Freelance Falcon ~ Weird Jhola-Chhap thing ~ ज़हन

Tuesday, July 29, 2014

मरो मेरे साथ : Maro Mere Saath! (Audio Book Info)


**Achievement Unlocked** Boltikahani Team created an Audio Book/Story on my Horror novella “Maro Mere Saath! - मरो मेरे साथ!” (2008). I loved the style & energy of gifted Voice Over artist who managed over a dozen characters single-handedly (want to remain anonymous). More audio books on recent works soon! 

*) – Bolti Kahani Website

*) – Vimeo

*) – Youtube 


*) - Boltikahani Mobile App 

*On Soundcloud, Dailymotion and other similar websites soon.

- Mohit Sharma Trendster #mohitness #audiobook #boltikahani — with Mohit Sharma.


Pic From my blog Mohit-O-Graphy

Monday, July 28, 2014

Pages from Kargil Chapter (Long Live Inquilab! - Book # 2)


Chapter # 1 – Ghulam-e-Hind (Kargil Tribute) from upcoming Long Live Inquilab! (Book 2). Artwork - Husain Zamin, Concept, Poetry & Script - Mohit Sharma (Trendster)

Video: Kargil – Long Live Inquilab!










रूह गुलाम-ए-हिन्द दिवानी,
सजी दुलहन सी बने सयानी।
फसलों की बहार फिर कभी ….
गाँव के त्यौहार बाद में …
मौसम और कुछ याद फिर कभी ….
ख्वाबो की उड़ान बाद में।
मांगती जो न दाना पानी,
जैसे राज़ी से इसकी चल जानी?
रूह गुलाम-ए-हिन्द दिवानी।
वाकिफ है सब अपने जुलेखा मिजाज़ से,
मकरूज़ रही दुनिया हमारे खलूस पर,
बस चंद सरफिरो को यह बात है समझानी,
रूह गुलाम-ए-हिन्द दिवानी।
वक़्त की धूल ज़हन से झाड़,
शिवलिंग से क्यों लगे पहाड़?
बरसो शहादत का चढ़ा खुमार,
पीढ़ियों पर वतन का बंधा उधार,
काट ज़ालिम के शीश उतार।
बलि चढ़ा कर दे मनमानी,
रूह गुलाम-ए-हिन्द दिवानी।
यहीं अज़ान यहीं कर कीर्तन,
यहीं दीवाली और मोहर्रम,
मोमिन है सब बात ये जानी,
रूह गुलाम-ए-हिन्द दिवानी।
काफिर कौन बदले मायने,
किसी निज़ाम को दिख गए आईने।
दगाबाज़ जो थे ….चुनिन्दा कर दिये,
आड़ लिए ऊपर दहशत वाले …कुछ दिनों मे परिंदा कर दिये।
ज़मीन की इज्ज़त लूटने आये बेगैरत ….
जुम्मे के पाक दिन ही शर्मिंदा हो गये।
बह चले हुकुम के दावे सारे ….जंग खायी बोफोर्स ….
छंट गया सुर्ख धुआं कब का….दब गया ज़ालिम शोर ….
रह गया वादी और दिलो में सिर्फ….Point 4875 से गूँजा “Yeh Dil Maange More!!”
ज़मी मुझे सुला ले माँ से आँचल में ….और जिया तो मालूम है …
अपनी गिनती की साँसों में यादों की फांसे चुभ जानी …
रूह गुलाम-ए-हिन्द दिवानी।


Next Chapter of this Book on Neerja Bhanot

Friday, July 25, 2014

सुनहरी जो मीरा - मोहित शर्मा (ज़हन)



वधू से साधू फली,
लाल जोड़े में दमक पीताम्बरी,
राणा जी की विषैली जलन धुली... 
सुनहरी जो मीरा स्याह कान्हा में घुली। 

श्याम से रंग की आस लिये पिये विष प्याले,
भला कलियुग, भले इसके बंदे,
जोगन को दुनियादारी सिखाने चले। 

सावन वो पावन कर गयी,
जिसको डुबाती नदिया दो धारा हुयी, 
सजदे में अकबर की नज़रे झुक गयी,
सुनहरी जो मीरा स्याह कान्हा में घुली। 

जाने कैसा मोह, जाने कौन सहारा,
एक उसकी वीणा, दूजा जग सारा। 

तानो की अगन यूँ सही,
काँटो की सेज पर सोयी, 
रूखी सी ऋतुओं में निश्चल वो रही, 
सुनहरी जो मीरा स्याह कान्हा में घुली। 

अब तक बस शहजादों - परवानो के किस्सों को लकीर माना,
फिर एक नयी दीवानी को जाना,
उसने मन की मूरत को चुना,
दुनिया जिसे भ्रम कहती रही,
उस वहम से सच्चा इश्क़ बुना। 

सहस्त्रों में बाँट तुम संयत रही, 
फिर प्रेम मोल दो पटरानी जी,
उस जोगन को भी अपना श्याम दो रुकमणी,  
सुनहरी जो मीरा कान्हा में घुली। 

- मोहित शर्मा (ज़हन)
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*) - Hindi-Urdu Experiment.

*) - Mirabai was a great saint and devotee of Sri Krishna. Despite facing criticism and hostility from her own family, she lived an exemplary saintly life and composed many devotional bhajans. Historical information about the life of Mirabai is a matter of some scholarly debate. The oldest biographical account was Priyadas’s commentary in Nabhadas’ Sri Bhaktammal in 1712. Nevertheless there are many aural histories, which give an insight into this unique poet and Saint of India. More: http://www.poetseers.org/the-poetseers/mirabai/index.html


Monday, July 21, 2014

खंडित धर्म का विलाप - मोहित शर्मा (ज़हन)



कई सौ वर्ष पहले की बात है एक राज्य के सबसे बड़े तीर्थ स्थलों में से एक मंदिर के बाहर जमावड़ा लगा था। कुछ लोगो में बहस हो रही थी की क्या आम-चीत में भगवान, देवी-देवताओं की उपमा देना ठीक है या नहीं। पुराणों, ग्रंथो में अनगिनत वृतांत, दोहे, दृश्य एवम संवाद वर्णित थे जो अनेक प्रकार के स्वभावो वाले मनुष्यों के जीवन की लगभग हर बात को समेटे हुए थे साथ ही कैसी परिस्थिति में कैसा आचरण आदर्श है यह भी बताते थे। सभी इस विषय पर वृद्ध पुजारी जी से सलाह चाहते थे। पुजारी जी ने समझाया की भगवान या धर्म के नाम पर कभी उग्र ना हों, इष्ट जन की ग्रंथो से अलग उपमा करना ठीक है पर यह ध्यान रखा जाये की इन बातों में देवों का सम्मान हो और भक्त उलटी-सीधी चर्चा में भगवान को लाने के बजाये अपने विवेक से काम लेकर ऐसा कुछ करें। 

राज्य बड़ा था जिसमे विभिन्न सूत्रों द्वारा जगह-जगह इस घटना और पुजारी जी की कही बात के वास्तविक रूप से बहुत अलग रूपों में बताया गया परिणाम स्वरुप भ्रांतियों फैलने लगी।  कहीं दूर के क्षेत्र में किसी ने उपमा को तुलना सुन लिया तो वहाँ की जनता सभी की तुलना देवों से करने लगे। "तू बड़ा घुमक्कड़ है, बिलकुल नारद ऋषि की तरह।", "मेरी छोटी लड़की तो काली माई है पूरी।" 

धीरे-धीरे यह आचरण आस-पास के इलाकों में पहुंचा। अपने पहले चरणों में बात गंभीर नहीं थी पर असामाजिक व् कुंठित तत्वों द्वारा फैलायीं अफवाहें बढ़ने लगी। राज्य का एक बड़ा घटक मानने लगा की किसी भी तरह की काल्पनिक कहानियों में भी भगवानो को लाया जा सकता है। जो उल्टा पूछे या सवाल किये जाने पर कोई ऐसी अफवाहों का उद्गम ना बता कर, ना उस बारे में सर खपा कर आराम से कह देता की तीर्थ के बड़े पुजारी जी ने बताया है, जबकि ऐसी बातों पर पुजारी जी का स्पष्टीकरण कुछ लोगो तक आकर ही दम तोड़ देता क्योकि चटपटी अफवाह, भ्रांति के सामने रूखे स्पष्टीकरण का क्या काम? खैर, पुजारी जी चिंतित तो हुए पर उनके जीवनकाल मे फिर भी धर्म की एक सीमा रही। 

पीढ़ियां बढ़ी, सैकड़ों वर्ष निकले और यह कमज़ोर भ्रांतियाँ विकराल रूप लेती चली गयी। कल्पना की उड़ान में भगवान के अनेको रूपों का उपहास उड़ाया जाने लगा, कुछ देवी-देवताओं की छवि काल्पनिक साहित्य में इतनी नकारात्मक दिखाई गयी की वो कई लोगो की घृणा के पात्र बने और वास्तविक पुराणों, ग्रंथों से तथ्य-मिथक सत्यापित करने के बजाय उनमे से कुछ नास्तिक और धर्म के कट्टर आलोचक बन गये जो धर्म के अनुयायियों की गलती का ठीकरा भी धर्म पर फोड़ने लगे, साथ ही खुद ऐसी भ्रांतियों के चलते फिरते कारखाने बन गये। धर्म की शक्ति देख बाज़ारीकरण का दानव भी हावी हो रहा था। 

समय के साथ बाहरी तत्व राज्य में घुले। कुछ धर्म सनातन की धारा से अलग होकर बने। कुछ नये धर्म, परंपरायें व्यापार या आक्रमण से यहाँ लाये गये। दूसरे तत्वों से मिलना ठीक था पर उनसे घुलकर एवम भ्रांतियों के जाल से अभिशप्त यह धर्म अपने घटक-गुण भुलाने लगा जिनकी जगह बाहरी तत्वों की सन्धि से बना परिवेश बनाने लगा। अब तक ना जाने कितनी बार अपने मतलब के लिये और जनता को शांत रखने के लिये इतिहास से खिलवाड़ किया गया, हर शासक द्वारा अपने स्वार्थ में इतिहास को बदला गया, अब तक अफवाहों की भी भरमार हो चुकी थी। एक समय समृद्ध राष्ट्र आज घिसट-घिसट कर बढ़ रहा था। 

तीर्थ श्रेष्ठ के पुजारी जी की आत्मा कई जीवन और योनियों में जन्म लेकर मोक्ष को प्राप्त होने बढे, पर तीर्थ में भगवान की आराधना के तेज से अपने पुजारी जन्म की स्मृतियाँ अब भी उनमे प्रबल थी। उन्होंने देवदूतो से धरती, अपने राज्य, तीर्थ, अपने वंशजों का हाल देखने की इच्छा जतायी, उनकी इच्छा का दूतो ने सम्मान किया और उन्हें उनके इच्छित स्थानो पर भ्रमण करवाया। धरती का हाल देख पुजारी जी विचलित हो गये, मानव जैसे मानव ना होकर प्रेत योनि के नीच जन सा आचरण कर रहे थे, हर जगह त्राहि-त्राहि थी। उनके पूर्व राज्य का आधा हिस्सा किसी और राष्ट्र ने हड़प लिया, जिसकी सीमा में उनका तीर्थ सिद्ध पीठ मंदिर था जिसको अलग संप्रदाय के कट्टर अनुयायियों ने शैतान के घर की उपाधि देकर खंडित कर दिया। कभी पुजारी रही आत्मा में अब इतना रोष और शोक था जितना कभी इन्होने अपने किसी जीवन में अनुभव ना किया हो। 

अपने वंशजो के बारे में जानने का कोतूहल हुआ। इनके वंशजो में से एक ने माहौल और अपने ही देश मे खिल्ली उड़ाये जाने का हवाला देकर अपना और अपने प्रियजनों का धर्मान्तरण करवा लिया था। धर्म बदलने के बाद यह चौथी पीढ़ी थी जिनमे सनातन धर्म के प्रति हीन भावना और उटपटांग अफवाहें थी जो अब बुरी तरह बदले इतिहास के अनुसार थी। जब पुजारी जी की आत्मा को अपनी इस पीढ़ी के व्यवसाय का पता चला तो मोक्ष पाने बढ़ रही पूर्ण, शांत आत्मा अशांत, अतृप्त सी हो गयी - उस पुजारी जिसने अपना एक जीवन तीर्थो मे श्रेष्ठ के चरणो में बिताया, उसके वंशज अंतः वस्त्रों, चप्पलों का दूसरे देशो में व्यापार करते है जिनपर देवी-देवताओं के चित्र अंकित होते है। 

पुजारी जी की अब अतृप्त आत्मा ने सोचा सब मेरे कारण हुआ। अगर उस  भगवान की आम बात-चीत में उपमा के प्रश्न पर या तुलना, काल्पनिकता आने पर किसी तरह तब सख्ती दिखायी जाती तो धीरे-धीरे इतनी विकट स्थिति ना आती की अपनी संस्कृति, देश, धर्म का लोग स्वयं ही उपहास उड़ाते, तोड़े-मरोड़े इतिहास को बिना शंकायें-विरोध किये मानते, हीन मानते, धर्म बदल लेते और आँखें मूँद कर "आज़ादी-आज़ादी" बिना उसका मतलब जाने चिल्लाकर खुद को 'दकियानूसी' लोगो  से ऊपर और बेहतर मानते। हर अवसर पर सीमा लाँघने के विरोध पर भोले जवाब मिलते की देखो अब तक तो इतना हो चुका है, हमने तो बस थोड़ी सी छूट लेकर ज़रा सा प्रयोग किया है। बात तो सही थी पर वर्षो से ज़रा-ज़रा दशमलव जुड़कर अब राक्षस सा रूप ले चुके थे। बाकी धर्मो के अवलोकन में पुजारी जी ने पाया की निंदक, आलोचक तो उनके भी बहुत थे पर इस स्तर का मज़ाक कहीं और बर्दाश्त नहीं किया जाता था। कुछ धर्मो में तो उनके ईश की उपमा देना तक इस आधुनिक युग में वर्जित था, उसपर भी ईश निंदा पर मृत्यु की सज़ा जैसे कानून जिसको तोड़ने वाले ना के बराबर अनुयायी या आलोचक थे। जो पुजारी जी के धर्म में युगो से चल रहा था,  यानी इस धर्म को दोहरी मार सहनी पड़ रही थी।

आत्मा ने देवदूतों से क्षमा मांगी और अपने अतृप्त हो जाने की बात बताई जिस कारण अब मुक्ति संभव नहीं थी। 

"मेरी सजा यही है की मैं अपने खंडित तीर्थ के खंडरो में दिव्य अवशेषों की सेवा करता रहूँ अनंतकाल तक।"

समाप्त!
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*Street Art - L 7 M

*Javier G.

Sunday, July 20, 2014

Monologue Video - Bhukamp Peedit Ulkapind

Bhukamp Peedit Ulkapind (Prince Ayush & Mohit Trendster)

Youtube Video - Watch Bhukamp Peedit Ulkapind


*We apologize for average video and voice over quality.
Bhukamp peedit Ulkapind
  1. Nahi! Mai Bhukamp peedit nahi hun. Shehar mey Bhukamp aaya hai iska matlab ye to nahi ki us din kisi ke ghar antriksh se Ulkapind nahi gir sakti?” Haso mat!
  1. Arre koi meri baat kyu nahi maan raha? Sab hase hi jaa rahe hai. Mere ghar mey Ulkapind gira hai.
  1. Dekho…wait..mai lambi saans leta hun…shuru se batata hun.
  1. Humara domanjila makaan hai. Upar kiraydaar rehte hai aur neeche meri family. Mere parivaar mey mere mummy-papa hai jo Gaon….mera matlab Goa vacation par gaye hai. Kirayedaar young couple hai.
  1. Subah zor se ek dhamake ki aawaz huyi jaise sabse purani waali Mahabharat mey 2 teer takrate the to jo aawaz hoti thi waisi waali aawaz….aur maine mehsoos kiya ki meri baahon mey koi hai. Maine socha roz ki tarah sapna hoga aur upar waali Bhabhi hongi jab aankh khulengi to Kaamwaali ki jhaadu se udi dhool se Good Morning hogi.
  1. Par ek to dhamaka phir aaj sapne se ulat Bhabhi bahut kulmula rahi thi baahon mey, aankhen khuli to dekha meri baahon mey Bhabhi ki jagah Bhaiya chhatpate hue keh rahe the ki“Bhagwan k liye mujhe jaane de, Darinde!”
  1. Upar roof mey ched ho gaya tha jis se aasmaan dikhai de raha tha. Kamre aur Hall ko ghere hue ek badi chattan type padi thi jisme se dhuan nikal raha tha. Bhabhi aur Kaamwaali ka kuch ata-pata nahi tha kyoki Ulkapind seedhe unpar gira tha.
  1. Tabhi gande kapdo mey ek sundar si yuvati mere paas aayi aur boli….
“Bhaiya! Pair hatao, poochha lagana hai.”
  1. Ulkapind k jaadui asar se Kaamwaali Bai khoobsurat ho gayi thi. Tabhi nighty pehne hue Lasith Malinga hamare saamne aa gaya. To mai aur Bhaiya uske saath selfies aur autograph lene ki zid karne lage….Malinga Bola…
“Arre Murakh…mai teri bhabhi hun…”
Ulka k Jaadu se Bhabhi ki shakl Malinga jaisi lag rahi thi.
The End!