Freelance Falcon ~ Weird Jhola-Chhap thing ~ ज़हन

Monday, August 9, 2010

भूखा अन्नदाता





दोस्तों, कुछ दिन पहले खबर आई की सरकार ने अपनी तरफ से किसानो का सारा कर्जा माफ़ कर दिया. पर अब भी किसानो की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं. अनाधिकृत बाजारी व्यापार, कालाबाजारी, धरती की उर्वरक क्षमता मे कमी, etc, जैसे कारण किसानो के लिए अभिशाप बन गए है. सरकार भी उन पर कभी-कभी मेहरबान होती है....ऐसे मे हमे यह नहीं भूलना चाहिए की कृषि पर ही हमारा जीवन टिका है.

Place - Head Office, Apni Party, Balrampur.

"सर जी, इस गाँव बंथरा के हर घर मे 100-200 रुपये है बांटने,
अगर हम पंचो को अच्छी कीमत देंगे तो गाँव वाले लगेंगे हमारे तलवे चाटने."

Place - A Farmer Vishnu's hut, Banthra Village.

विष्णु - "सोनू, जा गैया चरा ला....कुछ काम नहीं करता,
मुनिया जा पंसारी से सौदा ले आ,
और तू सोनू की माँ...कुछ लकडियाँ बीन ला."

"घर मे अनाज का दाना तक नहीं, और तुम्हारी नशे की लथ जगी,
हम सबको घर से बाहर भेजना तो बहाना है...तुम्हे तो अपने यारो के साथ नशा जो चढाना है."

अपनों के तानो पर विष्णु ने ध्यान कहाँ दिया....उसको तो कोई और दुख था सता रहा.

ढूँढो रे ढूँढो मेरा भाग कहाँ है?
कर्जे मे डूबा मेरा सारा जहाँ है.
सूखे ये सूखे पत्ते कहते क्या है?
कितने बरस बीते बदरा कहाँ है?
बंजर ये धरती खुद को क्यों कहती माँ है?
बच्चे तड़प रहे...ममता कहाँ है?

हाय रे हाय मेरी किस्मत कहाँ है?
घर मे मेरी बिटिया जवां है.
जीवन ये मेरा कोई जंगल घना है,
कोई बताये मुझे राह कहाँ है?

दल-बल के साथ 'अपनी पार्टी' विष्ण के घर से अपना अभियान शुरू करने चली,
पर विष्णु के घर के बाहर उन्हें बिलखती भीड़.....
....और अन्दर एक मजबूर किसान की लाश लटकती मिली.

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