डूबती कश्ती मे,
उजडती बस्ती मे,
गुज़रा मै वहां से...
जिंदगी बीके जहाँ सस्ती मे...
पैमानों को तोड़ना,
रिश्तो को छोड़ना,
मंजिल तक दौड़ना...
...बस दौड़ना....
सफ़र मे जहाँ भी पड़ा डेरा,
पीछा सा करती मुश्किलों ने घेरा,
सहारा तलाशती नज़रो को फेरा...
दिखा तो बस साया मेरा...
लगा था जिंदगी है लंबी,
कर लेंगे काम पूरे...
यहीं रह गए सारे अरमान अधूरे.
जिंदगी जी कर पता चला अब कर दी बड़ी देरी,
मंजिल पर आकर पता चला ये मंजिल नहीं है मेरी....
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