Freelance Falcon ~ Weird Jhola-Chhap thing ~ ज़हन

Tuesday, October 18, 2016

समय का उधार (कहानी) - मोहित शर्मा ज़हन


पणजी स्थित निजी पर्यटन कंपनी में सेल्स मैनेजर आनंद कुमार एक अरसे बाद कुछ दिनों की छुट्टियों पर अपने घर अलीगढ आया था। पहले कभी कॉलेज हॉस्टल से छुट्टियों में घर लौटकर जो हफ़्तों की बेफिक्री रहती थी वो इस अवकाश में नहीं थी। रास्ते में ही आनंद को काम में कुछ अधूरे प्रोजेक्ट्स की बेचैनी सता रही थी। माँ, पिता और छोटी बहन से मिलकर कुछ देर के लिए आनंद को सुकून मिला। 

माँ देखते ही शिकायत करने लगी कि "रंग कितना गिर गया है, चेहरे पर निशान हो गए हैं। अपना बिल्कुल भी ख्याल नहीं रखता ये लड़का!" 

घर अब पहले सा क्यों नहीं लग रहा? आनंद के मन में उथल-पुथल चल रही थी.... पहले मुझे अगले दिन तक की फ़िक्र नहीं रहती थी, आज इतनी चिंता क्यों है? माँ-बाप जो कभी खाली बैठना पसंद नहीं करते थे अब उम्र के असर से धीरे-धीरे चलते है और उन्हें बीमारी, जोड़ों के दर्द को सहते हुए काम करते देखकर तकलीफ होती है। माँ किचन में खाना बनाते हुए अपनी खांसी नहीं रोक पा रही थी, लंगड़ाते हुए जब वों खाना लेकर आयीं तो आनंद बड़ी मुश्किल से अपनी पीड़ा छुपा पाया। वह माँ जो उसे गोद में लेकर घंटो तक पार्क, मेलों में घुमा लाती थी, जिसका बीमार होना घर में किसी को कभी पता नहीं चलता था। आज उनमे मेरे प्रति उतना ही स्नेह था पर उनका शरीर साथ नहीं दे रहा था। अपनी सर्विस में 12-15 घंटे की शिफ्ट करने वाले पिता जी का स्वास्थ्य अब अक्सर ख़राब रहता। पढाई के साथ-साथ बहन को घर का काम करना पड़ता। घरवालो की इस हालात को देखकर मुझे खुद पर शर्म आई। कुछ समय पहले तक मैं सोच रहा था कि मेरे लगभग सभी दोस्तों की शादी हो गयी है और मैं 30 साल का हो चूका हूँ, मुझे भी पणजी में अपनी गृहस्थी बसानी चाहिए। अब घर की स्थिति देखकर लगता है कुछ पैसे और जोड़कर 3-4 साल बाद शादी करनी चाहिए। 

आनंद शहर में रह रहे अपने बचपन के स्कूली मित्रों के हाल-चाल लेने निकला। 5-6 मित्र जब साथ मिले तो लगा ही नहीं कि इतना समय अंतराल हुआ है, वही पुरानी बेफिक्री और हँसी-ठहाको का माहौल लौट आया। नुक्कड़ की गुमटी पर चाय के दौर में सबने अपने बीते वर्षों के किस्से बांटे। काफी समय बाद आनंद के माथे पर जो शिकन हमेशा बनी रहती थी, वो कुछ देर के लिए मिट गयी। फिर किसी दोस्त ने कहा - "सुना अंशु मैम गुज़र गयीं।" सभी चुप हो गए, उन्हें याद आया कि हरदम शैतानी करने वाले वो बच्चे कैसे अंशु मैम की क्लास में भोले, मासूम बन कर बैठ जाते थे। जो किसी विषय में ढंग से पढाई नहीं करते थे, काम पूरा नहीं करते थे, वो अंशु मैम के विषय सोशल स्टडीज़ में बाकी क्लास से बेहतर करते थे। मैम को क्या पसंद है, मैम का घर कहाँ है, घर में कितने लोग हैं, मैम का रूटीन क्या है आदि जैसी कई बातें आनंद और उसके गुट को रटी हुई थी। अंशु मैम उनका पहला क्रश थी, जिनके प्रति वो सब आकर्षित तो थे साथ ही सब उनका बहुत आदर करते थे। मैम को इम्प्रेस करने में आनंद सबसे अव्वल था। क्या क्लासवर्क, क्या होमवर्क वह तो कोर्स से बाहर की बातें तक याद करता था कि कहीं मैम के सामने स्टाइल मारने में काम आ जाएं। गुट का नेता होने के नाते बाकी मित्र थोड़ा दबे रहते थे। फिर सबको कहीं से खबर मिली कि अंशु मैम की शादी होने वाली है। मित्रों में मातम सा छा गया, काश मैम 10-12 साल इंतज़ार कर लेती हमारे सेटल होने तक, वैसे ये अपेक्षा तो सबको पता थी कि वास्तविक नहीं थी लेकिन मैम की शादी दूसरे शहर में हो रही थी यानी सबके मन में उनके स्कूल को छोड़कर जाने का दुख अधिक था। अंशु मैम की शादी का दिन आया और सभी मित्र घर पर कोई ना कोई बहाना बनाकर, 21  किलोमीटर साइकिल चला कर शहर के दूसरे छोर पर स्थित विवाह स्थल फार्महाउस पर पहुंचे। वहाँ स्कूल का कोई बच्चा नहीं आया था बल्कि इक्का-दुक्का ही शिक्षक पहुंचे थे। दुल्हन बनी अंशु मैम बहुत सुन्दर लग रहीं थी। उन्हें देखकर सबके चेहरे खिल गए। आनंद एंड पार्टी का शाम को इतनी दूर तक साइकिल चला कर आना जैसे सफल रहा। मैम बच्चो को देखकर चौंक गयीं, उन्होंने सबको अपने पास बुलाया। पूछने पर आनंद ने बताया की सब उसके दोस्त के बड़े भैया की कार में आएं हैं। मैम ने सबको धन्यवाद दिया और कहा कि "क्लास में सबको न्योता तो मैंने यूँ ही दे दिया था। मुझे लगा कोई बच्चा तो वैसे भी नहीं आने वाला, तुम सब आये मुझे बहुत अच्छा लगा। शाम को ज़्यादा देर तक मत रुकना और अच्छे से खाना खाकर जाना। बच्चो ने मैम को गुलदस्ता दिया और ऐसे कोने में चले गए जहाँ से मैम उन्हें देख या टोक ना सकें। इतनी मेहनत करने के बाद सबको तेज़ भूख लगी थी, खाने की तरफ बढ़ते उनके कदम स्टेज पर आते दूल्हे को देखकर रुक गए। आनंद गुट को दूल्हे का चेहरा देखकर जैसे सांप सूंघ गया। सबके भोले मन में एक बात थी कि हमारी परी जैसे मैडम का वर इतना मोटा-थुलथुल, बदसूरत कैसे हो सकता है? और तो और ऐसे व्यक्ति से शादी करने को मैम राजी कैसे हुई? मैम इतनी खुश कैसे हो सकती हैं? ज़रूर मैडम की ज़बरदस्ती शादी की जा रही है। इस मार्मिक आघात के बाद मित्र मण्डली की भूख मर गयी। नम आँखें लिए सब लोग अपने घर को चले, जितनी तेज़ी से विवाह स्थल पर आने को वो लोग पैडल मार रहे थे, अब वापसी में साइकिल चलाना उतना ही भारी हो गया था। दूल्हे और उसके खानदान को भला-बुरा सुनाते हुए सबने किसी तरह रास्ता काटा। आज 16-17 वर्षों बाद अंशु मैडम की मौत की खबर ने वो साड़ी यादें ताज़ा कर दी। 

मित्रों में अपनी कहानी साझा करने की बारी आनंद की थी। उसने दोस्तों को याद दिलाया कि कैसे किशोरावस्था में वो सब आनंद के शरीर और चेहरे की वजह से उसको मॉडलिंग में जाने की सलाह देते थे पर वह पढाई में व्यस्त हो गया। स्कूल वाले आनंद से काफी सयाने हो चुके इस आनंद के लिए सब जानने वाले आश्वस्त थे कि वह कहीं अच्छी जगह जाएगा। मित्रों के साथ उसने पढाई शुरू की, समय के साथ बहुत कम लोग अपने इच्छित क्षेत्र में सफल हुए, कुछ लोगो ने अपने अभिभावकों की सम्पत्ति से दूकान या कोई व्यवसाय शुरू किया और कुछ तैयारी में लगे रहे। उसके कई प्रयासों बाद जब वह कोई सरकारी नौकरी पाने में सफल नहीं हुआ तो उसने कुछ जगह नौकरी का आवेदन दिया। ऐसा नहीं था कि आनंद में दिमाग या लगन की कमी थी पर भारत जैसे विशाल देश में आवेदको की इतनी भीड़ थी कि हर बार वह लिखित या साक्षात्कार में ज़रा से अंतर से रह जाता और यह सिर्फ आनंद की कहानी नहीं थी, उसके जैसे लाखो लोग इन दशमलव अंको से जीवन की दौड़ हार रहे थे। 

आखिरकार एक सिलाई मशीन और मिक्सी की कंपनी में उसे सेल्समैन की नौकरी मिल गयी। कभी ऐसी नौकरियों पर वह हँसता था और कमिश्नर, बैंक पीओ बनने के सपने देखता था। मशीन बेचने जाते हुए वह हमेशा यह प्रार्थना करता कि कहीं कोई जान-पहचान वाला ना देख ले और उसकी बेइज़्ज़ती ना हो जाए।   जब उसने यह काम शुरू किया तब आनंद के मन में फील्ड वर्क करने वाले लोगो के लिए उसके मन में सम्मान बढ़ा। जीवन के बहुमूल्य वर्ष वह तैयारी में निकाल चुका था इसलिए वह अपनी नौकरी पूरी लगन से करने लगा। जो माँ का दुलारा हुआ  था और धूप में बाहर निकलने में नखरे किया करता था वह अब मौसम की परवाह किये बिना अपने सेल्स टारगेट को पूरा करने में लगा रहता था। काम से उसकी त्वचा काली और धब्बेदार हो गयी, अनियमित खान-पान से उसका शरीर बेडोल हो गया। कुछ वर्ष पहले जिसे मॉडल बनने के सुझाव मिलते थे, अब कोई पुराना मित्र उसे देख कर पहचान नहीं सकता था। खैर मेहनत रंग लायी और उसे पणजी में अच्छे वेतन और बेहतर पद पर नौकरी मिल गयी। अब आनंद का लक्ष्य पैसे जुटाकर घरवालो का संघर्ष कुछ कम करना था। पणजी में काम करते हुए उसे 4-5 वर्ष हो चुके थे। उसकी कहानी सुन एक मित्र ने दिलासा दिया कि आनंद अकेला नहीं है देश की भीड़ में हर दूसरा व्यक्ति ऐसा ही संघर्ष करने को मजबूर है।

अपनी छुट्टी यादों में गोते लगाते हुए पूरी करने के बाद आनंद पूरे जोश के साथ नौकरी में जुट गया। उसकी मेहनत के सब कायल हो गए, 5 वर्षो में वह सीनियर मैनेजर, जोनल मैनेजर के पद से दक्षिण भारत में उस कंपनी का डिप्टी हेड बन गया। अब उसकी मासिक आय लाखों में हो गयी। माँ-बाप के लिए एक नया घर खरीदने और छोटी बहन की शादी करने के बाद 35 वर्ष की आयु में उसने शादी करने का मन बनाया। किस्मत से उसकी शादी एक सुशील व सुन्दर लड़की मधु से हुई, जिसने आनंद का संघर्ष देखा था और इसी वजह से वह आनंद की बहुत इज़्ज़त करती थी। 

विवाह दिवस आया और आनंद स्टेज पर आया। ख़ुशी के अवसर पर परिवार के चेहरे खिले हुए थे, माता-पिता अपने बच्चे की मेहनत और तरक्की से खुश थे। उसकी मित्र मण्डली जश्न में डूबी थी, उनका हीरो, उनका लीडर आज घोड़ी चढ़ रहा था। फिर मेहमानों की भीड़ में आनंद की नज़र कई अनजान चेहरों पर पड़ी। कुछ लोगो की आँखों में अविश्वास था, तो कुछ उसका मज़ाक उड़ा रहे थे। मधु भी एक शिक्षिका थी और आखिरकार मधु के कुछ छात्र भी शादी में आये। सबकी प्रतिक्रिया वैसी ही थी जैसी 21-22 साल पहले अंशु मैम की शादी में उनके दूल्हे को देख कर आनंद और उसके मित्रों की थी। हर किसी की नज़रें जैसे कह रहीं हो कि परियों सी मधु मैडम का पति इतना मोटा, दाग-धब्बेदार, बदसूरत कैसे हो सकता है और मधु मैम इस शादी से इतनी खुश क्यों हैं? किसी को भी सालों तक बाहर भागने से धूप में जली आनंद की खाल, काम की जल्दी में हुई दुर्घटना से हुए निशान, समय की ठोकरो एवम व्यस्तता के चलते अनियमित खाने-पीने से बिगड़े-बेडोल शरीर, आँखों पर चश्मे की हकीकत नहीं पता थी। ना ही किसी ने पता करने की ज़हमत उठायी। नम आँखों के साथ आज आनंद (और उसके दोस्त) अन्य लोगो की नज़रों में अपने पुराने रूप को देख रहा था और अंशु मैम से माफ़ी मांग रहा था कि "मैडम! आपने गलत निर्णय नहीं लिया था, आपने सही इंसान को अपना जीवनसाथी चुना था।"

समाप्त!

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Artworks - Ihor Pasternak

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