Freelance Falcon ~ Weird Jhola-Chhap thing ~ ज़हन

Wednesday, August 11, 2010

मुझे घर जाने से लगता डर!


बेरोज़गारी हमारे समाज की विकट समस्याओं मे से एक है. शिक्षा के मूलभूत ढांचे मे कमी, बढती जनसँख्या, कमज़ोर सरकारी तंत्र....वजह तो बहुत है पर इनके सीधे से समाधानों पर कभी अमल नहीं हुआ. मैंने पोस्ट-ग्रेजुएट लोगो को मजबूरी मे चपरासी की नौकरी करते देखा है. ये कविता एक ऐसे युवक की है जो काफी समय से नौकरी की तलाश मे है. आज भी साक्षात्कार के बाद उसे नौकरी के लिए नहीं चुना गया और......

मुझे घर जाने से लगता डर,
थोडा सा ही सही ज़हर दे दो। 

बाबा की काठी बूढी हुई...
वो दर्द छुपायें...खुश होकर। 

घरवालों के हर आँसू कि नमी समेटे .... 
छत भी रोती रिस-रिस कर। 

माँ की आँखों मे सपने दिखें...
उन सपनो से बचता मै छुप-छुप कर। 

मुझे घर जाने से लगता डर...

घर का किराया ज्यादा है...
चुकता है बहना की पढाई के दम पर। 

आँखें अब ऊपर उठती नहीं... 
शर्मिंदा जीतीं घुट-घुट कर। 

दुनिया मुझ पर अब हँसती है,
मजबूरी भारी ज़िल्लत पर। 

मरने की मेरी औकात नहीं...
जीता हूँ वायदों की कीमत पर। 

मुझे घर जाने से लगता डर....

9 comments:

  1. berojgari abhishraap lag si jaati hai :(

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  2. अबे थोड़ा अपनी वाली पर आओ followers बहुत हो गए हैं तुम्हारे और बहुत तेज़ी से बढ़ रहे हैं बहुत अच्छे

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  3. thode mai hi bahu kuchh likh diya hai. bahut achchhe.

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  4. Wartman me berojgari aur jimmedari ki yatharth kashmkash liye dard aur karttavy se bhari ek kavita.

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  5. समसामयिक तथा मार्मिक प्रस्तुति

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  6. नए हिंदी ब्लाग के लिए बधाइयाँ और स्वागत। उत्तम लेखन है… लिखते रहिए। अन्य ब्लागोँ पर भी जाइए जिनमें मेरे ब्लाग भी हैं…

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  7. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  8. इस नए सुंदर चिट्ठे के साथ आपका ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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