पिघलती रौशनी में यादों का रक़्स,
गुज़रे जन्म की गलियों में गुम शख़्स,
कलियों की ओस उड़ने से पहले का वक़्त।
शबनम में हरजाई सा रंग आया है,
जबसे तेरे अक्स को रहनुमा बनाया है...
तेरे दर का सरफिरा रास्ता,
इश्क़ की डोर में वाबस्ता,
दिल में मिल्कियत...हाथ में गुलाब सस्ता।
उपरवाले ने अब मेरी दुआओं का हिसाब बनाया है,
जबसे तेरे अक्स को रहनुमा बनाया है...
नारियल सा किसका नसीब,
माना जिन्हे रक़ीब,
निकले वो अपने हसीब।
वक़्त की चुगली में जाने कितना वक़्त बिताया है,
जबसे तेरे अक्स को रहनुमा बनाया है...
कहना उनको बात पुरानी हो गयी,
बचपन की अंगड़ाई जवानी हो गयी,
बिना पाबंदी मन की मनाही।
दरख्तों की खुरचन पर दौर की स्याही,
12 सालों पर भारी जैसे एक कुम्भ छाया है,
जबसे तेरे अक्स को रहनुमा बनाया है...
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#ज़हन
Thumbnail Art - Gaston S Garcia
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आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 28 जनवरी 2018 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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