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शारीरिक या मानसिक रूप से अपंग लोगो को हमेशा से समाज मे उपेक्षित नज़रो से देखा जाता है. उनसे न ज्यादा उमीदें लगायी जाती है और न ही उनके विकास पर ध्यान दिया जाता है. अगर उनका विकास ढेर सारे स्नेह और सहनशीलता के साथ हो तो वो भी हमारे समाज की प्रगति मे महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते है. ये कविता इस विषय पर है.-
वो मासूम है,
पर मजबूर नहीं.
वो तड़प है,
पर नासूर नहीं.
उनके जीवन के हर कदम पर मुश्किल पल है आते,
पर बदले मे वो हमसे सहानुभूति नहीं चाहते.
वो लडखडाये,
उन्हें चलने दो.
वो गिर जाये,
उन्हें संभलने दो.
वो 'हम' मे से एक है,
उन्हें 'इस' एहसास के साथ भी जीने दो.
माना की कुदरत की गलती से सामाजिक दौड़ गये ये हार,
पर खुद मे है वो बहुत ख़ास.
तानो के नहीं है ये हक़दार,
ये मांगते है प्यार...हाँ, सिर्फ प्यार.
हो सके तो इनका मजाक उड़ाने के बजाये,
इनसे 'जीने का जज्बा' ले लीजिये उधार.
बढिया रचना .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
ReplyDeletewonderful message
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