Freelance Falcon ~ Weird Jhola-Chhap thing ~ ज़हन
Friday, August 13, 2010
वो 'दावा' नही था!
कल था जुम्मा....और थी ईद,
पर साथियों के साथ अपने फ़र्ज़ मे मशगूल थे मिया खालिद.
वर्दी पहने कुछ बन्दों पर हो गए शायद फ़रिश्ते तक मुरीद,
फ़र्ज़ तो पूरा हुआ...पर एनकाउंटर मे अपराधियों के अलावा हो गए खालिद समेत कुछ पुलिसकर्मी शहीद.
जिंदगी को फ़र्ज़ के लिए कई दांव पर लगा देते है जैसे हो कोई जुआ,
उनके लिए लोग सुस्ताते से कहते है......"चलो एक पुलिसवाला कम हुआ."
इमानदारो की भी हो जाती है नब्ज़ सुस्त,
जब मानवाधिकार, विपक्ष आदि के ज़ोर से अक्सर पुलिस एनकाउंटर पर जांच कमेटीयां होती है नियुक्त.
तब तो फूट ही पड़ा उनकी बीवी के आक्रोश का लावा,
जब अगले दिन अख़बार मे ख़बर छपी....."पुलिस द्वारा एनकाउंटर करने का एक और 'दावा'.
समाप्त!!!!!
किसी वर्ग, समूह, समाज, महकमे, आदि का generalization यानी उस से जुड़े लोगो के बारे मे उन्हें जाने बिना ग़लत धारणाएं बनाना बहुत ग़लत बात है. पर ऐसी बातें अक्सर देखने, सुनने, को मिल जाती है. हर व्यक्ति मे हर गुण और बात दूसरे से अलग होती है तो फिर उसे जाने बिना उस पर सुनी सुनाई राय बनाना कैसे सही हो सकता है? कई विषयों पर हम जो सोचते है वो हमारी सोच नही बल्कि मीडिया, पढ़ाई, पुरखो....आदि की हम पर थोपी गई सोच होती है. जैसे पुलिस का महकमा.....एक 5-6 साल का बच्चा, जिसको सड़क पार करने मे भी मदद की ज़रुरत हो वो तक पुलिस की बुराई पर निबंध लिख सकता है. पुलिस तो समाज का हिस्सा है.....जैसा समाज उसे बनाएगा वैसी वो बन जायेगी.....ऐसा ही बाकी महकमों और लोगो के साथ होता है. इसी विषय पर यह कविता लिखी है.
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Bohot sundar aevam alag prastuti!
ReplyDeleteअए साला अभी-अभी हुआ यकीन,
ReplyDeleteहै आग जो तुझमें कहीं.
पहले था मुझको,
अधूरा यकीन.
रुs बरुssss रौशनीssssssssssssssss
d other side that we never see
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