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बेटी अपने परिवार मे ऐसी रम गयी,
अपने "पापा जी" की खैर-खबर लेने की उसे सुध ना रही.
बेटे की नौकरी विदेश मे लगी,
वहीँ उसने अपनी गृहस्ती बसा ली.
माँ को पहले ही काल आया,
पर उनका कोई बच्चा ना आया.
पिता को हुई लम्बी बीमारी,
बूढे शरीर को खुद ही करनी पड़ी सालो तक अपनी तीमारदारी,
पर ना कभी उनका उनका बेटा आया और ना बेटी.
कमर गयी झुक,
पेंशन गयी रुक,
खिड़की से अक्सर बाहर निहारते,
दूसरो की ख़ुशी मे.....अपने गम बिसारते.
भावनाएं टूटने लगी बनके कहर,
ज़िन्दगी लगने लगी ज़हर,
काटने को दौड़ता खाली-खाली सा घर.
वो वीरान राह पर दर्द छलकाने यूँ ही चल पड़े.......
कुछ देर बाद सड़क दुर्घटना मे वो हमेशा के लिए चल बसे......
अधेड़ की शत-विक्षत लाश की कोई पहचान नहीं कर पाया,
लावारिस लाश को आखिर अंजानो ने जलाया.
.....पर उनका कोई अपना नहीं आया.
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