बीते दिनों भारतीय कॉमिक्स जगत की एक बड़ी घटना हुई। मैं अचंभित हूं कि अभी तक आधिकारिक रूप से इस बात पर कोई ब्लॉग, लेख आदि पढ़ने को क्यों नहीं मिला। 1986 से सक्रीय प्रकाशन राज कॉमिक्स के तीन हिस्से हो गए।
राजा पॉकेट बुक्स के संस्थापक स्वर्गीय राज कुमार गुप्ता जी का दिसंबर 2020 में निधन हो गया। उनके देहांत से पहले ही उनके पुत्रों (संजय गुप्ता, मनोज गुप्ता और मनीष गुप्ता) के आपस में मतभेद हुए जिनका कुछ अंश सोशल मीडिया पर साझा किया गया। सभी पक्षों की पूरी बात सार्वजानिक तौर पर सामने नहीं आई, इस वजह से उस बारे में बात करना तो ठीक नहीं होगा। हालांकि, इस दौरान 'Raj Comics by Sanjay Gupta' (RCSG) और 'Raj Comics by Manoj Gupta' (RCMG) के विज्ञापन आने लगे। श्री मनीष गुप्ता की ओर से अभी कोई अपडेट देखने को नहीं मिली।
RCMG और RCSG के विज्ञापनों और इन कुछ महीनों में बिक्री पर लगी कॉमिक्स को देखकर पता चलता है कि किरदारों के इस्तेमाल के अधिकार साझा कर लिए गए हैं। साथ ही, पुरानी छपी कॉमिक्स को भी क्रम के अनुसार बाँट लिया गया है, ताकि यह साफ़ रहे कि कौनसी कॉमिक का रीप्रिंट किसे प्रकाशित करना है। मंदी के इस दौर में, दोनों प्रकाशन कॉमिक्स के साथ-साथ कलाकारों, संसाधनों का भी साझा इस्तेमाल कर रहे हैं। राजा पॉकेट बुक्स का संचालन भी इसी तरह होगा।
अगर तुलना की जाए तो श्री मनोज गुप्ता ज़्यादा प्रयोगात्मक थीम पर काम कर रहे हैं। वहीं श्री संजय गुप्ता जी पर पहले घोषित की गईं कुछ बड़ी सीरीज़ को प्रकाशित करने का दबाव है। कॉमिक बाज़ार में उनकी गुडविल भी ज़्यादा है। टीम की बात करें, तो दोनों ही तरफ़ संतुलित कलाकार और लेखक हैं। वैसे अभी किसी नतीजे पर आना जल्दबाज़ी होगी, क्योंकि इतने किरदारों, हज़ारों कॉमिक्स के कॉपीराइट अधिकार और आय को बराबर बांटना काफ़ी मुश्किल काम है। ऐसा हो सकता है कि भविष्य में यह बात विवाद का कारण बने। आशा है, आने वाले समय में भारतीय कॉमिक्स जगत में फिर से राज कॉमिक्स परिवार की नियमित कॉमिक्स आती रहें।
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#ज़हन
अभी तक तो राज से निकले हुए दोनों कॉमिक्स प्रकाशन पुराने माल को ही बेचने में लगे हुए हैं.. जिस हिसाब से एक ही चीज को तरह तरह के वर्क में लपेटकर बेचा जा रहा है उससे यह नहीं लगता कि कोई ठोस नीति इनके पास है.... दोनों प्रकाशन संस्थानों को सोचना होगा कि इन्हें नया पाठक वर्ग विकसित करना है या पुराने पाठक के नास्टैल्जिया का दोहन ही करना है......
ReplyDeleteसही बात है। यह फ़ीडबैक इन्हें कई प्रशंसक दे भी रहे हैं कि सीरीज़ बनाएं भी तो अंकों के बीच अंतराल कम रखें, रीप्रिंट और नई कॉमिक्स का सही अनुपात रखें।
Deleteवही.. इसके साथ उन्हें यह भी सोचना होगा कि अब उनका जो मूल पाठकवर्ग है वह बढ़ा हो चुका है... ऐसे में कथानक भी एक परिपक्व पाठकों को ध्यान में रखकर बनाने चाहिए.... मैं अब जब पुरानी कॉमिक्स पढ़ता हूँ तो उनके प्लाट होल्स आसानी से दिखते हैं.. फिर मेरा मानना है कि कॉमिक बुक्स भी कहानी कहने का माध्यम है जिसमें हर तरह की कहानी कही जा सकती है... ऐसे में इसे केवल बाल पाठकों तक सीमित रखना इस माध्यम का पूरा उपयोग करने के बराबर नहीं होगा.. वहीं यहाँ यह भी साफ करना बेहतर रहेगा कि परिपक्व कथानक केवल कम कपड़े दर्शाने से नहीं होता है (भारतीय कॉमिक प्रकाशक ऐसे ही समझते हैं शायद) बल्कि परिपक्वता कहानी के थीम में होनी चाहिए... एक गहराई उसमें होनी चाहिए....
Deleteपाठकों के लिए बुरी खबर .. खैर आशा करते है कॉमिक्स प्रकाशित होती रहे और कॉमिक्स प्रेमियों का जूनून बना रहे ..
ReplyDeleteजब आप जैसे कद्रदान है, तो कला भी चलती रहेगी।
Deleteमनीष सर की एक घोषणा आयी थी कि राज कॉमिक का पुराना ऑनलाइन स्टोर जल्दी ही फिर से ओपन होने वाला है। लेकिन ये घोषणा अब तक बस घोषणा ही रह गयी।
ReplyDeleteहम्म...इतने किरदार और कॉमिक्स के कॉपीराइट अधिकार सबको संतुष्ट करते हुए बांटना आसान नहीं होगा।
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