Fiction
"टीचर ने कहा है की अगर बोर्डस मे किसी को नाम बदलवाना है तो अभी बदलवा ले. सब मुझे टीचर के सामने ही चिढाने लगे की मैडम इनका बदलवा दीजिये. मेरा नाम युद्धवीर है. नाम तो अच्छा है पर कद और शरीर साधारण से भी कम है जिस वजह से मेरे सहपाठी और दोस्त मुझे चिढाते है की ये है युद्धवीर! पर ये नाम मेरे अभिभावकों ने बड़े अरमानो से रखा है ऐसे कैसे बदलवा दूँ? आज मुझे भी गुस्सा आ गया, मन मजबूत होना चाहिए...तन तो बस दिखावा है. ऊपर से वो टीचर भी हसने लगी, फर्जी बी.एड. कहीं की....उसका भतीजा कुशाग्र, मेरे साथ पढता था वो भी तरह-तरह के तानो से मुझसे नाम बदलवाने की बात कहने लगा. मैंने लगभग चिल्लाकर अपने टीचर से कहा "मैडम, तेज बुद्धि यानी कुशाग्र का भी नाम बदलना चाहिए......आपकी वजह से बड़ी मुश्किल से अब तक पास होता आया है. अब बोर्ड्स मे पता नहीं क्या हो?" फिर मै अगले दिन से स्कूल नहीं गया. एडमिट कार्ड पहले ही मिल गया था....अब किसी दूसरे सेंटर पर एक्साम देना था बस...फिर इंटर दूसरे स्कूल से करूँगा.
पिता जी सचिवालय मे है तो सरकारी घर मिला हुआ है. घर के बाहर बड़ा लौन है. उसमे हमने तो कुछ नहीं लगाया पर हमसे जो पहले रहते होंगे उन्होंने कई पौधे लगा रखे थे. उन पौधों को हर दूसरे दिन पानी दे देता हूँ. गर्मियों के सीजन मे रोज़ पानी देता हूँ. पानी की दिक्कत है तो पाईप की जगह 1-2 बाल्टी डाल देता हूँ. लौन मे ही 2-3 "पवित्र" तुलसी के पौधे है. मै उनको कभी पानी नहीं देता या देता हूँ तो बहुत कम जो बाल्टी मे बच जाता है सबको पानी देने के बाद बल्कि मै तो बचा हुआ पानी बाकी पौधों के पत्तो पर छिड़क देता हूँ पर तुलसी जी को दूर से नमस्कार कर लेता हूँ.
क्यों?
बात ये है की पिता जी, माता जी, भाई साहब, तीनो सुबह पूजा-पाठ करके सूर्य को जल चढ़ाते है. फिर वो तीनो अलग-अलग छोटी बाल्टी से "तुलसी जी" के पौधों को जलमग्न कर देते है. तो जब इतनी वाटर लोगिंग वो पहले ही कर देते है वो लोग तो मै तुलसी को जल क्यों दूँ? मुझे पता है कोई न कोई तो उन्हें पानी दे ही देगा. एक बार तो मुझे याद है की मै गर्मी की छुट्टियों मे नानी के वहाँ गया...कुछ दिनों बाद वापस आकर देखा की सारे पौधे गर्मी मे सुख गए है पर तुलसी जी के तीनो पौधे चटकीले हरे थे, जैसे बाकी पौधों को चिढ़ा रहे हों. तो ये रूढ़िवादिता का डर भर है. मै ये नहीं कह रहा की तुलसी को जल मत दो पर जब इतना कष्ट कर ही रहे हो तो बाकी पौधों को भी पानी दे दो. माना तुलसी का पुराणों मे वर्णन है पर कई पौधों को मारकर इक्का-दुक्का पौधों को सींचकर आपको कौनसा पुण्य मिलेगा?
घर वाले रेडियो सुनते नहीं और जिस स्कूल की बात की उनसे अब मेरा कोई मतलब नहीं....वैसे तो कई स्कूल ऐसे होते है....अच्छा सर जी...टाटा! गुड बाय!"
........समाप्त!