कोई प्रोजेक्ट जब हफ़्तों-महीनों से आगे बढ़कर सालों तक चलता है, तो उसमें शामिल लोग दिनचर्या का हिस्सा बन जाते हैं। उनसे बातें करते-करते उनकी कई आदतें तक रट जाती हैं। फिर किसी दिन खबर मिलती है कि इस प्रोजेक्ट को कुछ दिनों में ख़त्म करना है। तो इतनी लंबी रचनात्मक यात्रा को हाई नोट पर ख़त्म करने की मानसिक भागदौड़ होती है। फिर...बस फिर रह जाती हैं कुछ यादें, what ifs, स्क्रीनशॉट्स। लगभग 13 से 15 मिनट के एक एपिसोड वाली सीरीज को 100 घंटे पार करने पर सुपरहिट माना जाता है। बीते दिनों बंद हुए चाणक्य (पॉकेट एफ़एम) ने 200 घंटे का कॉन्टेंट पार किया, कई अवार्ड्स जीते, और कई भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ। शो टीम खासकर पंकज चांदपुरी, महेश शर्मा और अभिराज को बधाइयां!
आपात स्थिति में शो के कुछ एपिसोड्स लिखने के अलावा शो के अंतिम कुछ एपिसोड्स की शुरुआत में मैंने ट्रिब्यूट के तौर पर कुछ काव्य पंक्तियां जोड़ी, जैसे एपिसोड 804 "बिन्दुसार का जन्म, नंदिनी की मृत्यु!" में ये -
असंभव सा फैलते विष को रोकने का कार्य,
समय के हर क्षण से जैसे युद्ध लड़ें आचार्य!
महल में गूंज रही नंदिनी की चीख,
अमात्य राक्षस भी मांग रहा ईश्वर से भीख।
पुतले बने शशांक, प्रियम्वदा भरे आहें,
विषाक्त नीली आँखें अंतिम बार बस चंद्र को देखना चाहें।
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या अंतिम एपिसोड में ये पंक्तियां -
एक साधारण बालक को चक्रवर्ती सम्राट बनाया,
दुनिया को नीति और अर्थशास्त्र का पाठ पढ़ाया।
चंद्र की काँटों भरी सत्ता को जिसने सुगम बनाया,
अग्नि से कष्टों में तपकर अपना प्रण निभाया।
अखंड भारत की नींव जिसने रखी,
वो विष्णुगुप्त चाणक्य कहलाया…
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बाकी एपिसोड के लिए लिखा गया काव्य यहां पढ़ें - काव्य पंक्तियां
चाणक्य के साथ ही 3 साल से चल रहे यक्षिणी शो का भी 1001 एपिसोड पर अंत हुआ, जिससे में आधे सफर में जुड़ा था। आनंद की भी जितनी तारीफ़ की जाए कम है। हाल ही में संपन्न 2024 India Audio and Summit Awards (IASA) में यक्षिणी को एक नॉमिनेशन मिला। खैर, सफ़र जारी है...एक सिरा छूटता है, तो कुछ ओर थामने को मिल जाता है। #ज़हन