My poem "सूना बचपन" published in the inaugural issue of "Pothiz" magazine July 2010. Source - Pothi.com
वो किसी की गोद मे चढ़ता,
अपनों के कपड़े गंदे करता,
पहले सहारे से.... और फ़िर एक दिन ख़ुद चलता.
लडखडाती चाल से चीज़ें बिगाड़ता,
फ़िर तुतलाती जुबां से मदद को पुकारता,
बड़े भाई - बहिन पर गुस्सा उतारता.
स्कूल ना जाने की जिद करता,
कार्टून्स देखने के लिए लड़ मरता.
छुपकर डब्बे मे कीडे - मकोडे पालता,
क्या होता है देखने के लिए.....पौधों मे शैंपू का पानी डालता.
२ और २ को जोड़ ना पता,
नई फिल्मो के ग़लत गाने गाता.
पर उसने ऐसा कुछ नही किया,
....शायद दूसरे अनाथो की तरह वो भी बचपन मे बड़ा हो गया.
Congratz, poetry is awesome
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