”बहरी दुनिया” रैगिंग पर आधारित एक संदेश है, यह कविता मैंने 2006 मे लिखी थी तब यह समस्या अब के मुकाबले बड़ी थी। भारत में पिछले दो दशकों में जागरूकता के स्तर मे काफी सुधार हुआ है। पहले की तुलना में अब शिक्षा की अहमियत समझी जा रही है पर इस सुधार के अलावा तेज़ी से बढती जनसँख्या की वजह से बड़ी डिग्रीयां भी जीवन यापन के लिये विषम होती जा रहे समाज मे छोटी पड़ रहीं है। विज्ञानं, कला और इनके अंतर्गत पढ़ायी जाने वाली बातों पर तो शासन और जनता का ध्यान रहता है पर डिग्री पाकर पैसा कमाने की होड़ मे मानव मूल्यों का महत्व घट रहा है और यही रैगिंग जैसे सामाजिक अभिशाप के पनपने का कारण है।
रैगिंग जो आज बन गयी उसका प्रारंभिक अर्थ कुछ और था, यानी अपने जूनियर विद्यार्थियों को नये माहौल से सहज करना और उनसे जान पहचान बढ़ाना ताकि भविष्य मे छात्र किसी ज़रुरत में एक दूसरे के काम आ सके। अक्सर होता भी यह है कि शैक्षिक वर्ष की शुरुआत में ऐसी गतिविधियों घर से दूर पहली बार आये छात्र-छात्राओं को आने वाले समय के लिए तैयार करती है।
ज़्यादातर छात्र किसी का बुरा नहीं चाहते पर अपने दल के कुछ शरारती तत्वों को दल के अच्छे सदस्य दोस्ती के नाते रोकते नहीं है जिसका नतीजा ये होता है की उन खुराफाती-दूषित लोगो को मिली छुट के अनुसार मनमानी की जाती है। जूनियरस से बदसलूकी होती है, उन्हें अपमानजनक स्थितियों में डाला जाता है, उनसे अमानवीय, भयावह काम करवाये जाते है। कभी-कभी इलास्टिक की तरह इंसान को उसकी हद तक…तब तक खींचा जाता है जब तक वो मानसिक या शारीरिक रूप से ‘टूट’ ना जाये। अब तक घर के संरक्षित माहौल मे जीते आये कुछ युवा ये बदलाव सहन नहीं कर पाते और आत्महत्या तक कर लेते है। कितना अजीब सौदा है ना की थोड़ी देर या कुछ दिन के मज़े के लिए किसी को गहरा मानसिक या शारीरिक आघात देना? रैगिंग करने वाले तर्क देते है की ये तो हर साल की बात हुयी …पिछले साल हमारी रैगिंग हुयी थी, अभी हमने किया, अगले साल तुम करना। गलत काम को सही नहीं ठहराया जा सकता, खासकर तब जब इस से कई लोग पागल हो गए हों, कईयों ने आत्महत्या की हो या उनका सामाजिक दायरा हमेशा के लिए उन्ही तक सिमट कर रह गया हो। अगर कल कोई खूनी, चोर या बलात्कारी अपना गुनाह छुपाने के लिए ऐसे तर्क दे तो आपका खून खौल जायेगा। कानून के डर से अब शैक्षिक संस्थानों मे ऐसी घटनाएँ काफी कम हो गयी है पर उसी डर से अब कई सीनियरस अपने से छोटो की मदद या उनसे व्यवहार तक रखने से कतराते है। वैसे भारत जैसे विशाल देश मे कम घटनाओ का मतलब भी हजारो घटनायें होता है। शैक्षिक संस्थानों को प्रोफेसरस की देख रेख मे बड़ो और छोटों की सभायें नियमित रूप से आयोजित करनी चाहिये।
सौमेंद्र ने अपने अंदाज़ मे एक बार फिर सुन्दर चित्रण किया है, फेनिल शेरडीवाला जी को धन्यवाद। सामाजिक विषयों पर फेनिल जी सहयोग के लिए सदैव तत्पर रहते है। अंत मे यही कहूँगा कि प्यार से कमायी इज्ज़त ज्यादा टिकाऊ होती है और किसी व्यक्ति से कुछ महीने डर से मिली इज्ज़त के बाद उसी से ज़िन्दगी भर गालियाँ ही मिलती है।
आपका मोहित शर्मा
Behri Duniya exclusively at Fenil Comics. Artwork by Soumendra Majumder and Colors & Effects by Manabendra Majumder.