नारीत्व – Author Mohit Sharma (Trendster)
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*) – नारीत्व
(Mohit Sharma Trendster)
*) – Freelance Talents Championship (Round 1 winning Entry) against author Yogesh Amana Gurjar
*) – Indo-Canadian Kalamkaar 2013 Award.
*) – Part of Bonsai Kathayen (Book 2).
अजीब है ना कुछ बड़ी घटना होने पर आँखों के सामने बना और चल रहा परिद्रश्य कितना धुँधला लगता है। आज वो अंधी भिखारन कबसे पुलिस क्वाटर के बाहर आवाज़ लगा रही थी जिसे अक्सर ईला यूँ ही बातें करती थी और खाना खिलाती थी। सख्त गर्मी के बाद पहली बारिश हो रही थी जिसका उसे कबसे इंतज़ार था, आस-पास सूखे पेड़ पौधे अचानक से नहा-धो कर ताज़ा हरे से हो गए थे। रेडियो पर उसकी पसंद का कार्यक्रम आ रहा था पर हाथ में थमे अपने बर्खास्ती पत्र के सामने यह सब जैसे कहीं दूर किसी और की दुनिया का हिस्सा लग रहा था।
ईला के ज़हन में लगभग दो साल पहले की यादें चलने लगी जब वो उत्तर प्रदेश के 1982 बैच की 38 महिला पुलिस कर्मियों में से एक थी और अपनी ट्रेनिंग पूरी कर पुलिस की वर्दी पहन अपने गाँव गयी थी। शेर आ जाने पर जैसे हिरण, खरगोश जस के तस “स्टेचू” सा बन जातें है वैसे पूरा गाँव ही थम गया। पिता जी चमेल पंडित तो ख़ुशी के मारे छोटे बच्चों की तरह हरकतें कर रहे थे और सवाल पूछ रहे थे, माँ के गुजरने के बाद पिता जी के जीने का सहारा ईला ही थी। उसकी दो छोटी बहन कोमल और दीक्षा ने भी अपनी बारहवी और सातवी की परीक्षा दी थी। पिता ने जैसे तैसे ईला को काबिल बनाने मे अपनी ज़मीन, पूँजी गवाँ दी अब ईला को दारोगा बने देख कर उन्हें अपने बलिदान सार्थक लग रहे थे। घर के बाहर मेले जैसी भीड़ लगी थी,आस-पास के गाँवों से भी लोग लड़की दारोगा को देखने आ रहे थे। थोड़ी देर बाद पिता जी ने अपनी इच्छायें रखी।
चमेल – “ईला बेटे एक तो पुराना जमींदार है उसके यहाँ जीप लेके डंडा फटकार आ, कम से कम उसकी खिड़की-किवाड़ तोड़ आइयो, करमजला कहता फिरता था की मैंने अपनी बेटी खुद ही शहर भगा दी। कोमल की बारहवी हो गयी है इसको भी शहर ले जा और अपनी तरह कुछ बना दे, घर की मरम्मत करवा दियो और बेटी एक पट्टे वाली बड़ी घडी दिलवा दे मुझे!”
ईला – “ठीक है पिता जी सब कर दूँगी …पर एक महीने की तनख्वा के हिसाब से आप कुछ ज्यादा लालच नहीं दिखा रहे? हा हा …और बड़ीदीवार घडी? वो क्यों चाहिए?”
चमेल – “बेटा देख मै तो अनपढ़ हूँ, घड़ी माथे पर बांध लूँगा जिसको समय देखना आता होगा उसी से पूछ लूँगा की भैया क्या बज रहा है?कहने को भी हो जायेगा बिटिया ने कुछ बड़ा तोहफा दिया है।”
इन दो सालों मे ईला ने अपने वेतन से जो घर भेजा वो पिता के लिए कर्जो के आगे काफी कम था अभी घर को तारने मे उसे कुछ साल और लगने थे क्योकि वो अपनी ड्यूटी ईमानदारी से कर रही थी जो सरकारी विभागों खासकर पुलिस मे कम देखने को मिलता है।
ईला की पहली नियुक्ति हुई संजयनगर जिले और आस-पास के क्षेत्रो के एकमात्र महिला थाने मे। संजयनगर कोतवाली के थाना प्रभारी थे इंस्पेक्टर सुमित कुमार। काफी मामलो, अपराधो में संयुक्त जाँच, गश्त,दविशों में सुमित और ईला मिल कर काम करते थे। सुमित एक अनुभवी, प्रोढ़ और ईला की तरह ही कर्तव्यनिष्ठ थाना निरीक्षक थे कुछ ही महीनो में ईला ने उनसे बहुत कुछ सीखा था और दोनों थानों ने मिलकर कई अपराधिक एवम पारिवारिक मामले सुलझाये थे। पुलिसिया भाग दौड़ में कैसे इतने महीने गुज़र गये पता ही नहीं चला।
एक रात दहेज़ उत्पीडन के एक मामले में ईला अपने सहकर्मी सुमित,उनके 2 सिपाही और अपनी 2 महिला आरक्षी के साथ संजयनगर के क्षेत्र मे एक गाँव बिधोली पहुँची। गाँव के बाहर गेंहू की फसल से घने खेतो में डेरा जमाये कुछ बदमाशो के एक गिरोह को पुलिस जीप देख कर यह उनके लिए की गयी दबिश है। गाँव में घुसने से पहले ही पुलिस जीप पर फायरिंग शुरू हो गयी। इस अप्रत्याशित हमले में गाडी चला रहे सिपाही कुलदीप के हाथ में गोली लगी और जीप असंतुलित होकर कच्चे रास्ते से डगमगा कर पलट गयी। सुमित ने जीप से निकल कर ईला और बाकी साथियों को निकाला। ईला को मामूली चोटें आयी थी पर जीप पलटनेसे पहले बदमाशो द्वारा चलायी गयी गोलियों से पीछे बैठी दोनों महिला सिपाही घायल हो गयी थी, एक गोली इंस्पेक्टर सुमित के कंधे पर लगी थी।
स्थिति विकट थी, पारिवारिक मामला समझ कर हथियारों की इतनी ज़रुरत नहीं समझी इस पुलिस दल ने। अब सिर्फ एक सिपाही की राइफल, इंस्पेक्टर सुमित कुमार और ईला की अपनी-अपनी रिवाल्वर थी। सुमित का पहला सवाल था।
“चल पाने की स्थिति मे कौन-कौन है?”
ईला के अलावा एक पुरुष आरक्षी नितिन भी ठीक हालत मे था। सुमित का अगला निर्देश था।
“वायरलेस टूट गया है। गाँव इस बाग़ के रास्ते से डेढ़ मील दूर है,ईला जी और कांस्टेबल नितिन आप दोनों अपने कंधो पर दोनों घायल महिलाकर्मियों को लेकर जायेंगे और उनके इलाज का इंतज़ाम करने के बाद ही लौटेंगे। ग्राम प्रधान या किसी जमींदार के पास बंदूकें हो तो लायेंगे। वैसे ड्राईवर कुलदीप भी घायल है पर कपडे से खून रुक गया है और इसकी नब्ज़ ठीक है।”
सुमित का बायाँ हाथ अजीब तरह से मुड़ा था और ईला बता सकती थी की वो जीप के भार से बीच मे से टूटा है, ऊपर से कंधे मे लगी गोली। पर अपने दल का मनोबल न टूटे इसलिए सुमित किसी पीड़ा का निशान तक नहीं दिखा रहा था। ईला कुछ पलो तक जैसे मूरत बन अपने आदर्श, गुरु को देखती रह गयी।
ईला – “लेकिन सर आप??”
सुमित – “अभी के लिये मै ठीक हूँ, आप अपनी रिवाल्वर निकाल कर रखियेगा, यहाँ और बदमाश भी हो सकते है। हम दोनों आप लोगो को कवर फायर देते है।”
मन के अंतहीन प्रश्नों से गुथमगुत्था ईला अपने ऊपर एक महिला कांस्टेबल को टाँगे दौड़ पड़ी। गाँव में ईला और नितिन ने प्रधान के घर पर घायलों को छोड़ा और गाँव मे उनको केवल एक देसी दुनाली और उसकी दो गोलियाँ मिली। दोनों को लौटने में एक घंटा लग गया। पुलिस पार्टी अपने तीनो हथियारों की गोलियाँ ख़त्म हो चुकी थी,सुमित अपने अंदाजों से 3 बदमाश मार चुका था। अब सिर्फ दुनाली और उसकी दो गोलियों की वजह से ओट में छिपे रहने के अलावा कोई चारा नहीं था। लगातार 4 घंटो तक दोनों तरफ से कोई गतिविधि नहीं हुई,आख़िरकार अपना दर्द कम करने के लिये और अपना ध्यान बँटाने के लिये लेटे हुए सुमित ने बीडी सुलगायी। पर कभी-कभी अनुभव में भी चूक हो जाती है अँधेरे में बीडी की चमक देख बदमाशों ने उस दिशा में कुछ गोलियाँ चलायी जो सुमित के सर को भेद गयी और सुमित की मृत्यु हो गयी।
लगभग हमेशा बदमाश पुलिस से मुतभेड टालना ही बेहतर समझते है और मुतभेड होने पर जल्दी ही स्थिति से निकलने कि कोशिश करतेहै। पर ये सगे-संबंधियों का गिरोह था जो अपनों के मर जाने पर बदला लेने की इच्छा से घंटो डटा हुआ था। बदमाशो को अंदेशा हो चुका था की पुलिस दल की गोलियाँ ख़त्म हो चुकी है, अपनी जीप को वापस पलट रही ईला और दोनों सिपाहियों पर बचे हुए 3 बदमाशों की गोलियों की बौछार सी हो गयी। दोनों सिपाही वहीँ गिर पड़े और वापस पलटी जीप के बीच मे ईला दब गयी उसकी जांघ को छू कर एक गोली निकली थी। निडर बदमाश अब बढ़ते दिखायी दे रहे थे ईला ने अपनी पूरी इच्छाशक्ति जुटा कर कुछ दूर पड़ी दुनाली तक हाथ पहुँचाया और उसको चलाया, दुनाली जाम हो गयी थी या शायद बाबा आदम के ज़माने की दुनाली अब चलने की हालत मे नहीं थी। देसी हथियार कब चल जायें और कब धोखा दे जाये कुछ कहा नहीं जा सकता। वैसे ईला ने गाँव वालो से शहर संदेश भिजवाने को कहा था पर मदद आने मे घंटो लग जाने थे। गाँव वाले भी डर से इस और नहीं आने वाले थे। इधर वो तीन बदमाश मौके का जायजा लेने लगे।
“लड़की? पुलिस में लड़की?”
“अबे वो सीता और गीता मे लड़की भी तो पुलिस थी!”
“अब इसको कैसे मारें? हमारी गोलियाँ भी ख़त्म?”
“अबे! लड़की है इसको मारने की क्या ज़रुरत है ..हा हा हा!!!”
फिर तीनो बदमाशो ने जीप से ईला को खींच कर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया। अपने और अपने साथियों के खून की गंध, अपनी आँखों से अपने शरीर से अलग होती वर्दी देखने की बेबसी, सामने सर खुली अपने आदर्श इंस्पेक्टर सुमित की लाश, और इतने दर्द के बीचअपने शरीर और आत्मा का चीरहरण। दुनिया कहती है नारी एक पहेली है पर आज ईला को पुरुष के रूप चौंका रहे थे, एक तरफ निर्जीव पड़े सुमित, कुलदीप, नितिन और एक तरफ उसके नग्न शरीर से खेलते ये 3दरिन्दे। कुछ देर के लिये ईला अपनी मानसिक और शारीरिक वेदना से अचेत हो गयी। बदमाश उसको मरा समझ भाग निकले। ईला होश मे आई तो उसने खुद को संभाल कर वर्दी पहनी और साथियों पर नज़र डाली। सुमित तो पहले ही मर चुके थे पर नितिन और कुलदीप की साँसें चल रही थी।
ईला ने अपनी पूरी ताकत झोंक कर किसी तरह जीप को खड़ा किया। तुरंत दोनों सिपाहियों को जीप मे डाला। जीप की हालत ठीक थी। ईला जीप चलाकर गाँव से निकली और काफी दूर उसे वो बदमाश जाते दिखे, ईला ने ढलान पर जीप बंद कर दी और पीछे से उनके पास पहुँचते ही जीप स्टार्ट की, ईला के मन में उन तीन दरिंदो के विरुद्ध आक्रोश बहुत था पर इस घड़ी में भी अपना मानसिक संतुलन ठीकरखते हुए सधे कोण से जीप चलाने से तीनो बदमाश जीप के नीचे आ गए जिनमे से एक मरा हुआ जीप से घिसटता हुआ कुछ दूर तक गया और बाकी दो घायल होकर वहीँ गिर पड़े। ईला के पास समय कम था तो वो सभी बदमाशो को मरा समझ वहाँ से निकल गयी।
शहर पहुँचने पर ईला ने दोनों सिपाहियों को अस्पताल भर्ती कराया और कण्ट्रोल रूम सूचना दी जिस से जिले मे हडकंप मच गया और भारीसंख्या मे पुलिस बल बिधोली के लिए रवाना किया गया। कुलदीप को उठवाते वक़्त उसकी गर्दन एक और झूल गयी और अब तक दृद खड़ी ईला की आँखें अपनी बेबसी पर नम हो गयी। वो खुद को दोष देने लगी की उसने जीप सीधी करने मे कितना समय लगा दिया, वो कुलदीप को बचा सकती थी।
अपने मेडिकल में ईला ने अपनी बाहरी चोटों का ईलाज करवा लिया पर खुद से आँखें चुरा कर अपने बलात्कार की बात छुपा ली। मौके पर पहुँची पुलिस को मृत सुमित कुमार और गंभीर रूप से घायल महिला आरक्षी मिली। खेत मे मरे बदमाशो की लाशें मिली पर ईला की जीप से कुचले गये बदमाश नहीं मिले, शायद वो दोनों अपने साथी को उठा ले गए। दूसरा सिपाही नितिन जिंदा बच गया पर सर पर लगे आघातों से उसके शरीर को लकवा मार गया और वो कुछ बोलने तक की हालत मे नहीं बचा।
ईला जाँच मे पूरा सहयोग दे रही थी पर वो अन्दर से टूट चुकी थी। अपने ऊपर हुए अत्याचार को छुपाने की वजह से वो खुद से भी नज़रे नहीं मिला पा रही थी। संजयनगर के एक नेता को इस मामले मे राजनैतिक मौका दिखाई दिया, उसने शहीद सुमित कुमार के परिजनों को लेकर ईला के घर और थाने के बाहर अपने समर्थको की भीड़ के साथ धरना दिया और सीधे आरोप लगाये की ईला ने जान बुझ करइंस्पेक्टर सुमित कुमार की मौके पर मदद नहीं की क्योकि ईला एक पंडित थी और सुमित कुमार एक हरिजन, बाकी दो सिपाही भी हरिजन थे जिसकी वजह से ईला उनका साथ छोड़ अपनी सुरक्षा के लिए मौके से भाग गयी या छुप गयी। वो मौके पर छुपी रही और बदमाशो के जाने का घंटो इंतज़ार करती थी, बदमाशो के जाने के बाद हीहरकत मे आकर ईला ने उन्हें बचाने की खानापूर्ति की। शक की कुछ जायज़ वजहें थी जैसे उस नेता ने दलील दी की ईला को कोई गंभीर छोट नहीं आई अपने बाकी साथियों की तरह। ईला द्वारा ग्राम प्रधान से मांगी गयी दोनाली जो उस वक़्त जाम हो गयी थी अगले दिन पुलिस दल द्वारा चेक करने पर कैसे चल गयी?
जब इन आरोपों का ईला को पता चला तो उसका शरीर, मन सुन्न पड़ गया, वो कांपने लगी। ये डर, गुस्सा या दुख नहीं था, यह एक हार का एहसास था की अपनी पूरी कोशिश के बाद भी, इतने बलिदान के बाद भी, सब कुछ हमेशा के लिए बदलने के बाद भी हार…ईला को अपने सहकर्मियों के नाम के अलावा उनके बारे मे कुछ पता नहीं था न उसने कभी कुछ जानना ज़रूरी समझा..खुद को इतना अकेला कभी नहीं पाया ईला ने, हर ओर से ताने, कटाक्ष यहाँ तक की उसकी अपनी अंतरआत्मा भी उसको दुत्कार रही थी।
वैसे पुलिस विभाग मे भी ये बातें दबी जुबान में चल रही थी। ईला पर पुलिस विभाग और मानवाधिकार आयोग की संयुक्त जाँच बैठाई गयी। कुलदीप मर चुका था, लकवाग्रस्त नितिन कुछ बोलने की हालत मे नहीं था और दोनों महिला कर्मियों के बयान जीप पलटने और गाँव आने तक थे। मौके की चश्मदीद और इस जाँच मे आरोपी सिर्फ ईला थी। संवेदनशील मामला होने के कारण और ईला के पक्ष मे कोई सबूत ना होने की वजह से ईला को ड्यूटी मे लापरवाही बरतने और अपने साथियों की जान न बचाने के आरोप मे बर्खास्त कर दिया गया। अख़बार, जनता, सहकर्मियों और शीशे में अपनी घृणा भरी नज़रें ईला को रोज़ गोलियों की तरह भेद जाती थी।
ईला अपनी असीम वेदना छुपाकर एक साल ये मामला लडती रही और आख़िरकार हारकर उसने आत्महत्या कर ली। पंडित परिवार पर तो जैसे विपदा आ गयी, बेटी के कूकर्मो का हवाला देकर गाँव से सामाजिक बहिष्कार तो पहले ही हो गया था अब घर का सहारा भी उनका साथ छोड़ गयी। ऊँचे सपने देखने के लिये चमेल पंडित खुद को दोष देनेलगा। खेत और जमा-पूँजी जा चुकी थी अब कोई दिन जा रहा था जो शायद ये परिवार भी अपना जीवन समाप्त कर लेता की तभी एक दिन उनके दरवाज़े पर दस्तक हुई, दरवाज़ा खुला ….ये कांस्टेबल नितिन था जो अब आंशिक रूप से ठीक हो चुका था पर अभी भी बोल नहीं पाता था पर चमेल के सामने उसकी आँखें ही इतना बोल रही थी की जुबान की ज़रुरत ही नहीं पड़ी। नितिन ने परिवार की उस संकट की घड़ी मे आर्थिक मदद की और उन्हें अपने साथ ले आया। नितिन के घर मे बने पूजा घर भगवानो, देवियों मे एक तस्वीर ईला की भी थी, नितिन ने अधमरी अवस्था में सब कुछ देखा था …एक देवी का हर बलिदान देखा था जिसकी वजह से आज वो जिंदा था।
समाप्त!
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