोच कर कहा - "हाँ, हद तो है..."

कार्तिक ने सहमति पाकर कुछ राहत की सांस ही थी कि..."

सतबीर - "हद है हमारे नज़रिये की! ग़लती से ही सही ठीक किया था सरकार ने जब जनगणना में गृहणियों का कॉलम भिखारियों के पास लगा दिया था। बेचारी अपना सब कुछ दे देती हैं और बदले में इज़्ज़त की चिल्लर तक नहीं मिलती। बराबर के मौके और परवरिश की बात छोड़ देता हूँ....यह बता ये लोग जैसी हैं वैसी ना होतीं तो क्या आज हम लोग ऐसे होते?"

कार्तिक - "भाई, मैं समझा नहीं?"

सतबीर - "मतलब ये लेडीज़ लोग भी विदेश नीति, आर्थिक मंदी, अंतरिक्ष विज्ञान फलाना में हम जैसी रूचि लेती तो क्या हम दोनों के घर उतने आराम से चल पाते जैसे अब चलते हैं? घर की कितनी टेंशन तो ये लोग हम तक आने ही नहीं देती और उसी वजह से हम अपने पेशों में इतना लग कर काम कर पाते हैं और बाहर की सोच पाते हैं। जहाँ हम प्रमोशन, वेतन, अवार्ड आदि में उपलब्धि ढूँढ़ते हैं....ये तो बस पति और परिवार में ही अपने सपने घोल देती हैं। अगर ये लोग अपने सपने हमसे अलग कर लें तो बहुत संभव है कि ये तो बेहतर मकाम पा लें पर हमारी ऐसी तैसी हो जाये। इस तरह आराम से बैठ कर दुनियादारी की बात करना मुश्किल हो जायेगा, ईगो की लंका लगेगी सो अलग! हा हा...ये तो हम जैसे करोड़ों का लाइफ सपोर्ट सिस्टम हैं जिनके बिना हमारा जीवन कोमा में चला जाये। तो गृहणियाँ ऐसी ही सम्पूर्ण और बहुत अच्छी हैं! इनसे बैटमैन बनने की उम्मीद मत लगा वो तू खुद भी नहीं हो सकता। इन्हें भीख सी इज़्ज़त मिले तो लानत है हमपर!"

कार्तिक - "हाँ, हाँ...सतबीर के बच्चे सांस ले ले, मैं समझ गया। आज तो गूगली फेंक दी मेरे भाई ने...."

सतबीर - "रुक अभी ख़त्म नहीं हुआ लेक्चर! एक बात और बता ज़रा...इतनी दुनिया भर की बातें करता है मुझसे, यहाँ तक की ब्रह्माण्ड तक नहीं छोड़ता। अपने प्रोफेशन के बाहर कितनी तोपें उखाड़ी हैं तूने? शर्ट प्रेस करनी आती नहीं है और अंगोला के गृहयुद्ध रुकवा लो इस से..."

हँसते हुए कार्तिक को आज अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण लेक्चर मिला था। 

समाप्त!
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#ज़हन #mohit_trendster #freelance_talents #mohitness

Friday, August 3, 2018

Editor - Ibadat Ishq ki Poetry Collection (Vikas Durga Mahto)


Book - Ibadat Ishq ki (Poetry Collection)
Poet - Vikas Durga Mahto
My role - Editor
Publisher: Sooraj Pocket Books; First edition (31 July 2018)
Language: Hindi
ISBN-10: 9388094018
ISBN-13: 978-9388094016
Package Dimensions: 23 x 18 x 3 cm

इस दौर में लोगों को काव्य से बांधना मुश्किल होता जा रहा है। बचपन से उँगलियों पर रखे मनोरंजन के हर साधन के बीच काव्य कहीं रूठ सा गया है। विकास महतो जैसे कवियों के कारण काव्य जैसे कुछ समय के लिए मान जाता है। किसी ग्लेशियर से अभी-अभी पिघली पावन धारा से उनके शब्द मन में घर कर लेते हैं। बाहरी ट्रेंड को देखकर बहुत से कवि खुद को बंदिशों में रखकर रचना सोचते हैं। ऐसी रचनाएँ कभी अच्छी बन सकती हैं पर उनपर दिखावे की परत साफ़ झलकती है, जैसे वो रचनाकार समाज के मानकों को ज़बरदस्ती रिझाना चाहते हों। विकास की कविताओं, ग़ज़ल-नज़्म काव्य की ख़ास बात ये है कि उनमें किसी तरह का बनावट नहीं है। हर रचना में अनेक भावों का अद्भुत घनत्व झलकता है। उनके मन से निकली भावनाओं का पाठक के मन से जुड़ना तय होता है। कविताओं को कुछ श्रेणियों में बांटा गया है और हर श्रेणी अपने में पूरी लगती है। किताब के लिए दो अतिरिक्त रचनाओं को लिखते हुए मैं डर रहा था कि क्या मैं विकास की रचनाओं के साथ न्याय कर पा रहा हूँ...आशा है आपको किताब पढ़ते हुए वैसा रस मिलेगा जैसा मुझे संपादन करते हुए मिला। 


Tuesday, May 29, 2018

Fiction Comics (First Set)


Fiction Comics Set #01 (with Free Trading Cards and Poster), Congratulations Team FC and Thank you Sushant Panda ji, Basant Panda ji for selecting my stories "Stunt", "Tap...Tap", "Seema Samapt" and "Just Chill" for publication in Horror Diaries #1.

 Just Chill

 Tap...Tap

Seema Samapt

Stunt

Friday, May 25, 2018

सच्चा सैल्यूट (कहानी) #ज़हन


सर्दी का एक शांत दिन। इस मौसम में तापमान और अपराध काफी कम हो गये थे। वार्सा जंगली देहात में नियुक्त हुए नये थानेदार बिमलेश शर्मा ने फाइलों में गुम दीवान से कहा - "इस बार सरकार सख्त है। आप भी कंप्यूटर सीख लो दीवान जी, नहीं तो 60 से पहले रिटायरमेंट पकड़ा देंगे कप्तान साहब।"

"4-5 साल बचे हैं सर। अब दिमाग खपा के क्या करेंगे? जब तक वो ऑडिट-शॉड़िंत करेंगे तब तक वैसे ही रिटायर होने का समय आ जाएगा।"

विमलेश - "अच्छा, थाने के आस-पास ये बुढ़िया कौन घूमती रहती है? इतना मन से सैल्यूट तो सिपाही नहीं मारते जितने मन से वो सैल्यूट करती है।"

दीवान - "अरे वो पागल है सर कुछ भी बड़बड़ाती रहती है। डेढ़ साल से तो मैं ही देख रहा हूँ और सिपाही तो बताते हैं कि मेरे आने से पहले से है। किसी को उसकी बात भी नहीं समझ आती। शायद बच्चा मर गया करके कुछ कहती रहती है। इसके अलावा कोई शब्द कभी, कोई कभी। पता नहीं चलता कि कौन है, कहाँ की है। बोली से यहाँ की तो लगती नहीं। छोड़ो सर, क्यों टाइम ख़राब करना।" 

इस से आगे सवाल करना "सामान्य दुनिया" के लिए बचकाना माना जाता है इसलिए जिज्ञासा होते हुए भी विमलेश चुप हो गया। थाने में जीप से आते जाते हुए बुढ़िया का दिल से किया हुआ सैल्यूट विमलेश का दिल चीर देता था और उन भोली, सच्ची सी आँखों में झाँकने की तो जैसे उसमे हिम्मत ही नहीं थी। नज़रें फेर कर विमलेश ड्राइवर से बात करने या फ़ोन पर व्यस्त होने का नाटक करता। आखिर सिपाहियों और जूनियर अफसरों के सामने उसे खुद को बचकाना थोड़े ही दिखाना था। 

शहर से दूर स्थित इस जंगली क्षेत्र में सरकार और निजी कंपनियों के विस्तार से वन संपदा नष्ट हो रही थी। जंगल की जनजातियों का निवासस्थान और भोजन के स्रोत कम होते जा रहे थे। बड़े शहरों के न्यायालयों में अंट-शंट विस्तारीकरण तोलना आसान है। पहले तो वहाँ पहुँचते-पहुँचते जंगलों की आवाज़ गुम हो जाती है...उसपर बड़े लोगो के पास अपने अनुसार परिष्कृत चिकनी-चुपड़ी भाषा में न्याय की देवी को बरगलाने का पुराना अनुभव है। आदिवासी रोष का फूलता गुब्बारा फोड़ने के लिए एक दुर्घटना काफी थी। दुर्भाग्य से वो बहुत जल्द हो गयी। निर्माणाधीन बांध का हिंसा टूटने से बहे गाँव से आदिवासियों में बहुत गुस्सा भर गया। उन्होंने आस-पास के सरकारी और निजी संस्थानों को घेरकर तोड़फोड़, आगजनी और वहाँ नियुक्त कर्मचारियों को मारना शुरू कर दिया। दंगे जैसी स्थिति में वार्सा थाना भी चपेट में आ गया। थाने के कुछ सिपाही और सीमित संसाधन आदिवासी फ़ौज के सामने पर्याप्त नहीं थे। बाढ़ से अस्त-व्यस्त हुए रास्तों और बाहर से कट चुके वार्सा की भौगोलिक स्थिति के कारण मदद आने में समय लगता। ऊपर से हिंसा बड़े क्षेत्र में फैली थी इसलिए कुछ दिनों तक वहाँ नियुक्त पुलिस बल को खुद ही जूझना था...पर क्या उनके पास कुछ घंटे भी थे या नहीं? 

भीड़ ने थाने के आस-पास आग लगा दी और धीरे-धीरे अपने और ढाई दर्जन पुलिस बल के बीच दूरी कम करने लगे। स्थानीय लोगों और आदिवासी कर्मचारियों को बक्शा जा रहा था बाकी सभी 'शहरी दानवों' को ख़त्म किया जा रहा था। डाकघर, बांध, नरेगा दफ्तर आदि कार्यालयों को पहले ही स्वाहा कर चुके आदिवासीयों का सामना पहली बार बंदूकधारी 'दुश्मन' से था। हवाई फायरिंग बेअसर रही। कुछ सिपाही जंगलों में भागे और कुछ लड़ते हुए मारे गये। पीछे से उड़ती ईंट लगने के बाद विमलेश बेहोश हो गया। बंद होती आँखों को ये एहसास था कि शायद अब वो दोबारा नहीं खुल पायेंगी। 

आँखें दोबारा खुलीं...सूरज की किरणों को रोकता बुढ़िया का मुस्काता चेहरा विमलेश को देख रहा था। जब उसकी आँखें रौशनी के हिसाब से देखने लायक हुई तो बुढ़िया वापस सैल्यूट की मुद्रा में आ गयी। विमलेश को बीते चार दिनों की कुछ बातें याद आ रही थी। इन 4-5 दिनों में बुढ़िया ने झाड़ियों में टिन-प्लास्टिक के सहारे बने अपने छोटे से बसेरे में विमलेश को आदिवासियों की नज़रों से बचा कर रखा था। उस दिन धुएँ, ऊहापोह के बीच बुढ़िया भगदड़ में जगह-जगह से चोटिल, बेहोश थानेदार को खून के प्यासे आदिवासियों के बीच से घसीट लायी थी। बुखार में तपते, कभी होश में आते तो कभी बेसुध होते विमलेश को बुढ़िया अपने गुज़ारे वाला चीनी का पानी और अपने मुँह से चबाये चने खिला रही थी। 

स्थिति अब काबू में थी और अर्धसैनिक बल, आपातकालीन दल क्षेत्र में फ़ैल चुके थे। बूढी अम्मा के सहारे घिसटता हुआ वह किसी तरह अपने स्टेशन तक पहुँचा। विमलेश पागल बुढ़िया को माँ की तरह अपनाकर उसकी देखभाल करने का फैसला कर चुका था। एम्बुलेंस का इंतेज़ार करते स्ट्रेचर पर पड़े विमलेश की नज़रें बूढी अम्मा को ढूँढ रही थीं, जो लोगो की भीड़ में जाने कहाँ गायब हो गयी थी? मन में कुछ आशंका जन्मीं - "कहीं किसी ने उसे दुत्कार कर भगा तो नहीं दिया? भीड़ देखकर वो दूर तो नहीं चली गयी? नहीं-नहीं!" इतने में भीड़ को किनारे करती बुढ़िया विमलेश को पिलाने अपनी चीनी के पानी वाली पन्नी लेकर आयी। झर-झर बहती आँखों से विमलेश स्ट्रेचर पर लड़खड़ा कर खड़ा हुआ...और  बुढ़िया को सैल्यूट करने लगा। 

समाप्त!
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Art - Nikola S.

Thursday, May 24, 2018

Comics Theory Issue #1 Update


Comics Theory's Ghosts of India Issue 1, released now! (Anthology includes 1 short comic by me and Harendra Saini) Recent event - Indie Comix Fest 13 May 2018, Noida/Delhi.
#comics #horror #india #mohitness #comicstheory #anthology

Special edition A3 Size

Wednesday, May 23, 2018

ख्याल...एहसास (ग़ज़ल) #ज़हन


एक ही मेरा जिगरी यार,
तेरी चाल धीमी करने वाला बाज़ार...
मुखबिर एक और चोर,
तेरी गली का तीखा मोड़। 
करवाये जो होश फ़ाख्ता,
तेरे दर का हसीं रास्ता...
कुचले रोज़ निगाहों के खत,
बैरी तेरे घर की चौखट। 

दिखता नहीं जिसे मेरा प्यार,
पीठ किये खड़ी तेरी दीवार...
कभी दीदार कराती पर अक्सर देती झिड़की,
तेरे कमरे की ख़फा सी खिड़की। 
शख्सियत को स्याह में समेटती हरजाई
मद्धम कमज़र्फ तेरी परछाई...
कुछ पल अक्स कैद कर कहता के तू जाए ना...
दूर टंगा आईना। 
जाने किसे बचाने तुगलक बने तुर्क,
तेरे मोहल्ले के बड़े-बुज़ुर्ग। 

...और इन सबके धंधे में देती दख़्ल,
काटे धड़कन की फसल,
मेरी हीर की शक्ल...
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Wednesday, April 11, 2018

उल्लास की आवाज़ (कहानी) #ज़हन

Artwork - Igor Vitkovskiy

जीव विज्ञानी डॉक्टर कोटल और उनके नेतृत्व में कुछ अनुसंधानकर्ताओं का दल प्रशांत महासागर स्थित एक दुर्गम द्वीपसमूह पर कई महीनों से टिका हुआ था। उनका उद्देश्य वहाँ रहने वाले कबीलों में बेहतर जीवन के लिए जागरूकता फैलाना था। स्थानीय धर्म सूमा के रीती-रिवाज़ों में हज़ारों कबीलेवासी अपनी सेहत और जान-माल से खिलवाड़ करते रहते थे। इतने कठिन और अजीब नियमों वाले सूमा धर्म में जागरूकता या बदलाव के लिए कोई स्थान नहीं था। अलग-अलग तरीकों से कबीले वालों को समझाना नाकाम हो रहा था। वीडियो व ऑडियो संदेश, कबीलों के पास खाद्य सामग्री या दवाई गिराना, रिमोट संचालित रोबॉट से संदेश आदि काम जंगलियों को जागरूक करने के बजाय भ्रमित कर रहे थे।

जब हर प्रयास निरर्थक लगने लगा तो डॉक्टर कोटल ने स्वयं जंगलियों के बीच जाकर उन्हें समझाने का फैसला किया। इस जोखिम भरे विचार पर दल के बाकी सदस्य पीछे हट गये। किसी तरह डॉक्टर केवल अनुवादक को अपने साथ रहने के लिए समझा पाये। बिना सुरक्षा के जंगली सीमा में घुसते ही दोनों को बंदी बना लिया गया। कुछ कबीलों की संयुक्त सभा में डॉक्टर और अनुवादक को एक खंबे से बाँध कर उनकी मंशा और पिछले कामों के बारे में पूछा गया। 

डॉक्टर ने अपनी तरफ से भरसक कोशिश की, और अपनी बात इस तरह ख़त्म की - "....हम आपके दुश्मन नहीं हैं। बाहर की उन्नत दुनिया में यहाँ फैले कई रोगों के इलाज और परेशानियों के हल हैं। एक बार हमें मौका देकर देखिए।"

अपनी जान के लिए कांपते और डॉक्टर को कोसते अनुवादक ने तेज़ी से कोटल की बात को जंगलियों की भाषा में दोहराया। 


जवाब में कबीलों के वरिष्ठ सदस्य ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे। उन्होंने अनुवादक को बताया की सूमा धर्म सबसे उन्नत है और बाकी बातें व्यर्थ हैं। डॉक्टर कोटल को सूमा के ईश्वर ने उन सबकी परीक्षा लेने के लिए भेजा है।

अचानक अंतरिक्ष से गिरा एक विशालकाय पत्थर डॉक्टर कोटल और उनके अनुवादक पर बरसा और दोनों की मौके पर ही मृत्यु हो गयी। कोई बड़ी उल्का पृथ्वी का वायुमंडल पार करते हुए बड़े टुकड़ो में उस द्वीपसमूह पर बरसी थी। 

इस घटना में कोई जंगली नहीं मरा। उन सबका विश्वास पक्का हुआ कि उनके धर्म से ना डिगने के कारण वो ज़िंदा रहे जबकि बाहरी अधर्मी लोग मारे गये। सभी उल्लास में "हुह-हुह-हुह..." की आवाज़ निकालकर नृत्य करने लगे। 

जंगली नहीं देख पाये कि उल्का के कई टुकड़े सुप्त ज्वालामुखी में ऐसे कोण पर लगे की वह जाग्रत होकर फट गया। गर्म लावे का फव्वारा द्वीपसमूह पर आग की बारिश करने लगा। कुछ देर पहले तक सूमा धर्म के गुणगान गाते जंगली जान बचाकर भागने लगे। अधिकांश गर्म बरसात में मारे गये और जो ओट में बच गये उनकी तरफ आग की नदी तेज़ी से बढ़ रही थी। फिर भी अगर कोई बच गया तो उल्कापिंडो से समुद्र में उठी सुनामी कुछ मिनटों में दस्तक देने वाली थी। ज़मीनी सतह से काफी ढका होने के कारण दबाव में ज्वालामुखी भी उल्लास में "हुह-हुह-हुह..." की आवाज़ निकाल रहा था...शायद मन ही मन सूमा के ईश्वर का गुणगान और नृत्य भी कर रहा हो।

समाप्त!
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Thursday, April 5, 2018

रोग में मिला जोग...स्वर्ग में बनी शादी (कहानी) #ज़हन

Artwork - Vinj Gagui

मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर जैना गर्भावस्था में ली कुछ महीनों की छुट्टी के बाद हॉस्पिटल काम पर लौटी थीं। रोज़ के काम के बीच कुछ कागज़ों ने जैना का ध्यान खींचा। शाम तक उन कागज़ों की बात जैना के मन में गोते लगा रही थी। आखिरकार उसने विभाग की नर्स से अपनी शंका का समाधान करना उचित समझा। 

"ये रिटायर्ड मेजर उत्कर्ष और मिस कोमल कैसे गायब हो गये? दोनों की मानसिक हालत दयनीय थी। मुझे तो लगा था...अभी कम से कम मेरे प्रसव के कई महीनों बाद तक इनका इलाज चलेगा।"

नर्स को ज़्यादा जानकारी नहीं थी, उसने इतना ही बताया - "डॉक्टर, उन दोनों ने शादी कर ली। उसके कुछ समय बाद दोनों का ट्रीटमेंट बंद हो गया।"

जवाब में जैना विस्मित सी केवल "क्या!" बोल पायी। 

अब तो इन दोनों में उसकी जिज्ञासा और बढ़ गयी थी। अन्य डॉक्टर एवम कर्मचारियों से संतोषजनक जानकारी ना मिल पाने की वजह से पूरी बात जानने के लिए जैना ने उनके घर जाने का फैसला किया। कोमल सालों तक घरेलु हिंसा की शिकार तलाकशुदा औरत थी और उत्कर्ष पड़ोसी देश से युद्ध की विभीषिका झेल चुका पूर्व-सैनिक था। इतने मानसिक और शारीरिक शोषण के बाद कोमल टूटकर गंभीर अवसाद में रहा करती थी। वहीं उत्कर्ष जंग में खून की नदियों में नहाकर पी.टी.एस.डी. (पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) से पीड़ित होकर अवसाद, घुटन से जूझ रहा था। दोनों के उपचार में जैना ने न जाने कितने जतन किये थे पर उसे अधिक सफलता नहीं मिल पायी थी। अब ऐसा क्या हो गया जो इतने कम वक़्त में ना सिर्फ दोनों ठीक हो गये बल्कि दो से एक हो गये। जैना नवदंपत्ति के घर पहुँची। दोनों ने अपने दुख की घड़ियों के एक पुराने साथी का स्वागत किया। औचारिकताओं के बाद जैना मुद्दे पर आयी। 

"...तो जो काम इतने टाइम मैं और मेरी टीम नहीं कर सकी वो प्यार ने कर दिया? जबसे आप दोनों के बारे में सुना है तबसे ये सवाल परेशान कर रहा है।"

कोमल चहक कर बोली - "हाँ डॉक्टर, प्यार ने भी और नफरत ने भी।"

जैना की उलझन और बढ़ गयी - "नफरत? मैं समझी नहीं। हॉस्पिटल में मानसिक रोगियों को ऐसे नकारात्मक शब्द तो हम लोग बोलने भी नहीं देते थे। तो फिर  इस से इलाज कैसे हो गया?"

उत्कर्ष ने मुस्कान देते हुए समझाया - "डरिये मत, हम दोनों ने आपकी कही हर बात पर अमल किया है। कहते हैं किसी एक बात के लिए प्यार होना...दो लोगो को करीब ला सकता है। जैसे घूमने के शौक में, कला के शौक में या किसी एक विषय के पागलपन में पड़े दो लोग कब एक दूसरे की तरफ आकर्षित हो जाएं पता भी नहीं चलता। हम लोग हॉस्पिटल में मिले और एक चीज़ के लिए दोनों की नफरत हमें पास ले आयी।"

जैना की जिज्ञासा के शांत होते ज्वालामुखी में से आख़री भभका निकला - "कौनसी चीज़?"

उत्कर्ष - "हिंसा!....हिंसा के प्रति हम दोनों का गुस्सा, उस से जन्मी घुटन से दोनों की दुश्मनी में कब हम एक-दूजे का दर्द समझने लगे...और मरहम लगाने लगे पता ही नहीं चला। कुछ ही हफ़्तों में जैसे पूरी ज़िन्दगी का लदा बोझ उतर गया और हम सामान्य जीवन जीने लगे। डॉक्टर, कभी-कभी दो दर्द एक-दूसरे का ध्यान बँटाकर ख़त्म हो जाते हैं। 

समाप्त!
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Wednesday, April 4, 2018

एड्रनलिन रश वाली झुरझुरी (कहानी) #ज़हन


दिलीप ने चलती गाड़ी से शराब की बोतल सड़क पर पटकी। नशे में कार चला रहे उसके दोस्त हफ़ीज़ ने उसे टोका। 
"ऐसे बोतल नहीं फेंकनी चाहिए! जानवरों और लोगों के पैरों में कांच चुभ सकता है। दुपहिया वालों का एक्सीडेंट हो सकता है।"
दिलीप ने उसे झिड़का - "साले! पापा को मत सीखा और कार भी नशे में नहीं चलानी चाहिए....लोग मर सकते हैं। फ़िर भी चला रहा है ना तू?"

हफ़ीज़ का मूड़ ठीक करने के लिए दिलीप दार्शनिक स्टाइल में आ गया।
"शराब, चरस में टुन्न रहना ही नशा नहीं है। भाई जीवन जी, मौज कर....एड्रनलिन रश को समझ! यूँ बिना देखे कार घुमा देना, बिना सोचे बोतल से लेकर किसी बेवक़ूफ़ की हड्डी तोड़ देना इस सब से जो झुरझुरी मचती है शरीर में उसे महसूस कर। भाड़ में गयी दुनिया!"

हफ़ीज़ की आशंका सच हो गयी और बोतल का बड़ा टुकड़ा अँधेरे में सड़क पार करती एक महिला माया की चप्पल चीरता हुआ उसके पैर में घुस गया। चोट के कारण अगले दिन माया जिस घर की सफाई और बर्तन करने जाती थी वहाँ जाने में लेट हो गयी। इधर सुबह-सुबह दिलीप को अचानक खांसी का दौरा उठा और शराब-गांजे के नशे में उसके मुँह और सांस की नली में उल्टी भर गयी। घर के बाकी सदस्य नींद में होने और माया के देर से आने के कारण जीवन के लिए दिलीप के संघर्ष  को कोई सुन नहीं पाया। दिलीप उसी दुनिया में सांस लेने को तड़प रहा था जिसे अक्सर भाड़ में भेजकर उसे एड्रनलिन रश वाली झुरझुरी मिलती थी। कुछ ही समय में उसकी मौत हो गयी। 

अपने बिगड़ैल बेटे को खोकर बिलख रहे परिवार के बीच माया सिसक रही थी। काम के बहाने खाली कमरे की आड़ में आकर उसकी सिसकारी हल्की हँसी में बदल गयी। आखिर एड्रनलिन रश की झुरझुरी पर केवल अमीरों का हक़ थोड़े ही है।

समाप्त!
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Sunday, March 25, 2018

Updates #ज़हन

23 March Shaheed Diwas Poetry

*)  - बसंती चोला मैला ना हो... 
...तो विदेशी लिबास में ढक लिया,
पीढ़ियों को आज़ाद करने...
अदने से पिंजरे का कश लिया!
गैरों की बिसात पर उसकी बात चल गयी....
कागज़ी धमाके से रानी की चमड़ी जल गयी
गर्म दल की आंच पर मुल्क का ठंडा खून उबालने वाला,
साढ़े तेईस बरस का भगत...गोरी हुक़ूमत पर साढ़े साती लाने वाला....


*) - आज़ादी की लहर में दोनों रुख के बंदे बहे, 
जहाँ नर्म दल के सिपहसेलार बने खुदा...
और प्यादे तक बादशाह हो गये,
वही गर्म दल के शहीद अपने ही देश में... 
क्रांतिकारियों से गुण्डे हो गये।

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को उनकी पुण्यतिथि पर नमन! 

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Latest release - Kathputli: A Struggle for Control (Short Movie by Freelance Talents)
Available: Vimeo, 4Shared, Dailymotion, Tumblr etc.


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FTC Season 4 in association with Nazariya Now

Wednesday, February 21, 2018

Bada Munh, Badi Baat - The Mohit Sharma Podcast Show


Nazariya Now Presents : Bada Munh, Badi Baat
''The Mohit Sharma Podcast Show''
Hindi, English
Coming Soon....

नज़रिया नाउ के सौजन्य से एक ऑडियो-पॉडकास्ट शो शुरू कर रहा हूँ। इस पॉडकास्ट शो में सामाजिक, हास्य, कला, प्रेरणादायक विषयों पर बोलूँगा, कभी काव्य-कहानी भी होंगी। आशा है इस नये माध्यम से आप सबके मन में और अधिक जगह बना सकूँ। 


Available: Vimeo, Soundcloud, 4Shared, Clyp, Dailymotion, Tumblr etc.

Tuesday, February 6, 2018

बच्चों के लिए शिक्षाप्रद कहानी #3 - सामान्य जीवन (नींव पत्रिका में प्रकाशित)


बीनू बंदर अपने घर में सबका लाडला था। उसकी हर तरह की ज़िद पूरी की जाती थी। उसका परिवार भारत के उत्तराखण्ड प्रदेश स्थित जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय पार्क में रहता था। जंगल में अन्य युवा बंदर ऊँचे से ऊँचे पेड़ों पर लटकने, चढ़ने का अभ्यास करते रहते थे। वहीं बीनू को यह सब रास नहीं आता था। किसी के टोकने पर बीनू कहता कि जंगल के बाकी जीवों की तरह हमें सामान्य जीवन जीना चाहिए। उनकी तरह धरती पर विचरण करना चाहिए। छोटा और गुस्सैल होने के कारण कोई उसे अधिक टोकता भी नहीं था। एक बार वर्षा ऋतु में जंगल के बड़े हिस्से में बाढ़ आ गयी। बंदर समुदाय ने कई जीवों की जान बचायी जबकि बीनू मुश्किल से अपनी जान बचा पाया। 

बीनू निराश था कि वह अन्य बंदरों की तरह जंगल के जानवरों की मदद नहीं कर पा रहा था। बाढ़ का पानी सामान्य होने के बाद बीनू के माता-पिता ने उसे समझाया। हर जीव की कुछ प्रवृत्ति होती है, जो उसके अनुसार सामान्य होती है। संभव है अन्य जीवों के लिए जो सामान्य हो वह तुम्हारे लिए ना हो। इस घटना से बीनू को अपना सबक मिला और वह तन्मयता से पेड़ों पर चढ़ना और लटकना सीखने में लग गया।

समाप्त!

Monday, February 5, 2018

बच्चों के लिए शिक्षाप्रद कहानी #2 - अवसर का लाभ (नींव पत्रिका में प्रकाशित)


मीता को खेलों में बड़ी रूचि थी। वह बड़ी होकर किसी खेल की एक सफल खिलाडी बनना चाहती थी। एक बार मीता के स्कूल में जूनियर क्रिकेट कैंप का आयोजन तय हुआ। इस कैंप में जबलपुर, मध्य प्रदेश शहर के स्कूली लड़कों और लड़कियों की अलग प्रतियोगिता होनी थी। कैंप में अच्छा प्रदर्शन करने वाले बच्चों को भविष्य के लिए छात्रवृत्ति दी जाती। मीता ने सोचा कि क्रिकेट तो लड़कियों का खेल नहीं है। क्रिकेट में सिर्फ लड़कों का भविष्य है। उसने कैंप के लिए आवेदन नहीं दिया। क्रिकेट कैंप के दौरान ही भारतीय महिला क्रिकेट टीम विश्व कप में उप-विजेता रही। इस खबर के बाद कैंप को अधिक प्रायोजक मिल गये। 

मीता की कक्षा की एक लड़की सौम्या को छात्रवृत्ति मिली और वह जूनियर स्तर की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम में भी चुन ली गयी। अन्य खेलों में मीता हमेशा सौम्या से आगे रहती थी। अगर वह क्रिकेट कैंप में हिस्सा लेती तो निश्चित ही सौम्या की जगह सफलता पाती। मीता को सबक मिला कि जानकारी के अभाव में किसी अवसर को छोड़ देना गलत है। अगर किसी में प्रतिभा और लगन है तो किसी भी खेल में सफलता पायी जा सकती है। कोई खेल केवल लड़कों या लड़कियों के लिए नहीं बना है। मीता ने अब से हर अवसर का लाभ उठाने का निश्चय किया। 

समाप्त!

Sunday, February 4, 2018

बच्चों के लिए शिक्षाप्रद कहानी #1 - पर्यटन का महत्त्व (नींव पत्रिका में प्रकाशित)


गुजरात स्थित गिर राष्ट्रीय उद्यान, वन्य अभ्यारण्य कई जीव-जन्तुओं को आश्रय देता है। वहाँ रहने वाले कुछ विद्वान जानवरों के बीच ज्ञान की होड़ थी। कोई किताबें पढता, कोई इंटरनेट पर खोजता तो कोई बड़े-बूढ़ों के साथ समय बिताता। हर विद्वान जानवर कई तरह से जानकारी हासिल करने की कोशिश में लगा रहता। हर वर्ष होने वाली विद्वानों की बैठक का समय था। सब विद्वान एक-दूसरे से अपना ज्ञान साझा करते और फिर सर्वसम्मति से विजेता की घोषणा की जाती थी। पिछले 12 वर्षों से भोला भालू सबसे बड़े विद्वान का खिताब जीत रहा था। इस बार भी विद्वानों की बैठक में भोला की जीत हुई। भोला मंच पर आया। उसने बताया कि वह इस प्रतियोगिता से संन्यास ले रहा है ताकि अन्य विद्वानों को अवसर मिल सके। साथ ही उसने अपनी जीत का राज बताया। 

भोला - "जंगल के सभी विद्वान ज्ञान का भण्डार हैं। एक जैसे स्रोत होने के कारण सबकी जानकारी लगभग बराबर है। मेरी अतिरिक्त जानकारी और अनुभव के पीछे पर्यटन का हाथ है। मैं देश-विदेश के मनोरम स्थानों पर घूमने जाता हूँ। वहाँ रहने वाले जीवों से मिलता हूँ। उनका अलग रहन-सहन देखता हूँ। उनसे वहाँ प्रचलित कई बातें सीखता हूँ। इस तरह किताबी जानकारी के साथ मैं वास्तविक जीवन का अनुभव जोड़ता रहता हूँ। यही कारण है कि मैं इतने लम्बे समय से गिर का सबसे बड़ा विद्वान बन रहा था।"

समाप्त!

Saturday, February 3, 2018

नये उपन्यास में नज़्म


शुभानंद कृत मास्टरमाइंड (जावेद, अमर, जॉन सीरीज) नॉवेल में प्रकाशित नज़्म।


अभी तो सिर्फ मेरी मौजूदगी को माना,
दिमाग में दबे दरिन्दों से मिलकर जाना। 
तुझे तड़पा-तड़पा कर है खाना,
पीछे दरिया रास्ता दे तो चले जाना।

कभी किसी की चीख से आँखों को सेका है?
कभी बच्चे का जिस्म तेज़ाब से पिघलते देखा है?
अभी वक़्त है...रास्ते से हट जाओ,
किसी का दर्द दिखे तो पलट जाओ।
जिसकी दस्तक पर दिलेरी दम तोड़ती है...
मौत से नज़रे मत मिलाओ!

क़ातिल आँधियों मे किसका ये असर है?
दिखता क्यों नहीं है हवा मे जो ज़हर है?
चीखें सूखती सी कहाँ मेरा बशर है?
ये उनका शहर है...

धुँधला आसमां क्यों शाम-ओ-सहर है?
आदमख़ोर जैसा लगता क्यों सफ़र है?
ढ़लता क्यों नहीं है ये कैसा पहर है?
ये उनका शहर है...

जानें लीलती है ख़ूनी जो नहर है.
माझी क्यों ना समझे कश्ती पर लहर है?
हुआ एक जैसा सबका क्यों हश्र है?
ये उनका शहर है...


रोके क्यों ना रुकता...हर दम ये कहर है?
है सबके जो ऊपर..कहाँ उसकी मेहर है?
जानी तेरी रहमत किस्मत जो सिफर है!
ये उनका शहर है....

इंसानों को तोले दौलत का ग़दर है!
नज़र जाए जहाँ तक मौत का मंज़र है!
उजड़ी बस्तियों मे मेरा घर किधर है?
ये उनका शहर है...
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#ज़हन

हाल ही में आयोजित सूरज पॉकेट बुक्स कार्यक्रम में यह नज़्म मंच पर पढ़ी। 

Wednesday, January 31, 2018

Sooraj Pocket Books Event, Delhi (January 2018)


28 जनवरी 2018 को पीतमपुरा, दिल्ली में सूरज पॉकेट बुक्स के पहले आयोजन में शिरकत करने और मंच संचालन का मौका मिला। लेखक शुभानंद जी के नये नॉवेल "मास्टरमाइंड" में मेरी नज़्म शामिल थी। इस तरह सूरज पॉकेट बुक्स में यह मेरी तीसरी पोएट्री थी। भविष्य में इस प्रकाशन के साथ कुछ और किताबों में मेरा काम पढ़ने को मिलेगा। 

with Anadi Shubhanand, Deven Pandey

यह इवेंट सफल रहा...जहाँ कई युवा लेखक, कवि दिख रहे थे, वहीं परशुराम शर्मा जी, आबिद रिज़वी जी, आशा शैली जी और किशोर श्रीवास्तव जी जैसे वरिष्ठ साहित्यकार मौजूद थे। अपनी कुछ नज़्म, काव्य पेश किये और कुछ यादगार साक्षात्कार लिये। पहली एंकरिंग में कई बातें पता चली, आगे ध्यान रखकर और बेहतर करने की कोशिश रहेगी।


with Jai Khohwal, Anshu Dhusia, Mithilesh Gupta

with Co-host Mithilesh Gupta


जल्द ही इवेंट से जुड़ीं अन्य बातें, साक्षात्कार और नज़्म की वीडियो-ऑडियो पोस्ट होंगी। 

Friday, January 26, 2018

Aksar Shab-e-Tanhai mein (Reshma Song Cover) | Mohit Trendster


अक्सर शब-ए तन्हाई में... (स्वर्गीय रेशमा कवर गीत) - मोहित शर्मा ज़हन
बड़ी हिम्मत जुटाकर यह नज़्म गाने की कोशिश कर रहा हूँ। मेरे ऑडियो पॉडकास्ट, वक्तव्य, हास्य और फिक्शन आप सबने पसंद किये हैं, आशा है येकवर आपको पसंद आये।

Aksar shab-e-tanhai mein (Reshma ji cover song) #folk #reshma #mohit_trendster 
Other web-links: VimeoSoundcloudTumblrMediafire4shared etc

Thursday, January 25, 2018

रहनुमा अक्स (नज़्म) #mohit_trendster


पिघलती रौशनी में यादों का रक़्स,
गुज़रे जन्म की गलियों में गुम शख़्स,
कलियों की ओस उड़ने से पहले का वक़्त।  
शबनम में हरजाई सा रंग आया है,
जबसे तेरे अक्स को रहनुमा बनाया है...

तेरे दर का सरफिरा रास्ता, 
इश्क़ की डोर में वाबस्ता, 
दिल में मिल्कियत...हाथ में गुलाब सस्ता। 
उपरवाले ने अब मेरी दुआओं का हिसाब बनाया है,
जबसे तेरे अक्स को रहनुमा बनाया है... 

नारियल सा किसका नसीब,
माना जिन्हे रक़ीब, 
निकले वो अपने हसीब। 
वक़्त की चुगली में जाने कितना वक़्त बिताया है,
जबसे तेरे अक्स को रहनुमा बनाया है... 

कहना उनको बात पुरानी हो गयी,
बचपन की अंगड़ाई जवानी हो गयी,
बिना पाबंदी मन की मनाही। 
दरख्तों की खुरचन पर दौर की स्याही,
12 सालों पर भारी जैसे एक कुम्भ छाया है,
जबसे तेरे अक्स को रहनुमा बनाया है...

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#ज़हन

Thumbnail Art - Gaston S Garcia‎
My second SoundCloud Channel

Sunday, January 14, 2018

#Update Kids Magazine

Hey everyone! :D I have recently started working as a voice-over artist and author (different age groups) for bilingual kids magazine Neev. नींव बाल पत्रिका के विभिन्न आयु वर्गों के लिए वॉइस-ओवर (ऑडियो) और लेखन शुरू किया।

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...also Co-judged Kalamkaar 2017 Contest (RD Magazine)
#neev #mohitness #voicetalent #update #mohit_trendster