तेरे मना करने पर..
हाथ छुड़ाया मैंने...
दर्द पड़े जो सहने..
तुझको रुलाया मैंने..
दे चाहे मुझको जो सज़ा...
माना मेरी गलती है...
आँखें मेरी जलती है...
रूठी रहेगी कब तक ये बता..
छूना तेरा फबता है..
भीड़ मे डर लगता है..
संग लगा ले माये...
जादू तेरे हाथो मे..
मधु जो तेरी बातों मे..
नींद न आये माये..
झूला झुला दे माये...
खाऊं मै या मै खेलूँ...
एकटक निहारती तू क्यों..
जैसे मै तुझसे हूँ जुड़ा..
छाँव हो या हो धूप..
कितने तेरे जो रूप..
ममता मे तेरी ठंडक...
आँचल मे तेरे रौनक...
साये मे इसके होना मुझे रवां...
जो तू कहे मानूँगा...
तेरी रजा जानूँगा..
बस एक बार फिर से गोद मे ले सुला...
...समाप्त!
Poet Notes:
i) - Poem from my upcoming story "Maa ka Monologue".
ii) - क्योकि ये कविता ऐसे विषय पर थी...इसलिए दिमाग पर ज्यादा जोर नहीं देना पड़ा.....और समय भी कम लगा. :)
iii) - Pic Source - jpsuess.blogspot.com
iv) - 400 Likes on my Facebook Page. http://www.facebook.com/Mohitness Thank you! everyone. :)
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