किसी आयोजन को सफल बनाने से भी पहले एक प्रयास होता है...कि कम से कम आयोजन तो हो जाए। दिमाग में आया विचार सही मूर्त रूप ले ले ऐसा तो लाखों में कुछ मामलों में हो पाता है। लेकिन एक आयोजन को सफल बनाने के पीछे कुछ ऐसे निस्वार्थ लोगों का योगदान होता है जो इस हद तक उसमें लग जाते हैं जैसे उनकी बहन की शादी हो! खैर, ऐसे ही लोग इस टॉक्सिक, दम घोंटू समाज के लिए ऑक्सीजन का काम करते हैं। 11 अक्टूबर, 2025 को सत्यवती कॉलेज, अशोक विहार, दिल्ली में हुए फ्लाईड्रीम्स पब्लिकेशंस के किताबें ज़रा हटके उत्सव में मुझे कुछ ऐसे ही लोगों से मिलने का सौभाग्य मिला।
1. अनमोल दुबे:
पूरा कार्यक्रम जिस तरह व्यवस्थित तरीके से चला, उसमें अनमोल का योगदान अहम रहा। ऐसा लग रहा था जैसे आयोजन की हर छोटी-बड़ी बारीकी उन्हें पहले से पता हो। वॉलंटियर्स की टीम, सत्रों की रूपरेखा, मंच और तकनीकी पक्ष - हर जगह उनकी नज़र थी। किसी भी समस्या के आने से पहले वे उसके समाधान के साथ तैयार दिखे। उनकी शांति और आत्मविश्वास ने पूरे माहौल को संयम और प्रोफेशनलिज़्म से भरा रखा। एक सत्र में लेखक की अनुपस्थिति को उन्होंने बड़े अच्छे ढंग से संभाला।
गेट के बाहर से लेकर अंदर तक, हर मेहमान का स्वागत, उन्हें गाइड करना, बुक स्टॉल्स को संभालना और एक-एक व्यक्ति की ज़रूरत पर ध्यान देना - सुनीता और उनकी
वालंटियर टीम ने हर काम में पूरा समर्पण दिखाया। वे लगातार सक्रिय रहीं, बिना थके, बिना शिकायत के। किसी पाठक को सही किताब तक पहुँचाना हो या किसी अतिथि की सुविधा का ध्यान रखना - हर जगह उनकी उपस्थिति भरोसे का अहसास दिला रही थी। टीम के अन्य सदस्य - स्मृति, तान्या, अभिजात्या, साक्षी, प्रियांशु, प्रजेश, आलोक और संजीव ने उनका भरपूर साथ दिया।
इवेंट के पहले सत्र के होस्ट के रूप में सौम्य ने अपनी परिपक्वता और आत्मविश्वास से सबका ध्यान खींचा। उनकी टीम ने आयोजन के हर पहलू को बारीकी से कवर किया। लेखकों और कवियों के इंटरव्यू लिए, वीडियो बाइट्स रिकॉर्ड कीं और पूरे दिन एक पेशेवर लेकिन सौम्य रवैये से काम किया। उनका प्रयास इस आयोजन की डॉक्यूमेंटेशन को यादगार बना गया, और यह कहना गलत नहीं होगा कि उनकी टीम ने इस दिन कई घंटों तक लगातार काम करके इस इवेंट को कई दशकों तक याद रखने लायक बना दिया।
4. हीरालाल भारद्वाज: फ्लाईड्रीम्स पब्लिकेशंस के प्रमुख स्टाफ सदस्यों में से एक, हीरालाल जी हर उस जगह मौजूद थे जहां ज़रूरत थी। पर्दे के पीछे का काम हो या बाहर की व्यवस्था, उन्होंने हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाया। दिनभर की भागदौड़ में शायद ही कोई ऐसा क्षण था जब वे किसी एक जगह कुछ समय से ज़्यादा दिखाई दिए हों। उनका समर्पण आयोजन की मज़बूत रीढ़ की तरह था।
इन सभी लोगों के साथ-साथ वालंटियर, स्टॉफ (जैसे - निशांत मौर्य, शहाब खान), कॉलेज के कई छात्रों ने अपने-अपने स्तर पर जो मेहनत की, उसने इस पूरे आयोजन को सिर्फ एक साहित्यिक उत्सव नहीं, बल्कि एक टीमवर्क की मिसाल बना दिया। “किताबें ज़रा हटके उत्सव”, उस दिन केवल लेखन और रचनात्मकता का जश्न नहीं था, बल्कि यह उन लोगों के जुनून और मेहनत की कहानी भी थी जो पर्दे के पीछे रहकर उसे संभव बनाते हैं।
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#ज़हन
शानदार आयोजन
ReplyDeleteसभी को हार्दिक धन्यवाद इस उत्सव को सफल बनाने के लिए। उम्मीद है आगे ऐसे और भी उत्सव होते रहेंगे।
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