इच्छाओं का गला घोंटा,
उम्मीदों की चिता को सेंका.
आँसुओं को आने से पहले मन की भट्टी मे झोंका,
रिश्तो को मजबूरी का खंजर घोंपा.
मुन्ना की पढाई की बलि ली,
बाबू जी के आशीर्वाद की गर्दन रेंती.
पत्नी के दामन पर गोली मारी,
फरमाईशों का सर कुचला मारकर पत्थर भारी.
सबके सपनो की साँसें रोकी,
क्या अच्छी और क्या बुरी हर सोहबत छोड़ी.
कितनी आसानी से जिंदगी की हर चीज़ यहाँ है मिटती.
पर ये भूख.....मारे नहीं मरती!
अच्छी पंक्तिया लिखी है आपने .....
ReplyDelete(आजकल तो मौत भी झूट बोलती है ....)
http://oshotheone.blogspot.com
थोड़ी गहराई लाओ
ReplyDeletegr8
ReplyDeleteBaba, shabdon ke peeche chipe arth ko padhne waale ke upar chod diya hai. Bhookh bhi har tarah ki hoti hai. Paise ki, Kamyabi ki, Roti ki....Aise, har reader par ye kavita apni jakad bana leti hai. Shahi 1 aa raha hai...Taiyar hain!
ReplyDelete