Freelance Falcon ~ Weird Jhola-Chhap thing ~ ज़हन

Wednesday, November 17, 2010

...अब वक़्त है जाने का!



हर ख्वाइश मे अक्स था इस अफसाने का,
हर कोशिश मे सपना था तुझे पाने का!
कल तलक मौके मिले तो दिल नादान बना,
आज हालत ने मौको को किया पल मे फ़ना!

माना की आज गर्दिश मे सफ़र करता हूँ,
ज़हन मे मेरे है पेवस्त हर अफसाना तेरा!
छुपाया था जिस गम को बड़ी खूबी से,
बरस गए बादल तेरी आँखों से वही नमी लेके!

जशन की आड़ मे रुखसत हुआ...साजिश थी मेरी,
बिना रुलाये तुझसे हाथ जो छुड़ाना था!
मुड़ा जो तुझसे तो खुदगर्ज़ क्यों मान लिया?
ये भी एक जरिया है गम को छुपाने का!

ज़माने भर की बुराई लादे फिरता हूँ फिर भी मगर....
पाक साफ़ दिखता है आँखों मे तेरी अक्स दीवाने का?
अपनी हस्ती पर जो हँसती फिरती...
अब वक़्त है उस दुनिया को आइना दिखाने का!

6 comments:

  1. किसकी बात करें-आपकी प्रस्‍तुति की या आपकी रचनाओं की। सब ही तो आनन्‍ददायक हैं।

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  2. बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है

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  3. वाह वाह! बहुत खूब लिखा है..
    आनंद आ गया पढ़ कर..
    यूँ ही लिखते रहे..

    आभार

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  4. Maza aa gaya
    Keep expressing yourself :-)

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  5. bahut khoob likhate hai aap....

    jee karata hai doob jaau aapke rachanasagar me ........thanks

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