Freelance Falcon ~ Weird Jhola-Chhap thing ~ ज़हन

Wednesday, February 22, 2017

स्लीपर क्लास पत्नी, फर्स्ट ए.सी. पति (कहानी)


कुंठा अगर लंबे समय तक मन में रहे तो एक विकार बन जाती है। कुंठित व्यक्ति यूँ ही गढ़ी बातों को बिना कारण विकराल रूप दे डालता है। कुछ ऐसा ही हाल विकल को अपने मित्र और बिज़नस पार्टनर चरणप्रीत का लग रहा था। एक बार व्यापार से जुड़े मामले में दोनों मित्र कार से दूसरे शहर जा रहे थे। सफर 6-7 घंटे का था और एक-डेढ़ घंटो में ही दोनों कार के स्टीरियो में पड़ी एकमात्र सीडी के गानो से ऊब गए थे। चरणप्रीत ने रेडियो ट्यून करने की कोशिश की पर बड़ी खरखराहट के साथ आ रही आवाज़ सुनकर उसने रेडियो बंद कर दिया। फिर समय काटने के लिए और जगे रहने के लिए विकल और चरणप्रीत बातें करने लगे। वैसे समय तो दोपहर का था पर चरणप्रीत को इतनी लंबी ड्राइविंग की आदत नहीं थी। 

एक बात से दूसरी बात निकली और चरणप्रीत के घर की बात होने लगी। विकल ने कुछ हिम्मत जुटा कर कहा। 
"भाई! बुरा मत मानना पर भाभी को लेकर तेरी एक आदत नोट की है।"

चरणप्रीत चौंका कि आखिर उसके जीवन की ऐसी कौनसी बात दिख गई विकल को, उत्सुकतावश तुरंत ही वह बोल पड़ा -
"पहले बात बता फिर सोचूंगा कि उसपर बुरा मानना है या नहीं...अरे मज़ाक कर रहा हूँ! तू तो अपना याडी है, तेरी बात का बुरा मानूँगा तो फिर हो लिया काम।"

विकल - "मैंने देखा है तू भाभी के साथ पराया सा बर्ताव करता है। जैसे खुद तू पर्सनल ट्रिप, बिज़नस ट्रिप में प्लेन से जाता है पर पिछले महीने और उस से पहले भी मैंने देखा कि तूने भाभी को ट्रेन में मुम्बई से उनके घर मैनपुरी भेजा। अपने जन्मदिन पर ऑफिस के चपरासी तक को तूने होटल में पार्टी दी थी और अपने घर तू किशन चाइनीज कार्नर से सस्ता खाना पैक करवाकर ले गया था। ये तो वो कुछ बातें जो मुझे याद आ रहीं है ऐसे छोटा-मोटा कुछ न कुछ दिखता है तेरा..."

चरणप्रीत ने गहरी सांस ली और बोला। "थैंक यू भाई, मुझे लगा यह बोझ हमेशा दिल में ही रह जाएगा। अच्छा लगा तूने इतना ध्यान दिया। कभी कोई सीरियल, एड या किताब में देखना अरेंज मैरिज केवल लड़कियों की समस्या की तरह दिखाई जाती है...जैसे हम लड़को को तो सब मनमुताबिक मिल जाता है, कोई समझौता नहीं करना पड़ता। जब मेरी शादी हुई तब मैं तैयार नहीं था पर घरवालो को समझाना मुश्किल हो रहा था। मैं कुछ समय और बिना ज़िम्मेदारी के पढ़ना चाहता था, कुछ बेहतर करना चाहता था पर किसी को मेरी बात समझ नहीं आयी? तो मेरी औकात के हिसाब से शादी हो गई। जैसे मान ले मैं तब रेलवे का 'स्लीपर क्लास' डब्बा था और मेरी औकात के अनुसार एक 'स्लीपर क्लास' टाइप लड़की से मेरी शादी हुई। समय के साथ धूप में खाल जलाकर, धुएं से धुँधले हुए शहर में अपने फेफड़े ख़राब कर, बीमारियां पालकर मैंने बिज़नस बनाया और आज मैं स्लीपर क्लास की औकात से ऊपर आकर 'फर्स्ट क्लास ए.सी.' डब्बा बन गया पर मेरी पत्नी तो स्लीपर क्लास ही रही ना, जब उसने स्लीपर का टिकेट लेकर मुझसे शादी की तो उसे किसलिए मैं फर्स्ट ए.सी. में सफर कराऊँ?"

विकल - "हाँ तेरे साथ गलत हुआ। लाइफ इज नॉट फेयर, पर यार जीवन में कदम-कदम पर हर किसी के साथ गलत होता है। तू समाज का बदला अपनी जीवनसंगिनी से क्यों ले रहा है? भाभी तो बेचारी कभी शिकायत नहीं करती, नहीं तो कोई और होती तो तू शायद चैन से सो तक नहीं पाता। यह कोई खेल थोड़े ही है कि जीवन में तेरे विरुद्ध कुछ पॉइंट्स हुए तो तू अपनी शर्तो पर जीवन से बदला लेकर उसके विरुद्ध पॉइंट्स बनाएगा। अपनों को बेवजह दुश्मन मत बना, कुंठा के पर्दे हटाकर एक बार उनकी आँखों का समर्पण, प्रेम देखना वो तुझसे शादी करते समय भी फर्स्ट ए.सी. था और अब भी!"

विकल की बातों से चरणप्रीत की आँखें नम होने को थी इसलिए उसने बहाने से अपना मुँह फेर लिया।

समाप्त!

- मोहित शर्मा ज़हन

Thursday, February 16, 2017

छूटी डोर (कहानी)


हिन्दी, अंग्रेजी साहित्य के बहुत बड़े समीक्षक-आलोचक, अनुवादक श्री अनूप चौबे का टी.वी. साक्षात्कार चल रहा था। साक्षात्कारकर्ता अनूप के पुराने मित्र नकुल प्रसाद थे। कुछ सवालो बाद नकुल को एक बात याद आ गई और अपने साथ लाये सवालो के बीच उन्होंने एक सवाल रखा। 

"आपने पहले कई बार अपना उपन्यास, कथा/काव्य संग्रह लिखने की मंशा मुझसे साझा की थी। उस बारे में कुछ बताएं?"

हालाँकि, यह इंटरव्यू लाइव नहीं था पर चौबे जी असहज हो गए। कुछ संभलने के बाद उन्होंने फिर बोलना शुरू किया। 

"वर्षो तक एक के बाद एक ना जाने कितनी कहानियों, कविताओं और उपन्यासों को पास से देखा। कई बार तो किसी रचना के लेखक, कवि से अधिक उस रचना के साथ समय बिताया। दूसरो के गढ़े काल्पनिक जगत में गलतियां, कमियां निकालने का जूनून पता नहीं कब आदत में बदल गया। एक समीक्षक की तरह लिखना या अनुवाद करना अलग है पर जब भी लेखक की तरह कुछ लिखता हूँ तो मेरी यह आदत किसी मीनिया की तरह मेरा पीछा करती है। अपनी कल्पना के कुछ वाक्य पूरे करते ही मन उनपर अपना नकारात्मक फरमान सुना देता है। अपना लिखा मेरी नज़र से कभी पास हो ही नहीं पाता है जो किसी और तक पहुँच पाये। कभी-कभी तो रात में उठकर पिछले दिन लिखे पन्ने फाड़े हैं ताकि चैन से सो सकूँ।"

नकुल प्रसाद - "ओह! क्षमा चाहता हूँ! मुझे यह स्थिति पता नहीं थी। आप चिंता मत कीजिये, मैं वो सवाल और आपकी प्रतिक्रिया एडिट करवा दूंगा।"

अनूप चौबे - "कोई बात नहीं...अगर मैंने यह क्षेत्र ना चुना होता तो शायद मैं अच्छा साहित्य लिख पाता क्योकि सच कहूँ तो रचना की अपूर्णता, उसकी कमियां ही उसका साज-श्रृंगार हैं। ऐसी बातें ही रचना की एक अलग छाप बनाती हैं। आपने देखा होगा कैसे कोई अपने चेहरे की कमी बताता है और उसकी वही चीज़ जिसे वह कमी मानता है अक्सर लोगो को पसंद आती है। सबसे बड़ी रचनाकार प्रकृति जो हमे मरते दम तक अपनी कलाकृतियों से विस्मित करती है, में पूर्णता से दूर अनगिनत छूटी डोर हैं। साहित्य में सामाजिक दायरे की फ्रीक्वेंसी पर सेट दिमागी पैमाने को संतुष्ट करना असंभव है। चलिए कोई बात नहीं, यह जन्म इस रोल में ही सही..."

समाप्त!

- मोहित शर्मा ज़हन

Wednesday, February 8, 2017

रिया के मम्मी-पापा (डार्क कहानी)


*कमज़ोर दिल के लोग यह कहानी न पढ़ें।*

रिया की मम्मी - "मैं और मेरे पति सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं...कम से कम बाहर से कोई मिले या देखता होगा, वह तो यही कहेगा। कुछ महीने पहले हमारी एकलौती बेटी रिया ने आत्महत्या कर ली। उसका वज़न सामान्य से अधिक था, बस इतनी सी बात थी। भला यह भी कोई बात हुई? काश एक बार मुझसे या अपने पिता से अपना जी बाँट लेती। समाज की यही तो रीत है - हर चीज़ में सामान्य होने की एक सीमा/रेंज है। जैसे शादी इतने साल से इतने साल तक हुई तो ठीक इसके बाहर तो बर्बाद, इतना शरीर सामान्य, इसके ऊपर या नीचे बर्बाद, इतनी पढाई ठीक....इसके नीचे बर्बाद! अब हम बड़े तो एकबार सुनकर फिर अपने-अपने काम में लग जाते हैं पर बेचारे बच्चे कहाँ तक समझे और कितना सहें? उनके जीवन में ध्यान बँटाने वाली ज़िम्मेदारियां नहीं होती ना!

बच्ची की कमी न महसूस हो इसलिए रिया के पापा उसके साथ की तीन और बच्चियाँ उठा लाये। आखिर बाप का दिल है, मैं भी क्या समझाती इन्हें? ये 3 वही लड़कियां हैं जो रिया के मोटापे का मज़ाक बनाती रहती थी। इतना कोमल मन था मेरी बच्ची का, किसी का दर्द नहीं देख पाती थी पर जाने कितने महीने अपना दर्द अनदेखा कर छुपाती रही। उसे लगा होगा कि कभी न कभी ये लड़कियां उसके व्यक्तित्व को सराहेंगी, पेंटिंग, डांस, गायन जैसे उसके हुनर शायद उसको सबकी खासकर इन तीनो की "सामान्य रेंज" में ले आएं। ओह! मैं ज़रा खाना देख आऊं, अंदर तीनो बच्ची लोग भूखी होंगी बाकी आगे रिया के पापा बताएंगे।"

रिया के पापा - "आप कहोगे क्या दरिंदे हो गए हैं हम पति-पत्नी? इन लड़कियों को क्यों प्रताड़ित कर रहे हैं? अरे किसी चीज़ की कमी नहीं है इन्हें यहाँ। अच्छे कपडे, किताबें, टी.वी. और खाना! मोटापा कम करने के लिए लाइपोसक्शन नाम का एक ऑपरेशन होता है। इस ऑपरेशन में व्यक्ति के शरीर से अतिरिक्त वसा (फैट) निकाला जाता है। रिया 18 साल की होती और एक बार कहती तो तुरंत उसका यह ऑपरेशन करवा देता पर अभी उसमे 2 साल थे। फिर भी मैंने शहर के 2 ऐसे अस्पतालों के चपरासियों से सेटिंग कर ली है। उन दोनों से मुझे हर हफ्ते शहर में कुछ लोगो के लाइपोसक्शन से निकला 25-30 किलो फैट मिल जाता है। उसी को कच्चा या उसके पकवान बना कर इन्हें बड़े प्यार से खिलाते हैं हम दोनों। बताओ कोई अपने बच्चो के लिए भी करेगा इतना? लो बन गया खाना। इन्हें रिया की चौथी फ्रेंड के बारे में नहीं बताया?"

रिया की मम्मी - "अरे हाँ! तीन नहीं चार थी ये ग्रुप में। तभी हफ्ते का इतना फैट कम पड़ जाता था। वो तो अच्छा हुआ इनमे से एक स्टोर रूम से भागने की कोशिश में रिया के पापा के हाथ आ गई। फिर मैंने और इन्होंने उस लड़की को फैट के कनस्तर में डाला....फिल्मो, सीरियलों में जैसे दलदल में डूबते दिखाते हैं लोगो को वैसे धीरे-धीरे डूबी वो लड़की। ठीक ही हुआ! वो लड़की ही सबसे ज़्यादा चींचां और उल्टियाँ करती थी बाकी तीन तो शांत हैं बेचारी। ये सब छोडो आप अपनी सुनाओ? इस बार खाना खाये बिना नहीं जाने देंगे आपको..."

समाप्त!

- मोहित शर्मा ज़हन

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