अंतर्राष्ट्रीय साइकिल रेस के लिए चुना गया नेचुरल कोर्स शिव के लिए नया नहीं था। आखिर यही वह रास्ता था जहाँ वो वर्षो से प्रतिदिन अभ्यास करता था। उसके मित्रों और जानने वालो को पूरा विश्वास था कि यह रेस जीतकर शिव अंतर्राष्ट्रीय सितारा बन जाएगा। कॉलेज में कुछ हफ्ते पहले ही उसको यह दर्जा मिल गया था। शिव के कोच राजीव मेहरा मानकर बैठे थे कि अगर उस दिन कुछ ऊँच नीच हुयी, तब भी शिव शुरुआती कुछ रेसर्स में आकर बड़ी इनामी राशि अर्जित कर लेगा। स्थानीय कंपनियों में यह बात फैली तो उससे कुछ स्पोंसर्स जुड़ गये।
रेस का दिन आया और रेस शुरू हुयी। पहले चरण में शिव काफी पीछे रहा, लोगो ने माना कि शायद वह अपनी ऊर्जा बचा रहा है या यह उसकी कोई रणनीति है। पर रेस ख़त्म होने पर कुशल साइकिलिस्ट शिव औसत 17वें स्थान पर आया। स्थानीय लोगो और उसके करीबियों में अविश्वास और रोष था। जो रेस शुरू होने से पहले लाइमलाईट लेने में सबसे आगे थे, वही कोच और स्पोंसर्स रेस के बाद ताने देने वालो में सबसे आगे थे। जबकि एक शून्य में खोया शिव प्रतियोगिता की घोषणा के दिन से ही अलग उधेड़बुन में था।
माहौल शांत होने के बाद एक शाम अपने मित्र सुदीप्तो के सामने उसने अपना दिल खोला।
शिव - "मैंने खुद को बहुत समझाया पर मन को समझा नहीं पाया। मुझे लगा कि एक रास्ता जिसके हर मोड़, उंच-नीच यहाँ तक कि हवाओं की दिशा तक से मैं इतना करीब से परिचित हूँ पर मेरा जीतना अनैतिक होगा, एक चीटिंग होगी बाकी साइकिलिस्टस के साथ। धीरे-धीरे यह बातें मेरे दिमाग पर इतनी हावी हों गयी कि रेस के दिन वो बोझ मेरे पैरों, मेरे शरीर पर महसूस होने लगा और परिणाम तुम जानते ही हो।"
सुदीप्तो - "भाई, पहली बात तो ये कि दिमाग बड़ी कुत्ती चीज़ है, किसी मामले में बिलकुल परफेक्ट और कहीं-कहीं बिलकुल फ़िर जाता है। तो यह जो तुम्हारे साथ हुआ ये किसी के साथ भी हो सकता था। किसी बात में जब हमे सीधा लाभ मिलता है और हम किसी भी रूप में प्रतिस्पर्धा का हिस्सा होतें है तो कभी-कभी अपराधबोध लगता है कि हमे मिली यह बढ़त तो गलत है। पर इस बढ़त को एक मौके की तरह देखो जिसे पाकर तुम अपने और अपने आस-पास के लोगो के लिए एक बेहतर कल सुनिश्चित कर सकते हो। सोचो अगर यह रेस तुम जीतते तो अपने साथ-साथ कई लोगो का जीवन बदल देते और क्या पता आगे इस पूरे कस्बे की तस्वीर बदल देते। जहाँ तक अनैतिक बढ़त या चीटिंग की बात है वह तो तुम अब भी कर रहे हो, बल्कि हम सब करते है।"
शिव - "भला वो कैसे?"
सुदीप्तो - "तुम्हारे साधन-संपन्न माता-पिता है, क्या यह उन लोगो के साथ चीटिंग नहीं जो बचपन में ही अनाथ हो गए या जो किसी स्थिति के कारण गरीब है? तुम 6 फुट और एथलेटिक बॉडी वाले इंसान हों, क्या यह उन लोगो पर अनैतिक प्राकृतिक बढ़त नहीं जो अपाहिज है? तुम्हारे क्षेत्र में शान्ति है, क्या यह देश और दुनिया के उन लोगो पर बढ़त नहीं जिन्हे युद्ध के साये में जीवन काटना पड़ता है?"
शिव - "इस तरह तो मैंने कभी सोचा ही नहीं।"
सुदीप्तो - "इस तरह सोचोगे तो कभी जीवन में कोई मौका भुना नहीं पाओगे। ऐसे एंगल से सब सोचने लगे तो दुनिया के सारे काम उलट-पुलट जायेंगे। हाँ, हमे कुछ बातों में दूसरो पर प्राकृतिक या अन्य बढ़त हासिल है पर कुछ बातों में दूसरो को लाभ है। पते की बात यह है कि हम स्वयं को बेहतर बनाने में और अपने काम को अच्छे ढंग से करने पर ध्यान दें, अब अगली रेस कि तैयारी करो। गुड लक!"
समाप्त!
- मोहित शर्मा (ज़हन)
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