1984 के सिख विरोधी दंगे या उनका सामुदायिक संहार श्रीमती इंदिरा गाँधी की मृत्यु के बाद शुरू हुआ भारत का वो काला अध्याय है जिसने हजारो लोगो की बलि ली और कई ज़िंदगियाँ जीते जी बर्बाद हुयी.. लाखो बेघर हुए... और उसके बाद...विडंबना यह है की इतनी बड़ी घटना के बाद कुछ नहीं हुआ. 11 कमीशन बैठाकर औपचारिकता निभाई गयी....हर साल मातम मनाया गया. इस अध्याय से जुडी बातों और तथ्यों को इस कदर मिटा दिया गया और धुन्दला कर दिया गया की आज की पीढ़ी को यह दिखना बंद हो गया की हमारे देश मे ऐसा भी कुछ हुआ था.
यह कविता समर्पित है उन सभी मासूम को और आधारित है आँखों देखे वर्णन और दृश्यों पर!
उस बेरहम वक़्त को झेलती एक जवान सिख लड़की की कहानी......
....84 की टीस (Pogrom 84)
वीरे पग ना पहनियो,
के किस्मत फिर जायेगी.
बरसो टली क़यामत,
आज बस यूँ आयेगी....
आँखों देखा मंज़र क्यों ये दिल ना माने?
खालिस्तानी बोली भिंदरवाले जाने.
आँगन लाल है मेरा, रो-रो लाल है आँखें.
सुबह जिनके पैरो पर अपने हाथ लगाये,
शाम को चिथड़ो मे से हाथ बस पैर वो आये.
अपनी फसले जलाई,
दीवारे घर की ढहाई.
फिर भी मिली ना ठंडक...
तो पग विच आग लगाई.
सीने पर जो वज़न लदा ऐसे,
सांस लूँ अब बता मै कैसे?
देखे कोई मुझे आसमां से,
खोल रखा है घर के दरो को,
आओ-आओ मुझे मार डालो.
गूँजते नारों ने बताया,
जिसमे मैंने होश संभाला,
हर सावन का झूला डाला,
मेरा देश है वो पराया!
रंगीन टी.वी. जो तू प्यार से लाया,
लाल सड़क पर उसमे तुझे मरता दिखाया.
ढकने सावन को पतझड़ आया,
अब लंगर नहीं लगाता गली का गुरुद्वारा.
भारी और नम हवा कुछ बताये....
खून की गंध अपनों की लाये.
कहते किसको क़यामत पता क्या?
लुट गया मेरा जो भी जहाँ था.
दौड़ी बी जी मेरी चौक तक यूँ,
कितनी चीखें सुनी क्या बताऊँ?
हार कर कानो पर हाथ आये,
तब भी ज़ेहन से चीखें ना जाये.
राशन-वोटर कार्ड कभी अपने काम ना आये,
सरकारी दफ्तरों से उनकी लिस्ट वो लाये.
सुर्ख निशान घरो पे हमारे बनाये,
सोचती हूँ कहाँ है उसका कलेजा?
लाशों से जो वो लिस्ट मिलाये.
जीते जी मैंने इज्ज़त बचा ली,
खुद ही अपनी नस काट डाली.
बेरहम मौत तब भी ना आये,
दर्द अब तो सहा ना जाये.
घर मे रहकर याद घरवालो की सताये,
पहुंची हूँ मै घिसट कर छत तक....और कुदूँगी...
....क्यों?
...क्योकि...ऊपर देख! मेरे बी जी-वीरा मुझे बुलाये!
The End!
i m speechless its sad
ReplyDeleteur creativity has no limits
ReplyDeletevry emotional bro
ReplyDeletehat pagle rulayega kya.....itna senti kabse ho gaya tu yaar
ReplyDeletewell..... nice creativity
bahut zabardast.....halaki mujhe poms ki kuch khas samajh nahi hai lekin....aankh nam ho gai
ReplyDeletehey mohit really amused d way u described d tragedy. never really thought tht text can make sum1 cry. u proved me wrong. god bless & never ever stop writing. tc bbye
ReplyDeleteइंसान की बदसूरती को शब्दों की खूबसूरती से सजाया है
ReplyDelete