ये होती है शान,
वैसे तो जेब से अंटी नहीं निकलती,
कहने को दे दें दूसरो के लिए अपनी जान.
बाकियों का वक़्त चाहे बेवक्त खा लें,
अपने समय के हर 'इंच' का रखते है ध्यान.
इनसे जुडी हर चीज़ का होना चाहिए मान,
चाहे दूसरो पर पीक दें ये ढाई मन पान.
इनके नुक्कड़ की पांचवी गली बड़ी है....
बाकी क्या काशी, क्या सांसाराम....
चलिए कोई नहीं...अब तक ये सब किया,
आगे कौन सुधरने की उम्मीद करेगा.
आप जैसे तो कई है,
भीड़ मे आप पर कोई ऊँगली नहीं करेगा.
- समाप्त!!!!
लखनऊ मे मैंने एक शब्द सीखा है "भोकाल"..बाकी जगह शायद इसके दूसरे पर्यायवाची चलते होंगे. कहने का मतलब ये है की मैंने ऐसे कई छुटभइये नेता देखे है जो 4-5 लोगो को जमा करके, सार्वजनिक स्थानों पर जानबूझ कर आवाज़ ऊँची करके सोचते है की दुनिया उनके कदमो मे आ गयी...जबकि दुनिया इतनी बड़ी है की...हुंह!! :)
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