Freelance Falcon ~ Weird Jhola-Chhap thing ~ ज़हन

Friday, August 13, 2010

वो खुश है!





Story of an unskilled worker from India whose family is struggling for basic necessities. To raise their standard of living he migrates to foreign country and is exploited. He gets very less money but even the less 'foreign money' is valuable enough when converted to Indian Rupee. So, he "happily" suffers........

वो खुश है! -


मिटाने परिवार की मजबूरी,
निकला वो परदेस करने मजदूरी.
परदेस सपनो से उलट निकला,
मालिको से उसे जानवरों सा बर्ताव मिला.
घिसट-घिसट के बना वो बंधवा,
पर तसल्ली थी....
की घिसटने से मिले परदेसी सिक्को से खूब बनता था देसी रुपया.
और इसलिए वो खुश था....
हाँ, शायद वो खुश था.

"चिट्ठी लिखने का वक़्त कहाँ मिलता,
यहाँ खूब काम करना जो पड़ता,
जब टेलीफोन की लाइन अपने गाँव तक खींच जाएगी,
तब ढंग से अपने दिल की डोर बंध पाएगी.

काम के बोझ ने बना दिया है बैल कोल्हू,
सब कहते है धीरे-धीरे सीख जाऊंगा....अभी नया जो हूँ.

पैसे भेजे है उनको संगवा लेना,
सब रुके काम पूरे करवा देना.
छोटू दोबारा स्कूल जाएगा,
पिता जी का चश्मा भी इस महीने आएगा.

घर की छत बनवा लेना,
और उस लालची प्रधान के पैसे चुकता देना.
अभी कुछ और साल घर नहीं आ पाऊंगा,
पर मेहनत करके हम सबके लिए खूब पैसा कमाऊंगा.

परदेस मे हर सुविधा है मिल जाती,
खाने-पानी से लेकर बिजली हर वक़्त है आती.

एक चीज़ और है जो हर वक़्त है आती.....
.....घर की याद...जो बहुत सताती.

हमारी ख़ुशी के लिए ये दूरियां सहनी पड़े तो बिना शिकन सहूँ,
घर ना सही...घर की याद ही संजोकर रहूँ...और...
....और मै खुश हूँ,
हाँ, मै बहुत खुश हूँ.

1 comment:

  1. tumhare andar dusro ka dard dikhane ki adbhut kshamta hai bhai

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