Freelance Falcon ~ Weird Jhola-Chhap thing ~ ज़हन

Wednesday, December 23, 2020

Update: Colorblind Baalam (Paperback) available

 

नमस्ते, इस साल ई-बुक संस्करण में प्रकाशित दोनों किताबें अब पेपरबैक में उपलब्ध हैं। लगातार स्नेह बनाए रखने के लिए, आप सबका आभार! आगे के सफर को बेहतर बनाने के लिए भी आपके सहयोग वाले धक्के की आशा है। प्यार से धक्का मार के लगभग 100 कहानियों का लुत्फ़ उठाएं। <3

1) - कलरब्लाइंड बालम (Colorblind Baalam)

2) - कुछ मीटर पर ज़िन्दगी (Kuch Meter par Zindagi)

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Tuesday, November 24, 2020

Paperback available - Kuch Meter par Zindagi Book

 

Kuch Meter par Zindagi (कुछ मीटर पर ज़िंदगी) paperback edition available now - https://www.amazon.in/Kuch-Meter-Zindagi-Mohit-Sharma/dp/8194642922 @amazonIN

80 से ज़्यादा कहानियों का यह संग्रह अब पेपरबैक वर्शन में उपलब्ध है.

Sunday, September 6, 2020

संजय राउत, आप स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे की विरासत पर पानी फेर रहे हैं!

 नमस्ते, संजय राउत जी! आप जिस पद पर हैं और जहाँ के लिए लोगों ने आपको चुना है उसको देखते हुए आप थोड़ा सोच कर बोला करें। कभी आप फेसबुक पर किसी कमेंट को लाइक करने वाली लड़कियों की गिरफ्तारी को जायज़ बता देते हैं, कभी एक समुदाय के वोट करने के हक़ को वापस लेने को कह देते हैं, कभी मृत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के पिता के.के. सिंह के बारे में ऐसी बात कह देते हैं जिसका मामले से कोई सरोकार ही नहीं है। अब आप एक अभिनेत्री को गाली दे रहे हैं। पूरे मीडिया को दलाल बता रहे हैं। आप भी तो आँखें मूँद कर एक तरफ खड़े हैं। खुद के लिए कोई विशेषण नहीं सोचा आपने?

 ये तो ऐसी बातें हैं जो राष्ट्रीय पटल पर चर्चित हो गई, इनके अलावा स्थानीय तो आपने न जाने कितना अनाप-शनाप बोला और किया होगा। कृपया, थोड़ी शर्म कर लें। बार-बार इतना उल्टा-सीधा बोलते हुए मैंने सिर्फ़ राखी सावंत और दीपक कलाल जैसे लोगों को देखा है। क्या आप खुद को उनकी श्रेणी में रखना चाहते हैं? ऊपर से अपने बचाव में हास्यास्पद तर्क दे रहे हैं और अहंकार से भरी बातें, ट्वीट, पोस्ट आदि कर रहे हैं। आपकी शह में श्री अनिल देशमुख जैसे कुछ नेता भी आपकी बोली बोल रहे हैं। शिवसेना के कार्यकर्ता कोरोना के समय भीड़ में कंगना के पुतले जला रहे हैं। इतना अहं, इतनी असहिष्णुता, और इतनी छोटी सोच कहाँ लेकर जाएंगे?

 रही बात महाराष्ट्र या मुंबई के अपमान की तो आपने तो पूरे नारी जगत का अपमान किया है। दुनिया की 380 करोड़ महिलाएं ज़्यादा हुई या 12.5 करोड़ महाराष्ट्र (या 2 करोड़ मुंबई)। अगर कंगना रनौत को एक बार माफ़ी मांगनी चाहिए, तो उस हिसाब से आपका तो दर्जनों बार माफ़ी माँगना बनता है। 

 मैं आपसे माफ़ी मांगने को नहीं कहूंगा यह आपका अपना निर्णय है, लेकिन सोचिये ज़रूर...यह क्षेत्रवाद का बाजा कब तक बजाते रहेंगे? इससे ऊपर उठिए, देशहित देखिए! समाज का भला, स्त्रियों के अधिकार एक बड़े नज़रिये से देखने की कोशिश करें। नहीं तो आपकी पार्टी भी क्षेत्र में सिमट कर रह जाएगी। बाकी ऐसा नहीं है कि आपने कुछ अच्छा नहीं किया या कहा पर इन बातों पर गौर करके आप अगर खुद में बदलाव करेंगे तो और बेहतर समाज सेवा कर पाएंगे।

धन्यवाद!
 #ज़हन

Friday, September 4, 2020

फिर कभी सही...

 

कुछ महीने पहले स्कूल की एक कॉपी मिली...
उंगलियां पन्ने पलटने को हुई।
दफ़्तर को देर हो रही थी,
उंगलियों से कहा फिर कभी सही...

कॉपी ने कहा ज़रा ठहर कर तो देख लो,
9वीं क्लास की चौथी बेंच से झांक लो!
"फिर कभी सही"

आज याद आया तो देखा...
कॉपी रूठ कर फिर से खो गई...
#ज़हन

Tuesday, September 1, 2020

लेखक की कहानी, लेखक की ज़ुबानी-29 - आलोक कुमार और मोहित शर्मा ज़हन


लेखक अलोक कुमार जी के साथ मेरी बातचीत। 🎙️ 
काफ़ी मुद्दों पर बात हुई, जो रह गए उन्हें निपटाते रहेंगे। आप लोग स्नेह और आशीर्वाद बनाए रखें। #ज़हन
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Monday, May 25, 2020

Color-blind Baalam (Book)


एकसाथ दो किताबें... "कलरब्लाइंड बालम" Kahaniya और FlyDreams Publications की साझा पेशकश।

पढ़ने के लिए क्लिक करें - https://www.kahaniya.com/s/colour-blind-balam-6eAP45
एप्लिकेशन डाउनलोड करने के लिए लिंक - https://play.google.com/store/apps/details?id=com.viven.android.kahaniyaofficial
#ज़हन

Sunday, May 24, 2020

नई किताब - कुछ मीटर पर ज़िन्दगी (मोहित शर्मा ज़हन)


नए जज़्बात - नई किताब: 'कुछ मीटर पर ज़िन्दगी' ...उम्मीद करता हूं कि पहले की रचनाओं की तरह इसे भी आपका भरपूर प्यार मिलेगा। ई-संस्करण, एमेज़ॉन पर उपलब्ध -
#ज़हन

Saturday, May 16, 2020

आगामी पुस्तक - कलरब्लाइंड बालम (मोहित शर्मा ज़हन)


इस किताब में कुछ खास और अलग श्रेणियों की कहानियां रखी हैं। आशा है, हमेशा की तरह आप सबका स्नेह मिलता रहेगा

Upcoming story collection Colorblind Balam (with FlyDreams Punlications)
Great work by cover artist Nishant Maurya.

Friday, April 24, 2020

साहित्यिक समालोचना पुस्तक में मेरी एक कहानी


"किन्नर समाज - संदर्भ - तीसरी ताली" (साहित्यिक समालोचना) - वाणी प्रकाशन की किताब में मेरी कहानी "किन्नर माँ" को शामिल कर उसपर अपनी राय देने के लिए लेखिका पार्वती कुमारी जी का आभार। हर बार की तरह बस एक शिकायत कि मेरा काम या नाम कहीं आता है, तो उस समय लेखक, प्रकाशक आदि के बजाय कई महीनों या सालों बाद कोई मित्र, प्रशंसक जानकारी देता है। खैर, कोई बात नहीं पार्वती जी का लिटरेरी क्रिटिसिज़्म में ये प्रयास मुझे अच्छा लगा। उन्हें और टीम को बधाई! #ज़हन

Monday, April 20, 2020

आप दोनों मेरे!


दो साल पहले (19 April 2018) को जीवन में एक बदलाव आया। कुछ आदतें बदली और कुछ आदतें बदलवाई। थोड़ी बातें और ढेर सारी यादें बनाई। एक रचनात्मक व्यक्ति की प्राथमिकताएं अलग होती हैं...उसे दुनिया में रहना भी है और दुनियादारी में पड़ने से भी परहेज़ है। ऐसे में डर होता है कि क्या शादी के बाद भी यह सोच बनी रहेगी या नहीं? पहले मेघा और अब प्रभव ने मिलकर मुझे जीवन के कई पाठ पढ़ाए। इन्होनें बताया कि प्राथमिकताएं कोई बाइनरी कोड नहीं जिन्हें या तो रखा जाए या छोड़ा जाए...इंसान नए नज़रिये और जीने के ढंग के साथ प्राथमिकताओं में कुछ बदलाव करके भी खुश रह सकता है। मेरे मोनोक्रोमेटिक जीवन को खूबसूरत पेंटिंग बनाने के लिए शुक्रिया मेघा और प्रभव! <3 font="">

आप दोनों के लिए 2 रचनाएं:

कुछ मैंने समझा...कुछ तुमने माना,
नई राह पर दामन थामा।
कुछ मैंने जोड़ा...कुछ तुमने संजोया,
मिलकर हमने 'घर' बनाया।
दोनों की जीत...दोनों की हार,
थोड़ी तकरार...ढेर सा प्यार।

मेरी नींद के लिए अपनी नींद बेचना,
दफ्तर से घर आने की राह देखना।
माथे की शिकन में दबी बातें पढ़ना,
करवटों के बीच में थपथपा कर देखना।

साथ में इतनी खुशियां लाई हो,
एक घर छोड़ कर...मेरा घर पूरा करने आई हो।
पगडंडियों से रास्ता सड़क पर मुड़ गया है...
सफर में एक नन्हा मुसाफिर और जुड़ गया है।

चाहो तो अब पूरी ज़िंदगी इन दो सालों की ही बातें दोहराती रहो...
लगता है यह सफर चलता रहे...कभी पूरा न हो!

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(हास्य) [ध्यान दें - ये दोनों ही मेन लीड हैं, क्योंकि मेरी प्रोफाइल है इसलिए खुद को नायक बना रहा हूँ।]

मैं उपन्यास हूँ...आप दोनों मेरे प्लाट ट्विस्ट और मेन लीड,
मैं छुटभैया नेता हूँ...आप दोनों मेरे जुटाए कैबिनेट मंत्री और भीड़।
मैं अन्ना हजारे हूँ...आप दोनों मेरे संघर्ष और अनशन,
मैं वीडियो गेम हूँ...आप दोनों मेरे प्लेयर और लास्ट स्टेज के ड्रैगन।

मैं एसयूवी हूँ...आप दोनों मेरे चेसिस और इंजन,
मैं सुबह की सांस हूँ...आप दोनों मेरे माउथवाश और मंजन।
मैं ट्रैक्टर हूँ...आप दोनों मेरे कल्टीवेटर और डाला,
मैं शक्तिमान हूँ...आप दोनों मेरे किलविश और कपाला!

मैं सब्जीवाला हूँ...आप दोनों मेरा ठेला और टोकरा, 
मैं धूम सीरीज़ हूँ...आप दोनों मेरे अभिषेक बच्चन और उदय चोपड़ा!
मैं हलवाई हूँ...आप दोनों मेरी दिवाली और मिठाई,
मैं तापसी पन्नू हूँ...आप दोनों मेरी पीआर एजेंसी और बीफिटिंग रिप्लाई!

मैं अजय देवगन हूँ...आप दोनों मेरे रोहित शेट्टी और काजोल,
मैं बीजेपी हूँ...आप दोनों मेरे आरएसएस और बजरंग दल।
मैं इंदिरा गांधी हूँ...आप दोनों मेरे भारत रत्न और इमरजेंसी,
मैं पाकिस्तान हूँ...आप दोनों मेरे टेररिज़्म और इंसरजेंसी।  

मैं फ़ुटबॉल हूँ...आप दोनों मेरे जूता और लात, [ओ भाई...मारो मुझे मारो]
मैं हालात हूँ...आप दोनों मेरी यादें और जज़्बात।
मैं बाबा रामदेव...आप दोनों मेरे योग और पतंजलि,
मैं धड़कन...आप दोनों मेरे देव और अंजली।

जीवन में नहीं रहा कोई अभाव,
मोहित को मिल गए मेघा और प्रभव।
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#ज़हन

Thursday, April 2, 2020

Freelance Talents Chess Challenge #FTC2020 Project















Winner: Sanjay Singh (4-0)

First Runner-up: Akash Kumar (3-1)

Second Runner-up: Brijesh Verma (3-1)

Semi-Finalist: Himanshu Mishra (2-2)

5) – Rahul Ranjan and Jayesh Kumar [Tie] (2.5-1.5)

7) – Sushant Grover (2-2)

8) – Ankur Singh (1-3)
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Other rankings based on Match Duration and Number of Moves in Round 1

9) – Pranav Shashank (53)
10) – Adamya Amogh (41)
11) – Tanmay Sharma (32)
12) – Saurabh Pal (30)
13) – Karan Virk (26)
14) – Sandeep Kumar (22)
15) -Akshit Gupta (21)
16) – Mandaar Gangele (6)
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*Cash and Certificates for Top 3.

Details and all match reports – Freelance Talents Championship Blog

Thursday, February 6, 2020

एक आयोजन जिसने भारतीय कॉमिक्स को नई दिशा दी...


"Genereation Next Writers Workshop and Meet" इवेंट 25 जनवरी 2008 से 27 जनवरी 2008 को राज कॉमिक्स ने बुराड़ी, दिल्ली में करवाया था। इसमें शामिल होने के लिए दिसंबर 2007 में एक प्रतियोगिता रखी गई थी। उस प्रतियोगिता के कुछ विजेता इस 3 दिन के आयोजन का हिस्सा नहीं बन पाए थे, इस वजह से इवेंट में ऑनलाइन कॉमिक्स समुदाय में सक्रीय कुछ प्रशंसकों को शामिल होने की छूट मिल गई थी। 19 साल की उम्र में वहां जाना सपने जैसा था


इन तीन दिनों के दौरान भारतीय कॉमिक्स से जुड़े कई लेखक कलाकार वहां मौजूद रहे, जैसे - तरुण कुमार वाही, अनुपम सिन्हा, ललित शर्मा, संजय गुप्ता, ललित सिंह, क्षितीश पैढी, बेदी जी, जगदीश कुमार, प्रदीप सहरावत आदि। यही नहीं यह आयोजन इतना सफल रहा कि इसमें शामिल लगभग 10 किशोर और युवा आगे चलकर कॉमिक्स और साहित्य की दुनिया से जुड़े। भारत में इंटरनेट के माध्यम से इतना बड़ा ये अपनी तरह के पहला आयोजन था और इसी के बाद सालाना 'नागराज जन्मोत्सव' आयोजन की नींव रखी गई। जिन लोगों से ऑनलाइन इतनी बातें की थी उनसे मिलकर विचार साझा करना अद्वितीय अनुभव रहा। आयोजन में लाइव स्केच सेशन, कॉमिक आईडिया से पूरी कॉमिक तैयार होने का सफ़र, राज कॉमिक्स के गोदाम-ऑफिस का टूर, कॉमिक्स की स्क्रिप्ट कैसे लिखी जाती है, किस तरह के संवाद, विचार और कहानियां इस माध्यम के अनुकूल हैं, एनिमेशन, जारी प्रोजेक्ट्स पर बातचीत जैसी कई चीज़ें हुई। ठहरने की व्यवस्था राज कॉमिक्स और अब बंद हो चुके एनिमेशन स्टूडियो RToonz के ऑफिस में की गई थी। वहां से आने के बाद मैंने राज कॉमिक्स की एक शाखा ट्राईकलर बुक्स के लिए कुछ मिनी-कॉमिक्स लिखी। यह कॉमिक्स बाल विकास और बच्चों को शिक्षा देते विषयों पर थी। मेरा बाकी सफ़र तो आपके सामने है ही...यह अनुभव एक सुखद याद के रूप में हमेशा मेरे साथ रहेगा।


पुरानी साइट काफ़ी पहले बंद हो जाने की वजह से कई फ़ोटो और जानकारी अब उपलब्ध नहीं है। सदस्यों का एक यह लिंक मिला है जिसमें 19 लोगों के नाम दिख रहे हैं। - RC Forum Main Awards & Contests

#ज़हन
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Wednesday, February 5, 2020

तंज़ (सामाजिक कहानी) #ज़हन


घरेलू बिजली उपकरण बनाने वाली कंपनी के बिक्री विभाग में लगे नदीम का समय अक्सर सफर में बीतता था। ट्रेन में समय काटने के लिए वह अक्सर आस-पास यात्रियों से बातों में मशगूल हो जाता। कभी उनकी सुनते और कभी अपनी कहते वक़्त आसानी से कट जाता।  एक दिन नीचे चादर बिछा कर बैठे मज़दूर से उसकी जन्मपत्री मालूम करने के बाद नदीम ने अपना तीर छोड़ा।

"मौज तो तुम गरीब-लेबर क्लास और अमीरों की है। देश का सारा टैक्स तो मिडिल क्लास को देना पड़ता है। एक को सब्सिडी तो दूसरे को लूट माफ़ी।"

सहयात्रियों से "कौनसा स्टेशन आ गया?", "बिजनौर में बारिश हो रही है क्या?" और "हरिया जी दुकान की गजक मस्त होती हैं!" जैसी बातों के बीच हालिया बजट से कुढ़ा नदीम व्हाट्सएप पर मिडिल क्लास के आत्मसम्मान को बचाती पंक्तियां मज़दूर पर फ़ेंक रहा था। वह मज़दूर कभी नदीम की बात समझने की कोशिश करता तो कभी मुस्कुरा कर रह जाता।

ऊपर अपने फ़ोन में मग्न गुरदीप से रहा नहीं गया। 

"बड़े परेशान लग रहे हैं, भाई? अमीरों का पता नहीं पर देश के गरीब का जो हक है वह लेगा ही।"

नदीम को इतनी देर से बांधी गई भूमिका और अपनी बात कटती अच्छी नहीं लगी।

"अरे, लाल सलाम कामरेड! हा हा...मज़ाक कर रहा हूं। किस बात का हक? मुफ़्त की देन तो भीख हुई न?"

गुरदीप को ऐसे ही जवाब की उम्मीद थी।

"भाईसाहब! गरीब लोग तो जहां मिलें उनका शुक्रिया करो...ये गरीब-लेबर क्लास तो देश में सबसे ज़्यादा टैक्स देते हैं।"
यह अलग सा वाक्य सुनकर सब जैसे नींद से जागे और ऊपर से झांकते गुरदीप की ओर देखने लगे। इससे पहले कोई स्टेशन आ जाए या किसी का बच्चा चीख मार के ऐसा रोए कि 12-15 लोगों का ध्यान गुरदीप से हट जाए वह लगातार गरीबों के पक्ष में तर्क देने में लग गया।

"सबसे पहले तो गरीब कभी खाना-पीना और बाकी सामान एकसाथ नहीं लेते। 50 ग्राम तेल, 200 ग्राम आटा, कुछ ग्राम चावल और जीने के लिए ज़रूरी कई चीज़ें ये लोग अपनी रोज़ या हफ़्ते की कमाई के हिसाब से लेते हैं। अगर वही सामग्री ये लोग एकसाथ 5 किलो, डेढ़ किलो या ज़्यादा मात्रा में लें...जैसा हम मिडिल क्लास के लोग लेते हैं, तो इनकी 30 से 90 प्रतिशत तक बचत हो सकती है। ऐसा ये कर नहीं पाते क्योंकि एकसाथ कुछ भी उतना खरीदने के लिए इनके पास पैसे ही नहीं होते। सोचो इकॉनमी में ये करोड़ों लोग रोज़ कितना पैसा लगाते हैं। 
पिछली पे कमीशन में मेरे पड़ोसी शर्मा जी को लाखों का पुराना बकाया एरियर और महीने की सैलरी में सीधे 8200 रुपए का फायदा हुआ था...अब इतने साल बाद नया पे कमीशन लगने वाला है। शर्मा जी को फिर से लाखों रुपए मिलेंगे और वेतन भी बढ़ेगा पर इस बीच के गुज़रे इतने सालों में मजाल है जो उनकी कामवाली बाई के इतना रो-पीटने के बाद भी कुल ढाई सौ रुपए महीना से ज़्यादा बढ़े हों। 

आपका ये कहना की सरकारी अस्पताल "इनसे" भरे रहते हैं या सारी सुविधाओं, स्कीम पर ये लोग टूट कर पड़ते हैं भी गलत है। ये शहर की दूषित जगहों के पास बने घरों में रहते हैं...हर शहर की उस गंदगी का काफ़ी बड़ा स्रोत हम मिडिल क्लास लोग हैं। कम पैसों में शरीर ख़राब कर बीमारी देने वाले काम कर-कर के दुनियादारी का धुआं, धूल झेलकर तो इनका हक बनता है सरकारी सुविधाओं पर टूट पड़ना। मिडिल क्लास की यह कहानी है कि आपने 40-45 की उम्र तक ठीक बैंक बैलेंस, घर और गाड़ी जैसी चीज़ें जोड़ ली और अपने बच्चों के लिए उड़ने का प्लेटफॉर्म बना दिया, लेकिन इन्हें पता है कि इनमें से ज़्यादातर के बच्चे भी गरीबी का ऐसा ही दंश झेलेंगे। इस वजह से ये लाइन में लगकर ज़िंदगी से लड़ते हैं..."

नदीम कुछ कहने को हुआ तो वाइवा सा दे रहे गुरदीप की आवाज़ ने उसे दबा दिया।

"इस बेचारे को मेरी कोई बात समझ नहीं आई होगी पर ये वैसे ही मुस्कुरा रहा है जैसे आपके तानों पर मुस्कुरा रहा था। हम जीवन के वीडियो गेम की रोटी, कपड़ा और मकान वाली स्टेज से बहुत आगे निकल चुके हैं और इसका जीवन ही उनके पीछे भागना है। कार या तकियों पर बढ़े टैक्स की झुंझलाहट हर सांस में जीने का टैक्स देने वालों पर मत निकालो भाई।"

जिसका डर था वही हुआ...सामने महिला की गोद में खेल रहा बचा रो दिया और रेल की रफ़्तार में हिलते गुरदीप के विचारों की रेलगाड़ी का मोनोलॉग भी टूट गया। कुछ बातें कह दी, कई बातें रह गई! नदीम की सांस में सांस आई कि तभी गुरदीप ने कहा...

"एक बात और!"

सत्यानाश! नदीम की आँखें जैसे पूछ रही हों कि भाई नाली में लिटा-लिटा कर बुरी तरह पीट लिया अब...और भी कुछ बचा है?

"सही और गलत समझने के लिए और दूसरों के हक की बात करने के लिए लाल सलाम ब्रिगेड वाला होना ज़रूरी नहीं।"

नॉकआउट घूंसा पड़ चुका था और नदीम गृहशोभा पढ़ने की एक्टिंग करने लगा।

समाप्त!
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Friday, January 3, 2020

भूत बाधा हवन बनाम एक्सोरसिस्म (कहानी)


पुणे से कुछ दूर एक वीरान सी बस्ती में लगभग आधा दर्जन परिवार रहते थे। वहां दो पड़ोस के पुराने घरों में कई सालों से दो भूत रहते थे। एक का नाम था विनायक और दूसरी थी क्रिस्टीन। दोनों बड़े ही शांत किस्म के थे पर उनका थोड़ा-बहुत विचरण या कुछ हरकतें (जिनसे किसी को नुक्सान नहीं होता था) उन घरों में बाद में किराए पर रहने वाले लोगों को डरा दिया करती थी। हालांकि, थोड़े समय बाद इन घरों में रह रहे परिवारों को इनकी आदत पड़ जाती। इस तरह कुछ दशक बीते। जहां विनायक, भगवान गणेश का परम भक्त था वहीं क्रिस्टीन कट्टर कैथोलिक ईसाई। 

मरने से पहले दोनों जितना एक दूसरे से बचते थे, मरने के बाद न चाहते हुए भी बातें करते-करते अच्छे दोस्त बन गए थे। ऐसा नहीं था कि मरने से पहले विनायक और क्रिस्टीन में कोई बात नहीं होती थी। दोनों के जीवनसाथी बहुत पहले दुनिया छोड़ चुके थे। बस्ती में पेड़ लगाना, बिजली की लाइन पाने के लिए धरना देना, बंजर ज़मीन पर सब बस्ती वालों की साझा खेती जैसे कामों में दोनों सबसे ज़्यादा बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे... इस वजह से दोनों मन ही मन एक दूसरे की इज़्ज़त भी करते थे पर जहाँ धर्म, त्यौहार आदि की बात आती थी तो विनायक और क्रिस्टीन उत्तर और दक्षिण ध्रुव बन जाते थे। अपने धर्म के प्रति इनका विश्वास इतना दृढ़ था कि मरने के बाद भी ये एक-दूसरे को अपना धर्म अपनाने के तर्क दिया करते थे।

किस्मत से विनायक के घर में एक ईसाई परिवार किराए पर आया और थोड़े समय बाद क्रिस्टीन के घर में एक गणेश भक्त परिवार। विनायक और क्रिस्टीन बड़ी उत्सुकता से उन परिवारों की दिनचर्या देखते और फिर एक दूसरे को बताते कि कैसे आजकल के तरीके और बच्चे पहले से अलग हो गए हैं, कैसे पुराना धीमापन नई तेज़ी से बेहतर था और कैसे किराए पर आये परिवार के सदस्य बहुत अच्छे हैं। अगर कभी-कभार उन्हें कुछ गलत या दूसरे के धर्म का उल्लंघन दिखता तो वे जानबूझ कर दूसरे को नहीं बताते। न चाहते हुए भी कुछ हरकतों, हल्की खटपट और दूसरी आवाज़ों की वजह से दोनों परिवारों का शक बढ़ने लगा कि इन घरों में भूतों का साया है। हिन्दू परिवार ने अपने घर का भूत (क्रिस्टीन) भगाने के लिए हवन रखा और उसी दिन ईसाई परिवार ने अपने घर से भूत (विनायक) निकालने के लिए बड़े पादरी से एक्सोरसिस्म की योजना बनाई। दोनों परिवार साबित करना चाहते थे कि भूत भगाने के लिए उनके धर्म का तरीका दूसरे धर्म से बेहतर और कारगर है।

विनायक, स्वभाव के अच्छे ईसाई परिवार को नुक्सान नहीं पहुंचाना चाहता था। साथ ही, क्रिस्टीन आहत न हो इसलिए विनायक एक्सोरसिस्म से पहले की शाम घर छोड़कर जंगलों की तरफ उड़ गया। धर्म की छोटी बहस में इतने सालों की दोस्ती इस तरह ख़त्म कर देना उसे गवारा नहीं था। उसने सोचा कि अगर हिन्दू धर्म बेहतर होगा तो उसे खुद से कोई जतन करना ही नहीं पड़ेगा। उसके भूतिया मन में चल रहा था कि क्रिस्टीन क्या सोच रही होगी। पता नहीं वह उसका अचानक गायब होना समझ पाई होगी या नहीं। 

जंगल आकर उसका सिर चकरा गया। शांति और लोगों से दूर जंगल के हर पेड़ पर भूतों ने डेरा जमा रखा था। कोई भी नए भूत-प्रेतों के लिए अपनी जगह छोड़ने को तैयार नहीं था।

"हे गणपति बप्पा! ऐसा तो नहीं सोचा था...आत्मा बनने के बाद भी घर के लिए भटकना पड़ेगा।"

कुछ देर भटकने के बाद, विनायक उस जान-पहचानी आवाज़ पर मुड़ा...

"किराए पर रहने के लिए जगह चाहिए...यह पेड़ छोटा है पर दो भूत एडजस्ट कर लेगा।"

विनायक ख़ुशी से फूल कर कुप्पा होके बोला - "क्रिस्टीन! तुम तो..."

क्रिस्टीन मुस्कुराकर बोली - "हाँ! गणपति बप्पा से पिटाई थोड़े ही खानी थी।"

उधर बस्ती में ज़ोर-शोर से बिना भूत वाले एक्सोरसिस्म और हवन चल रहे थे।

समाप्त!
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#ज़हन

Read Moral Story Kook ki Zaroorat

Thursday, January 2, 2020

साहित्य चेतना सम्मान 2019 - मोहित शर्मा ज़हन


आज साहित्य विचार संस्था, जोधपुर से साहित्य चेतना सम्मान 2019 का प्रमाणपत्र मिला। आप सभी को धन्यवाद!